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________________ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० १०२ एकोनविंशतितम प्राभृतम् इत्येवं पुष्करवरस्य स्वरूपं विज्ञाप्य समचक्रवालत्वं प्रतिपादयति-'ता पुक्खरोदे णं समुद्दे किं समचकवालसंठिए जाव णो विसमचकवालसंठिए' तावत् पुष्करोदः खलु समुद्रः किं समचक्रवालसंस्थितः । यावत् नो विषमचक्रवालसंस्थितः तावदिति पूर्ववत् पूर्वान गौतमस्य प्रश्नस्तदोत्तरार्द्धन भगवत उत्तरमिति ॥ अथात्रस्य विष्कम्भपरिक्षेपविषयकः प्रश्न:-'ता पुक्खरोदेणं समुद्दे केवइयं चकचालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा!' तावत् पुष्करोदः खलु समुद्रः कियता चक्रवालविष्कम्भेन कियता परिक्षेपेन आख्यात इतिवदेत् ॥ कथय भगवन्निति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता पुक्खरोदे णं समुद्दे संखेजाइं जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं संखेज्जाइं जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा' तावत् पुष्करोदः खलु समुद्रः संख्येयानि योजनसहस्राणि आयामविष्कंभेन (तथा) संख्येइस प्रकार पुष्करवर द्वीपसमुद्र का स्वरूप कहकर अब उसके समचक्रबालपने का प्रतिपादन करते हैं-(ता पुक्खरवरोदे णं समुद्दे कि समचकवालसंठिए जाव णो विसमचकवालसंठिए) इस में पूर्वाध से श्री गौतमस्वामी ने प्रश्न किया है कि पुष्करोद समुद्र क्या समचकवाल संस्थित है या विषम चक्रवाल संस्थित हैं ? उत्तरार्ध से श्री भगवान् उत्तर देते हैं-यावत् विषम चक्रवाल संस्थित नहीं है अर्थात् समचक्रवाल विष्कंभ वाला है। __ अब उसका विष्कंभ, परिक्षेप के विषय में प्रश्न करते हैं-(ता पुक्खरोदे णं समुहे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा) पुष्करोद समुद्र का चक्रवाल विष्कंभ कितना है? एवं उसकी परिधि कितनी कही है ? इस प्रकार से श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान कहते हैं-(ता पुक्खरोदे णं समुद्दे संखेजाइं जोयणसहस्साइं आयाम विक्खंभेणं संखेजाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएजा) अधि४डीने तना समय:पास ५नु प्रतिपादन ४२ छ.-(ता पुक्खरखरोदे णं समुद्दे कि सपकपाल पठिर जा जो लिमयकाल पठिर) माना पूर्वाधथी श्रीगौतभस्वाभीये પ્રશ્ન પૂછેલ છે કે પુષ્કરેદ સમુદ્ર શું સમચક્રવાલ સંસ્થિત છે? કે વિષમ ચક્રવાલ સંસ્થિત છે? આ પ્રશ્નને ઉત્તરાર્ધથી શ્રીભગવાન ઉત્તર આપે છે. યાવત વિષમ ચક્રવાલ સંસ્થિત નથી. અર્થાત્ સમચક્રવાલ વિધ્વંભવાળે છે. वेतना विन परिक्षयनसमयमा प्रश्न ४२वामां आवे छे. (ता पुक्खवरोदे ण समुद्दे केवइयं चकवालविक्ख भेण केवइय परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएना) ४२१२४ समुद्रना ચક્રવાલ વિષ્કભ કેટલે છે? અને તેની પરિધિ કેટલી કહી છે? આ પ્રમાણેના શ્રીગૌતમ स्वामीना प्रश्नने सामजीन उत्तरमा श्रीमपान ४ छ.-(ता पुक्खरोदे णं समुद्दे सज्जाइ जोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाई जोयणसहस्साई परिक्खेवेण आहिएत्ति वएज्जा) અધિકાધિક સંખ્યાવાળા હજારો યાજનના આયામ વિઝંભવાળે દીર્ઘવ્યાસવાળે પ્રજ્ઞપ્ત કરેલ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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