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________________ ३५२ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे अथ द्वितीय सम्वत्सरस्यारम्भसमयं पृच्छति-'ता एएसि णं पंचण्डं संवच्छराणं दोच्चस्य चंदसंवच्छरस्स के आदी आहिए ति वएज्जा ?' तावदेतेषां पञ्चानां संवत्सराणां द्वितीयस्य चान्द्रसंवत्सरस्य क आदि राख्यात इति वदेत् ॥-तावदिति प्राग्वत् एतेषां प्रथमोदितानां पञ्चानां-चान्द्रचान्द्राभिवद्धितचान्द्राभिवर्द्रितानां संवत्सराणाम्-युगबोधकवर्षाणां मध्ये द्वितीयस्य चान्द्रसंवत्सरस्य क आदिः-प्रारम्भसमय आख्यातः-प्रतिपादित इति वदेत्-कथय भगवनिति गौतमस्य प्रश्नवाक्यं श्रुत्वा भगवानाह-'ता जेणं पढमस्स चंद संवच्छरस्स पज्जवसाणे सेणं दोच्चस्स णं चंदसंबच्छरस्स आदी, अणंतरपुरक्खडे समए' तावत् यत् खलु प्रथमस्य चान्द्रसम्वत्सरस्य पर्यवसानं सः खलु द्वितीयस्य खलु चान्द्रसंवत्सरस्यादिः, अनन्तरपुरस्कृतः समयः ।।-तावदिति पूर्ववत् चक्रनेमिक्रमे प्रारम्भपर्यवसानयोरेकत्रैव स्थिति भवतीति प्रत्यक्षोपलब्धा युक्तिस्तेन यत् खलु प्रथमस्य चन्द्रसम्वत्सरस्य पर्यवसानम्-समाप्तिकालः सएव द्वितीयस्य चान्द्रसंवत्सरस्यादिः-स्यादित्यत्र किं चित्रम् ? । समयोऽपि, सएवानन्तर पुरस्कृत:-अव्यवहितेऽन्तरे अग्रे धृतः कालएव-पर्यवसान-प्रारम्भयो ___ अब दूसरे संवत्सर के आरम्भ समय के विषय में श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-(ता एएसिणं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स को आदी आहिएत्ति वएज्जा) ये पूर्व कथित चांद्र, चांद्र अभिवर्धित चांद्र एवं अभिवधित ये पांच संवत्सरों में दूसरा चांद्र संवत्सर का प्रारम्भ काल कोन सा कहा है ? सो कहिये इस प्रकार श्री गौतमस्वामी का प्रश्न को सुन करके उत्तर में श्री भगवान कहते हैं-(ता जेणं पढमस्स चंदसंवच्छरस्स पजवसाणे से णं दोच्चस्स णं चंदसंवच्छरस्स आदि अणंतरपुरक्खडे समए) चक्रनेमि के क्रम से आरम्भ एवं अंत की एक ही स्थिति होती है यह प्रत्यक्ष से दृश्यमान युक्ति है, अतः जो पहला चांद्र संवत्सर का समाप्तिकाल होता है वही दूसरा चांद्र संवत्सर का आरम्भकाल होता है, इसमें क्या आश्चर्य है ? समय भी वही अव्यवहित माने विना व्यवधान वाला काल होता है कारण की अन्त હવે બીજા સંવત્સરના આરંભ સમયના સંબંધમાં શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન પૂછે છે. (ता एएसि णं पंचण्हं संवच्छराणं दोच्चस्स चंदसंवच्छरस्स को आदी आहिएत्ति वएज्जा) આ પહેલાં કહેવામાં આવેલ ચાંદ્ર, ચાંદ્ર, અભિવર્ધિત ચાંદ્ર અને અભિવર્ધિત આ પાંચ સંવત્સરમાં બીજા ચાંદ્ર સંવત્સરનો પ્રારંભકાળ કયે કહેલ છે ? તે કહે આ પ્રમાણે શ્રી ગૌતમસ્વામીને પ્રશ્ન સાંભળીને તેના ઉત્તરમાં શ્રી ભગવાન કહે છે(ता जे पढमस्स चंदसंवच्छरस्स पज्जवसाणे से णं दोच्चस्स णं चंदसंवच्छरस्स आदी अणतरपुरक्खडे समए) यने मीना उभथी मार सने मतनी मे १ स्थिति य छे. આ પ્રયક્ષથી દેખાનાર યુક્તિ છે, તેથી જે પહેલા ચાંદ્ર સંવત્સરને સમાણિકાળ હોય છે એજ બીજા ચાંદ્ર સંવત્સરને આરંભકાળ હોય છે, આમાં શું આશ્ચર્ય છે ? સમય પણ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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