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________________ ५२२ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे वयं पुनः केवलज्ञानेनोपलब्धकरतलकलितामलकचत् सकलशास्त्रतत्वावलोकनज्ञानवन्तः पुनरेवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण वदामः-वस्तुतत्त्वमुपपादयामः। तमेव प्रकारमाह-'ता-तीसं तीसं मुहुत्ते सरियस्स ओया अवटिया भवइ, तेण परं सूरियस्स ओया अणवट्ठिया भवइ' तावत् त्रिंशतं त्रिंशतं मुहूर्तान् सूर्यस्यौजोऽवस्थितं भवति, तेन परं सूर्यस्यौजोऽनवस्थितं भवति ॥ तावदिति प्राग्वत् जम्बूद्वीपे प्रतिवर्ष परिपूर्णतया त्रिंशतं त्रिंशतं मुहूर्तान् यावत् सूर्यस्यौजःप्रकाशोऽवस्थितं-स्थिर मेकरूपं भवति । अर्थात् सौरसम्वत्सरपर्यन्ते यदा सूर्यः सर्वाभ्यन्तरं मण्डलमुपसंक्रम्य चारं चरति तदा सूर्यस्य जम्बूद्वीपगतमोजः परिपूर्णप्रमाणं त्रिंशतं मुहूर्तान् यावत् भवति । तेन परं-ततः परं-सर्वाभ्यन्तरान्मण्डलात्परं सूर्यस्यौजोऽनवस्थितं-चञ्चलं भवति । कथमनवस्थितमिति जिज्ञासानिवृत्यर्थमाह-'छम्मासे सरिए ओयं णिवुड़ेइ छम्मासे सरिए ओयं अभिवुड़ेइ' षण्मासान् सूर्य ओजो निर्वर्द्धयति, षण्मासान् सूर्य ओजोऽभिवर्द्धहुवे कहते हैं-जो इस प्रकार से है-(ता तीसं तीसं मुहुत्ते सूरियस्स ओया अवट्ठिया भवइ तेण परं सूरियस्स ओया अणवहिया भवई) तीस तीस मुहूर्त पर्यन्त सूर्य का ओज माने प्रकाश अवस्थित रहता है । तत्पश्चात् सूर्य का प्रकाश अनव स्थित होता है । कहने का भाव यह है कि जंबूद्वीप में प्रतिवर्ष में परिपूर्णता से तीस मुहूर्त पर्यन्त सूर्य का प्रकाश अवस्थित माने स्थिर एक रूप से रहता है, अर्थात् सौरसंवत्सर पर्यन्त में जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल में जाकर के गति करता है तब जंबूद्वीप में गया हुवा सूर्य का तेज परिपूर्ण तीस मुहूर्त प्रमाण का होता है तत्पश्चात् माने सर्वाभ्यन्तरमंडल के पश्चात् सूर्य का प्रकाश अनवस्थित माने अस्थिर अर्थात् चंचल होता है अनवस्थित किस कारण से होता है ? इस जिज्ञासा की निवृत्ति के लिये सूत्रकार कहते हैं-(छम्मासे सरिए ओयं णिवुड्डेइ छम्मासे सूरिए ओयं अभिवड्डेइ) छह मास पर्यन्त सूर्य का प्रकाश न्यून होता है एवं छहमास सूर्य का प्रकाश वृद्धिंगत होता है। शन लगवान् पोताना भत प्रगट ४२di छ :-(ता तीसं तीसं मुहुत्ते सूरियस्स ओया अवठिया भवइ तेण परं सूरियस ओया अणवठिया भवई) त्रीस त्रीस मुडूत ५यन्त સૂર્યને જ અર્થાત્ પ્રકાશ અવસ્થિત રહે છે. તે પછી સૂર્યને પ્રકાશ અનવસ્થિત થાય છે. કહેવાને ભાવ એ છે કે- જંબુદ્વીપમાં પ્રતિવર્ષે પરિપૂર્ણ રીતે ત્રીસ મુહૂર્ત પર્યત સૂર્યને પ્રકાશ અવસ્થિત એટલે કે સ્થિર એકરૂપે રહે છે, અર્થાત્ સૌર વર્ષ સંવત્સર સુધીમાં જ્યારે સૂર્ય સભ્યન્તરમંડળમાં જઈને ગતિ કરે છે, ત્યારે જબૂદ્વીપમાં ગયેલ સૂર્યનું તેજ પૂરેપૂરૂં ત્રીસ મુહૂર્ત પ્રમાણુનું હોય છે, તે પછી એટલે કે સભ્યન્તરમંડળની પછી સૂર્યને પ્રકાશ અનવસ્થિત અર્થાત્ અસ્થિર ચંચળ થાય છે, અનવસ્થિત श। ।२४थी थाय छे से ज्ञासानी निवृत्ति माटे सूत्र४२ ४ छ-(छम्मासे सूरिए ओयं णिवुड्ढेइ छम्मासे सूरिए ओयं अभिवड्ढेइ) छ भास पर्यन्त सूर्य ना ४१ न्यून थाय શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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