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________________ ६०२ सूर्यप्रशप्तिसूत्रे मागच्छंति दाहिणपाईण मुग्गच्छंति पाईणउईण मागच्छंति, पाईणउईण मुग्गच्छंति उईणपाईण मागच्छंति' इदं च सूत्रं जम्बूद्वीपगतागमसूत्रवत् परिभावनीयम् , पूर्व तद्दर्शितमेव, किमत्र लेखबाहुल्येन ग्रन्थविस्तृत्या चेति, नवरमत्र किश्चित् केवलं सूर्याश्चत्वारो वेदितव्याः , 'चत्तारि य सागरे लवणे' इतिवचनदर्शनात् । ते च जम्बूद्वीपगत सूर्याभ्यां सह समश्रेण्या प्रतिबद्धाः भवन्ति, तद्यथा-द्वौ सूयौं एकस्य जम्बूद्वीपगतस्य सूर्यस्य श्रेण्या प्रतिबद्धौ द्वौ द्वितीयस्य जम्बूद्वीपगतस्य सूर्यस्य, तत्र यदैकः सूर्यो जम्बूद्वीपे दक्षिणपूर्वस्या मुद्गच्छति तदा तत् समश्रेण्या प्रतिबद्धौ द्वौ सूर्यों लवणसमुद्रे तस्या मेव दक्षिणपूर्वस्या मुदयमागच्छत स्तदेव जम्बूद्वीपगतेन सूर्येण सह तत् समश्रेण्या प्रतिबद्धौ द्वावपरौ लवणसमुद्रे अपरोत्तरस्यां दिशि उदयमासादयतः, तत उदयविधिरपि द्वयोपाईण मुग्गच्छंति, पाईणउईण मागच्छंति, पाईणउईण मुग्गच्छंति उईण पाईण मागच्छति) यह सूत्र जंबूद्वीप में कहे गये उदय विषयक सूत्र के समान समज लेवें पहले यह कह ही दिया है अतः लेख बाहुल्य करने से एवं ग्रन्थ विस्तार से क्या प्रयोजन है। यहां पर विशेषता केवल इतनी ही है कि यहां पर चार सूर्य कहे हैं । (चत्तारि य सागरे लवणे) यह आगम वचन से ज्ञात हैं। वे चार सूर्य जम्बूद्वीप में रहे हुवे दो सूर्यो के साथ समश्रेणी से प्रतिबद्ध होते हैं । तथा दो सूर्य जम्बूद्वीप में रहे हुवे दूसरे सूर्य की श्रेणी से प्रति बद्ध होते हैं । वहां पर जब एक सूर्य जम्बूद्वीप में दक्षिण पूर्व में उदित होता है तब उस की समश्रेणी से प्रतिबद्ध दो सूर्य लवणसमुद्र में उसी दक्षिण पूर्व दिशा में उदित होते है। तब जम्बूद्वीप में रहे हुवे सूर्य के साथ उसकी समश्रेणी से प्रतिबद्ध दो सूर्य लवणसमुद्र में उसी दक्षिण पूर्व दिशा में उदित होते है। तब जम्बूद्वीप में रहे हुवे सूर्य के साथ उसकी समश्रेणी से प्रातबद्धं दूसरे दो सूर्य लवणसमुद्र में उत्तरपश्चिम दिशा में उदय को प्राप्त सूरिया उईणपाईण मुग्गच्छंति, पाईणदाहिणमागच्छंति, पाईणदाहिणमुग्गच्छंति दाहिणपाईण मागच्छंति, दाहिणपाईणमुग्गच्छंति, पाईणउईणमागच्छति, पाईण उईण मुगगच्छंति उईण पाईण मागच्छंति) आ सूत्र भूमी वामां आवेस य संधी सूत्रनी समान સમજી લેવું. આ પહેલાં કહી જ દીધું છે, જેથી લેખ બાહુલ્ય ભયથી અને ગ્રન્થવિસ્તારથી શું પ્રજન છે ? અહીંયાં વિશેષતા કેવળ એટલી જ છે કે અહીંયાં ચાર સૂર્યો डापानु छ, (चत्तारि सूरिया सागरे लवणे) मा मागम क्यनथी । पात सिद्ध छे, એ ચાર સૂર્યો જબૂદ્વીપમાં રહેલા બે સૂર્યોની સાથે સમશ્રેણીથી પ્રતિબદ્ધ થાય છે. જેમકે બે સૂર્યો જંબૂદ્વીપમાં રહેલા એક સૂર્યની શ્રેણીથી પ્રતિબદ્ધ થાય છે અર્થાત્ રેકાય છે. તથા બે સૂર્ય જંબુદ્વીપમાં રહેલા બીજા સૂર્યની શ્રેણીથી પ્રતિપદ્ધ થાય છે, ત્યાં જ્યારે એક સૂર્ય જંબૂદ્વીપમાં દક્ષિણ પૂર્વમાં ઉદિત થાય છે ત્યારે તેની સમશ્રણથી પ્રતિબદ્ધ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્રઃ ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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