SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ramFEEcार सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे सप्तमस्याभिप्रायः, एके एवमाहुरिति ॥७॥ 'एगे पुण एवमासु-ता-अणुसंवच्छरमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु ८' एके पुनरेवमाहुस्तावद् अनुसम्वत्सरमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहुः ८ ॥-तावदिति प्राग्वत्, एके-अष्ठमाः कथयन्ति यत् अनुसंवत्सरमेव-प्रतिसम्वत्सरमेव सूर्यस्यौजः-प्रकाशः, अन्यदुत्पद्यते अन्यच्चापति, प्रतिवर्षमेव तेजसि पार्थक्यं भवतीत्यष्टमाः प्रजल्पन्ति, एके एवमाहुरिति ॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता-अणुजुगमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु ९' एके पुनरेवमाहुः स्तावत् अनुयुगमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते अन्यदपैति, एके एवमाहुः ९ ॥ एके-नवमाः प्रजल्पन्ति यत् अनुयुगमेव-प्रतियुगमेव सूर्यस्य प्रतिपादन करता हुवा कहता है कि प्रतिअयन में माने छह मास में सूर्य के प्रकाश में भिन्नता दिखती है प्रति ऋतु में नहीं इस प्रकार से सातवें मतवादी का अभिप्राय है कोई एक इस प्रकार से अपना मत कहता है ।७। (एगे पुण एवमाहंसु ता अणु संवच्छर मेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) ८ कोई एक इस प्रकार कहता है कि प्रति संवत्सर में सूर्य का प्रकाश अन्य ही उत्पन्न होता है एवं अन्य ही विनष्ट होता कोई एक इस प्रकार से कहता है। अर्थात् कोई एक आठवां तीर्थान्तरीय कहता है कि प्रति संवत्सर में सूर्य का प्रकाश अन्य ही उत्पन्न होता है तथा अन्य ही विनाश को प्राप्त होता माने पृथ होता है इस प्रकार आठवें मतवादी का प्रजल्पन है कोई एक इस प्रकार कहता है ॥८॥ (एगे पुण एवमासु ता अणुजुगमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पजइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु)९ कोई एक इस प्रकार कहता है कि प्रतियुग में सूर्यका ओजस अन्य उत्पन्न होता हैं तथा अन्य ही विनष्ट होता है कोई एक કઈ એક સાતમે મતવાદી પોતાના મતનું પ્રતિપાદન કરતાં કહે છે કે- દરેક અયનમાં માને છ છ મહિને સૂર્યના પ્રકાશમાં જુદાઈ દેખાય છે, દરેક તુમાં નહીં. આ પ્રમાણે સાતમા મતવારીને અભિપ્રાય છે. કોઈ એક આ પ્રમાણે પિતાના મતનું કથન ४२ छ. [७५ (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुसंवच्छरमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) ८ मे से रीते ४ छ 3-४२४ संवत्सरमा સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય જ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય જ વિનાશ પામે છે. કોઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે અર્થાત કઈ એક આઠમે અન્ય મતવાદી કહે છે કે દરેક સંવત્સરમાં સૂર્યને પ્રકાશ અન્ય સ્પન્ન થાય છે અને અન્ય નાશ પામે છે, એટલે કે અલગ થાય છે. આ પ્રમાણે આઠમા મતવાદીનું જલપન છે, કેઈ એક આ પ્રમાણે पोतानो मत ४ छे. 1८1 (एगे पुण एवमासु ता अणुजुगमेव सूरियस ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ एगे एवमाहेसु) ९ मे मेवी रीत ४ छ ३-४२४ युगमा શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy