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________________ - - सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० १०४ विंशतितम प्राभृतम् १०२५ तथा ते चन्द्रादित्याः स्वयमेव विद्युतमपि नवर्तयन्ति, अशनिमपि पातयन्ति, गर्जितमपि स्वयमेव कुर्वन्ति न पुनस्तेपामधो भागे स्थितस्य बादराख्यस्य वायुकायिकस्य संघर्षेण तथाभवन्तीत्यर्थः, विद्युदादिकं सर्व चन्द्रादित्यप्रवर्तितमेवेति, इत्येवं प्रथमपरतीथिकोक्तेभ्यः सर्व वैपरीत्यमेव प्रतिपाद्य स्वमतमुपसंहरि, एगे एवमाहंसु' एके-द्वितीयाः परतीथिकाः एवं-पूर्वोदितेन प्रकारेण स्वाभिप्रायं प्रतिपादयन्ति २ ॥ एवं परतीर्थिक प्रति. पत्तिद्वयमुपन्यस्य सम्प्रति स्वकीयं मतं भगवान् कथयति 'वयं पुण एवं वयामो-ता चंदिमसूरिया णं देवा णं महिडिया जाव महाणुभावा वरत्थधरा वरमल्लधरा वराभरणधरा अवोच्छित्तिणयट्टयाए अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति' वयं पुनरेवं बदाम-स्तावत् चन्द्रसूर्याः खलु देवाः खलु महद्धिकाः यावत् महानुभावाः वरवस्त्रधराः वरमाल्यधराः वराभरणधराः अव्युच्छित्तिनयार्थतया अन्ये च्यवन्ते अन्ये उत्पद्यन्ते ।।-वयं-सकलशास्त्रतत्त्वमर्मज्ञाः एवंअव्यवहितोत्तरकाले प्रतिपाद्यमानस्वरूपं स्वमतं कथयामः । कथं वदथ इत्याह-तावदिति भी होता है। वे चंद्र-सूर्य स्वयं विद्युत् को प्रवर्तित करते हैं । वज्र को गिराते हैं, गर्जित भी करते हैं। उनके अधोभाग में स्थित बादर वायकाय के संघर्ष से उस प्रकार होता है वैसा नहीं हैं परन्तु विद्युदादिको वे चंद्र सूर्य स्वयं प्रवर्तित करते हैं, इस प्रकार प्रथम परतीर्थिक के कथन से इसका कथन विपरीत रूप से अपना मत का प्रतिपादन करके अपने मत का उपसंहार करता हुवा कहता है-(एगे एवमासु) दूसरा परतीर्थिक इस पूर्वकथित प्रकार से अपने मत को प्रतिपादित करता है ॥२॥ इस प्रकार परतीर्थिकों की दो प्रतिपत्तियां का कथन करके अब अपने मत को प्रगट करते हुवे श्री भगवान कहते हैं-(वयं पुण एवं वयामो-ता चंदिमसूरिया णं देवा णं महिड्डिया जाव महाणुभावा वरवत्थधरा, वरमल्लधरा, वराभरणधरा, अवोच्छित्तिणयट्टयाए अण्णे चयति अण्णे उववज्जति) सकल शास्त्र तत्वज्ञ केवलज्ञान दृष्टि से अवलोकन करके मैं इस प्रकार कहता हूं-चंद्र નીચેના ભાગમાં રહેલ બાદર વાયુકાયના સંઘર્ષથી એ રીતે થાય છે, તેમ નથી. પરંતુ વિદ્યદાદિને એ ચંદ્ર સૂર્ય સ્વયં પ્રવર્તિત કરે છે. આ પ્રમાણે પહેલા પરતીથિકના કથનથી Gटी. ते पाताना मतनु प्रतिपादन ४रीने पोजाना मतने। उपस डा२ ४२di ४ छ (एगे एवमाहंसु) पीने ५२तथि°४ मा पूर्व प्रथित प्राथी पाताना भतनु प्रतिपाइन ४२ छे. (२) આ પ્રમાણે પરતીથિકની બે પ્રતિવત્તિનું કથન કહીને હવે પિતાને મત પ્રગટ ४२di श्रीभगवान् ४ छ.-(वयं पुण एवं वयामो ता चदिमसूरिया णं देवाण महिड्ढिया जाव महाणुभावा वरवत्थधरा वरमल्लधरा, वराभरणधरा, अवोच्छित्तिणयट्टयाए अण्णे चयंति अण्णे उववज्जति) ससस व वणशान थी Aqन शने ॥ प्रमाणे ४ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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