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________________ २२२ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे मुज्वमानमण्डलप्रदेश 'चउवीसेणं सरणं छेत्ता' चतुर्विंशतिकेन शतेन छित्वा-चतुर्विशत्यधिकशतेन विभज्य-तावन्मितान् भागान् विधाय, भूयोऽपि चतुर्भिक्त्वा 'पुरच्छिमिल्लसि पौरस्त्ये-पूर्वदिग्वतिनि 'चउभागमंडलंसि' चतुर्भागमण्डले अर्थात् एकत्रिंशद् भागप्रमाणे, यतोहि चतुर्विंशत्यधिकं शतं यदि चतुर्भिविभज्यते तदा १२४:४-३१ एकत्रिंशल्लभ्यते । सर्वेभ्योऽपि भागेभ्यः ‘सत्तावीसं भागे' सप्तविंशतिभागान् ‘उवाइणावेत्ता' उपादाय गृहीत्वा, अर्थात् एकत्रिंशत् प्रमाणभागेभ्यः सप्तविंशतिभागान् गृहीत्वा अन्यत्र स्थापयेत् । तदनेतनमष्टाविंशतितम भागं 'वीसहा छेत्ता' विंशतिधा छित्वा-विभज्य विंशतिप्रमाणानि खण्डानि कृत्वा, तेभ्यो विंशतिप्रमाणखण्डेभ्य 'अट्ठारसभागे' अष्टादशभागान् 'उवाइणावेत्ता' उपादाय-अष्टादशभागान् गृहीत्वा प्रथमोदितस्य चतुर्भागमण्डलस्यैकत्रिंशत्प्रमाणस्यावशिष्टैः 'तिहिं -भागेहिं' त्रिभिर्भागैरन्यत्र स्थापितैश्चतुर्थस्य च भागस्य 'दोहिं य कलाहिं' पूर्व अर्थात् वायव्य कोण से आग्नेय कोण पर्यन्त की विस्तृत रेखा से (जीवाए) जीवा अर्थात् दोरी से भुज्यमान मंडलप्रदेश को (चउवीसेणं सएणं छेत्ता) एकसो चोवीस से विभक्त करके अर्थात् एकसो चोवीस भांग करके फिरसे चार भाग करके (पुरच्छिमिलंसि) पूर्वदिशा संबंधी (चउभाग मंडलंसि) चतुर्भाग मंडल में अर्थात् इकतीस भाग प्रमाणवाले मंडल में कारण की एकसो चोवीस को जो चार से विभक्त करे तो १२४ : ४३१ इकतीस लभ्य होता है। उन भागोंमें से (सत्तावीसं भागे) सताईस भागों को (उवाइणावेत्ता) लेकर के अर्थात् इकतीस भागोंमें से सत्ताईस भागोंको ले करके अन्यत्र रक्खे तथा उन के पीछे के अठाईसवें भाग को (वीसइ छेत्ता) बीससे भाग करके माने वीस खण्ड करके उन वीस खंडोंमें से (अट्ठारसभागे) अट्ठारह भागों को (उवाइणावेत्ता) ले करके पहले कहे हुवे चतुर्भागमंडल के इकतीस प्रमाण भागोंमें से शेष रहे हुवे (तिहिं भागेहिं) तीन भागों से अने क्षिा मर्यात पायथ्यथा माउनेयए पय-त विस्तारवाणी माथी (जीवाए) अर्थात् qिHYA 2ता भ31 प्रदेशने (चउवीसेणं सएणं छेत्ता) मे से। योवीस विमा रीने मात असो यावी ला ४शन पछी.यायी मापा से शत मा ४शन (पुरथिमिलंसि) पूर्ण समाधी (चभागमंडलंसि) यतु ममा अर्थात् मेत्रीस मा प्रभावामा મંડળમાં કારણ કે એકસ વીસને જે ચારથી વિભક્ત કરે ૧૨૪+૪=૩૧ એકત્રીસ આવે छ, से लागामाथी (सत्तावीसं भागे) सत्यावीस मागान (आइणावेत्ता) सान अर्थात् એકત્રીસ ભાગમાંથી સત્યાવીસ ભાગોને લઈને એકતરફ રાખવા તથા તેના પછીના અઠયાपासमा लागने (वीसहा छेत्ता) वीस मा शन मेटो, वीस 43 ॐशन से वीस भभाथी (अट्ठारस भागे) मढा२ भागाने (वाइणावेत्ता) एन पसा डेटा यतुलामंना त्रीस लागामाथी माडी २हेदा (तिहिं भागेहिं) त्र मागाभांथी अन्यत्र શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્રઃ ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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