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________________ --- _ ६४१ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० ३१ नबमं प्राभृतम् येदित्यर्थः ॥ इत्थं गौतमस्य शङ्कां श्रुत्वा तत्र भगवान् महावीरस्वामी स्वमतेन देशविभागतः पौरुषी छायां तथा तथा अनियतप्रमाणां वक्ष्यति, परतीथिकास्तु प्रतिनियतामेव प्रतिदिवसं देशविभागेनेच्छन्ति केवलं दिवसविभागे प्रतिपादयन्ति, तेन प्रथमतस्तन्मतान्येव उपदर्शयति-'तत्थ' इत्यादि, 'तत्थ इमाओ छण्णउइ पडिवत्तिो पण्णत्ताओ' तत्र खलु इमाः पग्णवतिः प्रतिपत्तयः प्रज्ञप्ताः तत्र-तस्मिन देशविभागेन प्रतिदिवसं प्रतिनियतायाः पौरुष्याश्छाया विषये इमा:-वक्ष्यमाणस्वरूपाः षण्णवति:-पण्णवतिसंख्यकाः प्रतियपत्तः-परमतरूपाः प्रज्ञप्ताः-प्रतिपादिताः सन्ति-तद्यथा-'तत्थ एगे एक्माहंसु' तत्र एके एवमाहुः ॥ तत्र-तेषां षण्णवतेः परतीथिकानां मध्ये एके-प्रथमा स्तीर्थान्तरीयाः एवं वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वकीयं मन्तव्यमाहुः-प्रतिपादयन्ति ॥ 'ता अस्थि णं से देसे जंमि णं देसंसि सूरिए एगपोरिसीयं छायं णिवत्तेइ, एगे एवमासु' तावत् अस्ति प्रकार की श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर भगवान् महावीरस्वामी अपने मत से देश का विभागपूर्वक उस उस प्रकार की पौरुषी छाया को अनियत प्रमाणवाली कहते हैं। परतीर्थिक प्रतिदिवस देशविभाग पूर्वक प्रतिनियत रूप से केवल दिवस के विभाग में प्रतिपादित करते हैं । अतः पहले उन परतीथिकों के ही मत का कथन करते हैं-(तत्थ) इत्यादि । (तत्थ इमाओ छण्णउइ पडिवत्तिओ पण्णताओ) उस प्रकार के देश विभाग से प्रतिदिन में प्रतिनियत प्रमाणवाली पौरुषी छाया के विषय में ये वक्ष्यमाण स्वरूपवाली छियानवें संख्यात्मक परमतरूप प्रतिपत्तियां प्रतिपादित की गई हैं-जो इस प्रकार से हैं-(तत्थ एगे एवमासु) उन छियानवें परमत वादियों में कोइ एक इस कथ्यमान प्रकार से अपने मत को प्रतिपादन करते हैं (ता अस्थि णं से देसे जसिणं दिवसंसि सूरिए एगपोरिसियं छायं णिवत्तेह, एगे एव माहंसु) ऐसा प्रदेश है कि माने पृथ्वी का कोई भाग ऐसा है कि તે યથાર્થ રિથતિ આપ કહો. આ પ્રમાણે શ્રી ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નને સાંભળીને શ્રી મહાવીર પ્રભુ પાતાના મતથી દેશના વિભાગ પૂર્વક તે તે પ્રકારની પૌરૂષી છાયાને અનિયત પ્રમાણુવાળી કહે છે. પરતીર્થિક પ્રતિદિવસ દેશ વિભાગપૂર્વક પ્રતિનિયતપણાથી કેવળ દિવસના વિભાગમાં પ્રતિપાદિત કરે જેથી પહેલાં એ પરતીથિકના જ મતનું કથન ४२ छ (तत्थ) त्याहि. (तत्थ इमाओ छण्णउइ पडिवत्तिओ पत्ताओ) 0 प्रायना हे विली प्रतिદિવસે પ્રતિનિયત પ્રમાણુવાળી પૌરૂષી છાયાના સંબંધમાં આ વયમાણ સ્વરૂપવાળી છનું સંખ્યાવાળી મતાન્તર રૂપે પ્રતિપત્તિ પ્રતિપાદિત કરેલ છે, જે આ પ્રમાણે છે(तत्थ एगे एवमासु) से छ-नु ५२मतवादीयोभा अध मे४ मा १क्ष्यमाए प्रा२नी पाताना भतर्नु प्रतिपादन ४२ छे, (ता अस्थि णं से देसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए एगपोरिसीयं छायं શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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