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सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टोका सू० ११ प्रथमप्राभृते प्रथमप्रभृप्राभृतम्
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षण्मासे अस्ति द्वादशमुहूर्त्ता रात्रिः सापि तस्मिन्नेव द्वितीयषण्मासपर्यवसानभूतेऽहोरात्रे, नपुनरस्त्येतत् यदुत द्वादशमुहूर्त्ता दिवसो भवति, तथा प्रथमे वा षण्मासे नास्त्येतत् यदुत पञ्चदशमुहूर्त्ती दिवसो भवति, नास्त्येतत् यदुत पञ्चदशमुहूर्त्ता रात्रिः, किं सर्वथा नेत्याहनान्यत्र रात्रिन्दिवानां वृद्ध्यपवृद्धितोऽन्यत्र न भवति, रात्रिन्दिवानां तु वृद्धवृद्धौ च, भवत्येव पञ्चदशमुहर्त्ता रात्रिः, पञ्चदशमुहूर्ती दिवसः, ते च वृद्ध्यपवृद्धी रात्रिन्दिवानां कथं भवत इत्याह- 'मुहुत्ताणं वा चयोवचएणं' मुहूर्त्तानां वा चयोपचयौ मुहूर्त्तानां पञ्चदशसंख्यानां, चयोपचयेन, चयेन - अधिकेन वृद्धिः, अपचयेन - हीनत्वेनापवृद्धि:, इयमत्र भावना - परिपूर्णपञ्चदशमुहर्त्तप्रमाणे दिवसरात्री न भवतः, हीनाधिकपञ्चदशमुहर्त्तप्रमाणे तु दिवसरात्री भवतः, एवम् 'णण्णत्थ वा अणुवायगईए' नान्यत्र वा अनुपातगतेः, अत्र वा शब्दः प्रकारान्तरसूचने अन्यत्र अनुपातगते:- त्रैराशिकप्रमाणानुसारगतेः, पञ्चदशमुहूर्त्तो
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रात्री होती है वह भी उसी दूसरे छह मास के अन्तिम भूत अहोरात्र में होती है, ऐसा नहीं है कि बारह मुहूर्त का दिवस होता है तथा पहले छह मास में यह नहीं होता है कि पंद्रह मुहूर्त का दिवस होता है और ऐसा भी नहीं है कि पंद्रह मुहूर्त की रात्री होती है तो क्या सर्वथा ऐसा नहीं है इसके लिये कहते हैं अन्यत्र रात्रिदिवस का वृद्धिक्षय नहीं होता है अतः अन्यत्र नहीं होता है रात्रिदिवस का क्षय वृद्धी होने पर ही पंद्रहमुहूर्त की रात्री एवं पंद्रह मुहूर्त का दिवस होता है । वह रात्रि दिवस का क्षय वृद्धी किस प्रकार होता है ? इसके लिये कहते हैं (मुहुत्ताणं वा चयोवचएणं ) पंद्रह मुहूर्त के क्षय वृद्धी से माने चय-अधिक होने पर वृद्धी, अपचय-कम होने पर अपवृद्धी माने क्षय होता है यहां पर इस प्रकार से समझना चाहिये - परिपूर्ण पंद्रह मुहूर्त प्रमाणवाला दिवस या रात्री नहीं होता है न्यूनाधिक पंद्रह मुहूर्त प्रमाणवाला दिवसरात्र होता है । इसी प्रकार (णण्णत्थ वा अणुवायगईए) यहां पर वा शब्द प्रकारान्तर सूचक है अन्यत्र अनुपातगति माने त्रैराशिक प्रमाणानुसार गति से पंद्रह તથા પહેલા છ માસમાં એમ નથી થતું કે પ ંદર મુહૂર્તીના દિવસ હોય છે. અને એવુ પણ નથી હાતુ કે પંદર મુહૂર્તની રાત્રી હોય તે શું કાયમ જ એમ થતું નથી ? એ પ્રશ્નના સમાધાન માટે કહે છે અન્યત્ર રાતદિવસના વૃદ્ધિ ક્ષય નથી હોતાં તેથી ત્યાં તેમ નથી થતુ રાત્રિ દિવસના ક્ષયવૃદ્ધિ થાય ત્યારે જ પંદર મુહૂત'ની રાત અને પંદર મુહૂત ના દિવસ હોય छे. ते शत द्विवसना वृद्धी क्षय देवी रीते थाय छे ? तेना सभाधान निमित्ते उडे छे, (मुहुत्तणं वाचयोवच णं) पं२ मुहूर्तनी वधघटथी भेटले सहींयां सेवी रीते सम
- परिपूर्ण पंढर भुहूर्त प्रभाणुवाणा शतदिवस होय छे से शते (णण्णत्थ वा अणुवायगईए) अडींयां राशम् अाशन्तर सूया हे. अन्यत्र अनुयातगति खेटले त्रैराशिष्ठ ગણિતના પ્રમાણાનુસાર ગતિથી પંદર મુહૂર્તના દિવસ અને પ ંદર મુર્હુતની રાત હોતા
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧