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________________ ७४० सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे चन्द्रं स्वात्याः समर्पयति ॥-अत्रोक्तानि सर्वाण्यपि पदानि व्याख्यातान्येव, तेनास्य छाया मात्रमेव पर्याप्तमिति ॥-स्वातीच प्रायः सायं परिस्फुटदृश्यमाननक्षत्रमण्डले सति चन्द्रेण सह योगमुपैति, तेनेदं स्वाती नक्षत्रं नक्तंभागमवगन्तव्यमिति, तथाचाह मूलसूत्रे-'साई जहा सयभिसया' स्वाती यथा-शतभिषा पूर्व यथा शतभिषा भाविता तथैवेदानी स्वाती अभिघातव्या । साच भावना-यथा-'साई खलु णक्खत्ते णत्तं भागे अवडक्खेत्ते पण्णरसमुहुत्ते तपढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, णो लभेइ अवरं दिवसं, एवं खलु साई णक्खत्ते एगं राई चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता जोयं अणुपरियट्टइ, जोयं अणुपरियहित्ता पादो चंदं विसाहाणं समप्पेइ' स्वाती खलु नक्षत्रं नक्तंभागम् अपार्द्धक्षेत्रं पञ्चदशमुहत्ते तत् प्रथमतया सायं चन्द्रेण सार्द्ध योगं युनक्ति, न लभते अपरं दिवसम्, एवं खलु स्वात्रीनक्षत्रके योग का अनुपरिवर्तन करता है, योग का अनुपरिवर्तन कर के सांज के समय चन्द्र को स्वाति नक्षत्र को समर्पित करता है, यहां पर सूत्रोक्त सभी पदों को व्याख्या पहले कही गई है अतः यहां पर छायामात्र से निर्देश किया है। स्वाती नक्षत्र प्रायः सायं समय स्पष्टरूप से दृश्यमान नक्षत्र मण्डल वाला होता है अतः वह उस समय चन्द्र के साथ योग करता है। अतः यह स्वाती नक्षत्र नक्तंभाग जानना चाहिये, मूल सूत्रपाठ में यही कहा है-जो इस प्रकार है-(साई जहा सयभिसया) जिस प्रकार शतभिषा नक्षत्र का कथन किया है उसी प्रकार स्वाती नक्षत्र का कथन जान लेना चाहिये । वह भावना इस प्रकार से हैं-(साई खलु णक्खत्ते णत्तंभागे अवडक्खेत्ते पण्णरस मुहत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, णो लभेइ अवरं दिवसं, एवं खलु साई णक्खत्ते एगं राई चंदेग सद्धिं जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता जोयं अणुपरियइ, जोयं अणुपरियट्टित्ता, पाओ चंदं विसाहाणं समप्पेइ) स्वाती नक्षत्र नक्तंभाग अपाधे क्षेत्र पंद्रह मुहूर्त भोग काल वाला प्रथम सायंकाल નક્ષત્રને સમર્પિત કરે છે, અહીંયાં સૂત્રોક્ત બધા પદની વ્યાખ્યા પહેલાં કહેવામાં આવી ગઈ છે, તેથી અહીંયાં છાયામાત્રથી નિર્દેશ કરેલ છે, સ્વાતી નક્ષત્ર પ્રાયઃ સાંજના સમયે સ્પષ્ટપણથી દશ્યમાન નક્ષત્રમંડળવાળું હોય છે, તેથી તે એ સમયે ચંદ્રની સાથે રોગ કરે છે, તેથી આ સ્વાતી નક્ષત્ર નક્તભાગ સમજવું, મૂળ સૂત્રપાઠમાં એજ કહેલ છે, જે આ પ્રમાણે छ.-(साई जहा सयभिसया) २ प्रमाणे शतभिषा नक्षत्रनु ४थन ४२८ छ. मेरी प्रमाणे स्वातीनक्षत्रनु ४थन सभ० सेयु, ते भावना २ प्रमाणे छे, (साई खलु णक्खत्ते णत्तंभागे अवड्ढमवेत्ते पण्णरसमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोय जोएइ, णो लभेइ अवर दिवस, एवं खलु साई णक्खत्ते एगं राई चंदेण सद्धि जोयं जोएइ, जोयं जोइत्ता जोय अणुपरियट्टइ, जोय अणुपरियट्टित्ता पाओ चंद विमाहाणं समप्पेइ) स्वाती नक्षत्र नतमा २५पा क्षेत्र પંદર મુહ ભેગકાળવાળું પ્રથમ સાંજના રામયે ચંદ્રની સાથે લેગ કરે છે, બીજે દિવસ તેને શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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