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सूर्य क्षप्तिप्रकाशिका टीका सू० १०७ विंशतितम'प्राभृतम्
१०७३ महिष्यः-प्रधानपट्टराज्ञः सन्ति, यतोहि चन्द्रो ज्योतिषामिन्द्रभूतो ज्योतिषराजश्चेति तस्य पट्टराज्ञां संख्याः नामानि रूपगुणाश्च कीदृशा इति सर्व बोधय भगवन्निति गौतमस्य प्रश्न विज्ञाय भगवान् कथयति-ता चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चत्तारि अग्गमहीसीओ पण्णत्ताओ' तावत् चन्द्रस्य ज्योतिषेन्द्रस्य ज्योतिषराजस्य चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः ॥ तावदिति पूर्ववत् चन्द्रस्य विशेषणद्वयमपि पूर्ववत्, चन्द्रदेवस्य चतस्त्र अग्रमहिष्यः सन्ति, काश्च ता इति प्रोच्यते-'तं जहा-चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चीमाली पभेकरा' तद्यथा-चन्द्रप्रभा (१) ज्योत्स्नाभा (२) अचिमालिनी (३) प्रभाकरा (४)॥ चन्द्रस्य प्रभारूपा प्रथमा अग्रमहिषी, ज्योत्स्नारूपा द्वितीया, अचिमालारूपा तृतीया, प्रकाशरूपा चतुर्थी, इत्येवं चतस्रः अग्रमहिष्य श्चन्द्रस्येति ॥ 'जहा हेटा त चेत्र जाव णो चेषण मेहुणवत्तिय यथा अधः तत् चैव यावत् न चैत्र खलु मिथुनवृत्तिः ॥ यथा-येन प्रकारेणाध:-मनुष्यलोके तच्चैव यावत्-केवलं भौगदृष्टया भोगभोगो भवति न तथा खलु चन्द्रादि लोकेषु मिथुनवृत्तयो कितनी कही गई है ? उस चंद्र की पटराणियों के नाम एवं संख्या एवं उनके रूप गुणादिको हे भगवन् मुझे कहीये इस प्रकर श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्रीभगवान् कहते हैं-(ता चंदस्स जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पपणसाओ) ज्योतिषेन्द्र ज्योतिष्कराज चंद्र की चार अग्रमहिषयां कही गई है । वे कौन कौनसी चार अग्रमहिषीयां है सो कहते हैं-(तं जहा चंदप्पभा दोसिणाभा अच्चीमाली पभंकरा) चंद्र की प्रभारूप चंद्र प्रभानाम की प्रथम अग्रमहिषी है (१) ज्योत्स्ना नामकी दूसरी अग्रमहिषी है (२) अचिमालारूप अचिमालीनी नामकी तीसरी अग्रमहिषी है (३) तथा प्रकाशरूप प्रभाकरा चौथी अग्रमहिषी का नाम है (४) इस प्रकार चंद्र की चार अग्रमहिषियों है। (जहा हेट्ठा तं चेव जाव णो चेव णं मेहुणवत्तिय) जिस प्रकार से इस मनुष्यलोक में होता है उसी प्रकार यावत् केवल भोग दृष्टि से भोगोपभोग होता है, मनुष्य लोक के समान चंद्रादि लोक में मैथुनवृत्ति નામ અને તેમની સંખ્યા અને તેમના રૂપ ગુણાદિને હે ભગવન મને કહે આ પ્રમાણે श्रीगौतभस्वाभाना प्रश्नने समाजाने उत्तरमा श्रीमान् ४ छ.-(ता चंदास गं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चत्तारि अग्ग महिसीओ पण्णत्ताओ) ज्योतिषन्द्र न्यौतिष्४२।०४ यद्रनी या२ અગ્ર મહિષિ કહેવામાં આવેલ છે. તે ચાર અમહિષીયે કઈ કઈ છે, તે બતાવે છે. (तौं जहा-चंदप्पभा दोसिणाभा, अच्चिमाली पभ करा) यद्रनी प्रमा३५ यद्रप्रभा नामनी પહેલી અગ્નમહિષી છે. (૧) સ્ના નામની બીજી અગ્રમહિષી છે (૨) અર્ચિમાલારૂપ અર્ચિમાલિની નામની ત્રીજી અગ્રમહિષી છે (૩) તથા પ્રકાશરૂપ પ્રભાકરા થી અ. महिषीनु नाम छ. (४) 241 प्रमाणे यंदनी या२ सयभाषया छे. (जहा हेवा चेव जाव णो चेव ण मेहुणवत्तिय) हे प्रमाणे 24 मनुष्य समय छे से प्रभाव) यापत्
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨