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________________ ४०३ - %D सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ७२ द्वादश प्राभृतम् अथ मुहूर्तपरिमाणज्ञानार्थ प्रश्नसूत्रमाह-'ता से णं केवइए मुहुत्तग्गेणं आहिए त्ति वएजा' तावत् स खलु कियता मुहूर्त्ताग्रेण आख्यात इति वदेत् ।।-तावदिति प्राग्वत् सःप्रथमोदितश्चान्द्रमासः कियता मुहूर्ताग्रेण-मुहूर्तपरिमाणेन आख्यातः-प्रतिपादित इति वदेव-कथय भगवग्निति गौतमस्य प्रश्न स्ततो भगवानाह–'ता अट्ठ पंचासीते मुहुत्तसए तीसं च बावद्विभागे मुहत्तस्स मुहत्तग्गेणं आहिएत्ति वएज्जा' तावद अष्टौ पञ्चाशीतानि मुहत्तशतानि त्रिंशच्च द्वापष्टिभागा मुहर्तस्य मुहर्ताग्रेण आख्यात इति वदेत।।-तावदिति प्राग्वत् तस्मिन् चान्द्रमासे अष्टौ पञ्चाशीतानि-पञ्चाशीत्यधिकानि अष्टौ शतानि मुहूर्तानाम् , एकस्य च मुहूर्तस्य त्रिंशद् द्वापष्टिभागाश्च भवन्तीत्येवं प्रमाणेन मुहूर्ताग्रेण सचैकश्चान्द्रमासः प्रपू) भवतीत्याख्यातः-प्रतिपादित इति वदेत-स्वशिष्येभ्य उपदिशेत् , कथमेतावता मुहूर्ताग्रेण चान्द्रमासः प्रपों भवतीत्येवं चेत्तदात्र गणितक्रिया प्रदश्यते-यतो हि पूर्व चान्द्रमासपरिमाणमेकोनत्रिंशदहोरात्रा एकस्याहोरात्रस्य द्वात्रिंशद् द्वापष्टिभागा इत्येवं अब मुहूर्त परिमाण को जानने के लिये श्री गौतमस्वामी प्रश्न पूछते हैं(ता से णं केवइए मुहत्तग्गेणं आहिएत्ति वएज्जा) वह पूर्व कथित चांद्र मास कितने मुहूर्त परिमाणवाला प्रतिपदित किया है ? सो हे भगवन् आप कहिये इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर इसके उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता अट्टपंचासीते मुहत्तसए तीसं च बावट्ठिभागे मुहत्तस्स मुहत्तग्गेणं आहिएत्ति वएज्जा) उस चांद्र मास में आठसो पचासी मुहूर्त तथा एक मुहर्त का बासठिया तीस भाग होते हैं, इस प्रकार के प्रमाणवाले मुहर्त परिमाण से वह एक चांद्र मास परिपूर्ण होता है, इस प्रकार स्वशिष्यों को उपदेश करें। इतने मुहूर्तान से चांद्र मास किस प्रकार से पूरा होता है, यह जानने के लिये इस विषय में गणितप्रक्रिया दिखलाइ जाती है। प्रथम चांद्र मास का परिमाण उन्तीस अहोरात्र तथा एक अहोरात्र का बासंठिया बत्तीस भाग हुवे भुत परिमाने atyan भाटे श्रीगीतभस्वामी प्रश्न पूछे छ- (ता सेणं केवइए. मुहुत्तगोणं आहिएत्ति वएज्जा) २१पडेटा ४ामा सावेद यांद्रमास 32८भुड़त परि. માણવાળ પ્રતિપાદિત કરેલ છે? તે હે ભગવન આપ કહે ! આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના प्रश्नने सामान ते उत्तरमा श्रीमान् ४९ छे-(ता अट्टपंचासीते मुहुत्तसए तीसंच बावद्रिभागे मुहुत्तस्स मुहुत्तग्गे आहिएति वएज्जा) से यांद्र संवत्सरमा पाइसी पयासी મુહૂર્ત તથા એક મુહૂર્તના બાસઠિયા ત્રીસ ભાગ થાય છે. આ રીતના પ્રમાણવાળા મુહર્ત પરિમાણથી તે એક ચાંદ્રમાસ પરિપૂર્ણ થાય છે. આ પ્રમાણે સ્વ શિષ્યોને ઉપદેશ કરે. આટલા મુહૂર્તાગ્રથી ચાંદ્રમાસ કેવી રીતે પૂર્ણ થાય છે? તે જાણવા માટે આ વિષયમાં ગણિત પ્રક્રિયા બતાવવામાં આવે છે. પહેલા ચાંદ્રમાસનું પરિમાણ ઓગણ श्री सुर्यप्रति सूत्र : २
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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