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________________ सूर्यप्रज्ञप्तिसत्र पंचवण्णा पण्णत्ता' तावत् राहोः खलु देवस्य विमानानि पश्चवर्णानि प्रज्ञप्तानि ॥-तावदिति पूर्ववत् णमिति पादपूरणे, राहुविमानस्य पश्चवर्णप्रतिपादनाद्विमानसंख्या अपि पञ्चद्योत्यन्ते, अर्थात् पश्चविमानानि पृथक पृथक् एकैकवर्णयुक्तानि सन्तीति प्रज्ञप्तानि । तद्यथा तेषां वर्णाः-'तं जहा किण्हा णीला लोहिया हालिद्दा सुकिल्ला' तद्यथा-कृष्णः (१) नीलः (२) लोहितः (३) हारिद्रः (४) शुक्लः (५)॥ प्रथमो विमानः कृष्णः-कृष्णवर्णः (१) द्वितीयो नीलवर्णः (२) तृतीयो लोहितवर्णः-रक्तवर्णः (३) चतुर्थों हारिद्रः-हरिद्रावर्णः-पीतइत्यर्थः (४) पञ्चमश्च शुक्ल:-शुक्लवर्ण (५) इति ।।-अथान्येपामपि वर्णानां स्वत्वं प्रतिपादयति'अस्थि कालए राहुविमाणे खंजणवण्णाभे अस्थिणीलए राहुविमाणे लाउपवण्णाभे पण्णत्ते अस्थि लोहिए राहुविमाणे मंजिट्ठावण्णाभे, अस्थि हलिदए राहुविमाणे हलिहावण्णाभे पण्णत्ते अत्थि सुकिल्लए राहुविमाणे भासरासिवण्णाभे पण्णत्ते' अस्ति कृष्णो राहुविमानः है, अर्थात् पांच विमान प्रथक् प्रथक् एक एक वर्ण वाले प्रतिपादित किया है, उसके वर्ण इस प्रकार से हैं-(तं जहा-किण्हा, णीला, लोहिया, हालिद्दा सुकिल्ला) कृष्ण (१) नील (२) लोहित (३) हारिद्र (४) तथा शुक्ल (५) पहला विमान कृष्ण वर्ण का होता है (१) दूसरा नील वर्ण वाला होता है (२) तीसरा लाल वर्ण वाला होता हैं (३) चौथा पीतवर्ण वाला होता है (४) एवं पांचवां श्वेत वर्णका होता है (५) ____ अब राहु विमान में अन्य वर्णका स्वत्वका प्रतिपादन करते हैं-(अस्थि कालए राहु विमाणे खंजणवण्णाभे, अत्थि णीलए राहु विमाणे लाउपवण्णाभे पण्णत्ते, अस्थि लोहिए राहुविमाणे मंजिट्ठा वण्णाभे, अस्थि हालिद्दए राहु विमाणे हालिद्द वण्णाभे पण्णत्ते अस्थि सुकिल्लए राहु विमाणे भास. रासि वण्णाभे पण्णत्ते) पूर्वोक्त राहु विमानों के वर्ण विषय में पर्यायान्तर से कहते हैं-जो कृष्णवर्णवाला प्रथम राहुविमान कहा है वह પાંચ વર્ણના પ્રતિપાદનથી વિમાનોની સંખ્યા પણ પાંચ જ હોય છે. અર્થાત્ પાંચ વિમાન અલગ અલગ એક એક વર્ણવાળા પ્રતિપાદિત કર્યા છે. તેના વર્ણ આ પ્રમાણે છે.-(i जहा-किण्हा, णीला, लोहिया, हालिद्दा सुकिल्ला) ४ (१) नीस (२) alsत (3) २ (४) तथा शुद (५) ५९ विमान go] वन डाय छे. (१) मी नासानु डाय छ (२) श्री दास वाणु जाय छ. (3) भने यो पीनु य छे. (४) तथा पायभु स वन डाय छे. (५) व राहु विमानमा मन्य ना २१त्वनु प्रति५४न ४२ छे.-(अस्थि कालए राहुविमाणे खंजण वर्गाभे, अस्थि णीलए राहुविमाणे लावु वण्णाभे पण्णत्ते, अत्थिलोहिए राहुविमाणे मजिट्ठा वण्णाभे, अस्थि हालिहल राहुविमाणे हालिदा वण्णाभे पण्णने अस्थि सुकिल्लए राहुविमाणे भासरालिवण्णाभे पण्णत्ते) पूति २।विमानना १४ । समयमा पर्यायान्त२था श्रीसुर्यप्रति सूत्र : २
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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