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________________ २०० सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे स्थानात् परतो - अनन्तरं मण्डलं 'चउवी सेणं सरणं' चतुर्विंशतिकेन शतेन चतुर्विंशत्यधिकेन शतेन चतुर्विंशत्यधिकशतविभागेन 'छेत्ता' छित्वा - विभज्य तद्गतान् 'दुबत्तीसं भागे ' द्वात्रिंशतं भागान् 'उवाइणावेत्ता' उपादाय - द्वात्रिंशतं भागान् गृहीत्वा 'पत्थणं' अत्र खलुar auratथाने कल 'तच्च पुष्णिमासिणीं' तृतीयां पौर्णमासीं तृतीयमासप्रपूर्णधोतिकां पौर्णमासी 'चंदे' चन्द्र: 'जोएह' युनक्ति - परिसमापयति । ' ता एएणं पंच संवच्छरणं दुवालसमं पुष्णिमासिणिं चंदे कंसि देसंसि जोएइ ?, ता जंसि देसंसि चंदे तच्च पुष्णिमासिणि जोएह ताओ पुण्णिमासिणिद्वाणातो मंडलं चउवी सेणं सरणं छेत्ता दोणि अट्ठासी भागसए उवाइणावेत्ता एत्थणं से चंदे दुवालसमं पुण्णिमा सिणि जोएइ ? ।' तावत् एतेषां पञ्चानां सम्वत्सराणां द्वादशीं पौर्णमासीं चन्द्रः कस्मिन देशे युनक्ति ?, तावत् यस्मिन् देशे चन्द्रः तृतीयां पौर्णमासीं युनक्ति तस्मात् पुर्णिमासीस्थानात् मण्डलं चतुर्विंशतिकेन शतेन छत्वा द्वे अष्टाशीते भागशते उपादाय अत्र खलु स चन्द्रो द्वादशीं पौर्णमासीं युनक्ति ? । - तावत् - तत्र योगविचारे 'एए' एतेषामनन्तरोदितानां 'पंचण्डं संवच्छराणां' पञ्चानां सम्वत्सराणां चान्द्र चान्द्राभिवर्द्धितादि पञ्चसंख्यकानां युगसम्वत्सहातो) उस पूर्णिमा के स्थान से अर्थात् दूसरी पूर्णिमा के परिसमापक स्थान से अनन्तर वें मंडल को (चवीसेणं सरणं) एकसो चोवीस विभाग से (छेत्ता) विभाग करके उनमें रहे हुवे (दुबत्तीसं भागे) बत्तीसभागों को ( उवाइणावेत्ता ) लेकर अर्थात् बत्तीस भागों को लेकर ( एत्थ णं) यहां के मंडलस्थान में ( तच्च पुष्णिमासिणीं) तीसरामास को पूर्ण करनेवाली पूर्णिमा को (चंदे ) चंद्र (जोएइ) समाप्त करता है । ये पूर्णिमा के योग की विचारणा में (एए णं) ये पूर्वोक्त (पंचन्हं संवत्सराणं) चांद्र, चांद्र, अभिवर्द्धित, चांद्र एवं अभिवर्द्धत इसप्रकार के पांच संवत्सरों में (दुवालसमं पुण्णिमासिणि) युग की प्रथम वर्ष के अन्त की बारहवीं आषाढी पूर्णिमा को (चंदे ) चंद्र (कंसि देसंसि जोएइ) किस प्रदेश में रहकर समाप्त करता है ? अर्थात् किस मंडलप्रदेश में बारहवीं पूर्णिमा को समाप्त करता है ? इसप्रकार श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न को quo सभाप्त थवाना स्थाननी पछीना भडगने (चडवीसेणं सरणं) मेसो थोपीस पिलागथी (छेत्ता) विभाग ने तेमां रडेल (दुबत्तीसं भागे) मत्रीस लागोने (उवाइणावेत्ता) बहने भेटले } अत्रीस लागोने बर्धने (एत्थणं) महीना भउणस्थानमा ( तच्चां पुष्णिमासिपिं) त्रीन भासने पूर्ण श्वावाणी पूर्णिमाने (चंदे) २द्र (जोएइ) समाप्त रे छे ? पूर्णिभाना मंडेजप्रदेश योगनी विचारणामां (एए) मा पूर्वोस्त (पंचहं संवच्छरणं) यांद्र, यांद्र अभिवर्षित, यांद्र ने अभिवर्धित आ रीतना संवछरोभां (दुवालसमं पुष्णिमा सिणि) युगना पहला वर्षांना अंतनी अषाढी पूर्णिमाने (चंदे ) चंद्र (कंसि देसंसि जो इ) या સડળપ્રદેશમાં રહીને સમાપ્ત કરે છે? આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નને સાંભળીને શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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