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सूर्यप्रशप्तिसूत्रे यानि योजनसहस्राणि परिक्षेपेन आख्यात इति वदेत् ॥-संख्येयानि-कानिचित् संख्या प्रतिपादकानि-अधिकाधिक संख्यकानि योजनसहस्राणि आयामविष्कंभेन-दैर्घ्यव्यासेन परिज्ञप्तस्तथैव अधिकाधिक संख्यकानि योजनसहस्राणि-त्रिगुणासन्न व्यास प्रमाणानि योजनसहस्राणि, परिक्षेपेन-परिधिना च प्रज्ञप्त इति भगवतः समुत्तरमिति । अथ चन्द्रसूर्यविषयकः प्रश्नः 'ता पुक्खवरोदे णं समुद्दे केवइया चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा प्रभासिस्संति वा पुच्छा' तावत् पुष्करवरोदे खलु समुद्रे कियन्तश्चन्द्रा प्राभासयन् वा प्रभासन्ति वा प्रभासिष्यन्ति वा पृच्छा ॥ इत्येवं गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'तहेव ता पुक्खरवरोदेणं समुद्दे संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा' तथैव तावत् पुष्करवरोदे खलु समुद्रे संख्येयाश्चन्द्राः प्राभासयन् वा प्रभासयन्ति वा प्रभासयिष्यन्ति वा । अत्रापि पूर्ववदेव संख्याः -संख्या प्रमाणाः-बहवश्चन्द्रा इति ज्ञेयाः ॥ एवमेव-'जाव संखेजाओ तारागण कोडिकोडीओ सोभंसु वा सोभेति वा सोभिसिस्संति' यावत् संख्येयास्तारागण कोटिकाधिक संख्यात्मक हजारों योजन के आयाम विष्कंभवाले दीर्घ व्यास से प्रज्ञप्स किया है। उसी प्रकार अधिकाधिक संख्यात्मक हजारों योजन प्रमाण वाले व्यास प्रमाण वाला परिक्षेप से कहा हैं।
अब चन्द्र सूर्य विषयक प्रश्न पूछते हैं-(ता पुक्खरवरोदेणं समुद्दे केवइया चंदा पभासेंसु वा, पभासेंति वा, पभासिस्संति वा पुच्छा) पुष्करवरोद समुद्र में कितने चन्द्र प्रभासित होते थे, प्रभासित होते हैं, एवं प्रभासित होंगे? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान कहते हैं(तहेव पुक्खरोदेणं समुद्दे संखेजा चंदा पभासेंसु वा पभासेंति वा, पभासिस्संति वा) पुष्करोद समुद्र में संख्येय चंद्र प्रभासित होते थे, प्रभासित होते हैं एवं प्रभासित होंगे। यहां पर भी पूर्व के समान संख्या प्रमाण से अधिक चंद समझ लेवें। इसी प्रकार (जाव संखेजाओ तारागण कोडीकोडिओ सोभेसु वा सोभेति वा, सोभिस्संति वा) यावत् संख्येय तारागण कोटिकोटि છે. એ જ પ્રમાણે અધિકાધિક સંખ્યાવાળા હજારો યે જન પ્રમાણુવાળા વ્યાસ પ્રમાણુવાળા પરિક્ષેપથી કહેલ છે.
य' सूर्यना समयमा प्रश्न पूछे छे.-(ता पुक्खवरवरोदे णं समुद्दे केवइया चंदा पभासें सु वा, पभासें ति वा, पभासिस्संतिवा पुच्छा) ५०४२१२१४ समुद्रमा दयद्री प्रभासित થતા હતા, પ્રભાસિત થાય છે. અને પ્રભાસિત થશે? આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના प्रश्नने सामान उत्तरमा श्रीमान् ४ छ.-(तहेव पुक्खरवरोदेणं समुद्दे संखेज्जा चंदा पभासे सुवा, पभासें ति वा, पभासिस्संति वा) ४२।४ समुद्रमा से ध्येय याद्री प्रभासित यता હતા, પ્રભાસિત થાય છે, અને પ્રભાસિત થશે ! અહીં પણ પૂર્વની જેમ સંખ્યાના પ્રમાણથી धारे यती समवा. मे प्रमाणे (जाव संखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभे सु वा,
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્રઃ ૨