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________________ ५०९ सूर्यक्षप्तिप्रकाशिका टीका सू० २७ षष्ठं प्राभृतम् मतमिति, एके एवमाहुरित्युपसंहरतीति ५॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता-अणु उउ मेव सूरियस्स ओया अण्णा उपज्जइ अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु ६,' एके पुनरेवमाहुस्तावत् अनुऋतुमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते, अन्यदपैति, एके एक्माहुः६॥ अत्रापि तावदिति प्राग्वत् एके षष्ठाः कथयन्ति यत् अनुऋतुमेव-प्रतिऋतुमेव सूर्यस्यौजः-प्रकाशः अन्यदुत्पद्यते अन्यच्चापैति, एके एवमाहुरिति ६॥ 'एगे पुण एवमासु-ता-अणु अयणमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पजइ अण्णा अवेइ, एगे एवमाहंसु ७' एके पुनरेवमाहुस्तावत् अनुअयनमेव सूर्यस्यौजोऽन्यदुपपद्यते, अन्यदपैति, एके एवमाहुः ॥७॥ तावदिति प्राग्वत् एके-सप्तमः प्रतिपादयन्ति यत् अनु अयनमेव-प्रत्ययनमेव-प्रतिषण्मासमेव सूर्यस्यौजसि भिन्नत्व मुत्पद्यते, न प्रतिऋताविति विनष्ट होता है । प्रतिमास में ही सूर्य के तेज में पृथक्ता प्रतिभासित होता है इस प्रकार से पांचवें मतान्तर वादी का मत है कोई एक इस प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता इस प्रकार ऊपसंहार है।५। (एगे पुण एवमासु-ता अणु उउ मेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ अण्णा अवेइ, एगे एवमासु) ६ कोई एक इस प्रकार कहता है कि प्रति ऋतु में सूर्य का ओजस अन्य ही उत्पन्न होता है तथा अन्य ही विनाशित होता है कोई एक इस प्रकार कहता है ।६। अर्थात् कोइ छठा मतान्तरवादी कहता है कि प्रति ऋतु में सूर्य का ओजस माने प्रकाश अन्य ही उत्पन्न होता है एवं अन्य ही विनष्ट होता है कोई एक इस प्रकार अपना मत प्रदर्शित करता है।६। (एगे पुण एवमासु ता अणु अयणमेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जह अण्णा अवेह, एगे एवमासु) ७। कोई एक इस प्रकार से कहता है कि प्रति अयन में सूर्य का ओजस अन्य ही उत्पन्न होता है एवं अन्य ही विनष्ट होता है। अर्थात् कोई एक सातवां मतवादी अपने मत का દરેક મહિને જ સૂર્યના તેજમાં અલગપણું પ્રતિભાસિત થાય છે. આ પ્રમાણે પાંચમા મતાન્તરવાદીને મત છે. કોઈ એક આ પ્રમાણે પોતાને મત પ્રદર્શિત કરે છે. આ પ્રમાણેને ઉપસંહાર છે. પિ (एगे पुण एवमासु ता अणु उउ मेव सूरियस्स ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) ६ २७ २मा प्रमाणे ४९ छ 3-६२४ ऋतुमा सूर्य ने। मास अन्य २४ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય જ વિનાશ પામે છે, કેઈ એક આ પ્રમાણે પિતાને મત કહે છે. અર્થાત્ કઈ એક છ મતવાદી કહે છે કે-દરેક ઋતુમાં સૂર્યને ઓજસ એટલે કે પ્રકાશ અન્ય જ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય જ નાશ પામે છે. કેઈ એક આ પ્રમાણે पोताना मत प्रहशित ४२ छ. ।। (एगे पुण एवमाहंसु ता अणुभयणमेव सूरियरस ओया अण्णा उप्पज्जइ, अण्णा अवेइ एगे एवमाहंसु) • 35 वी रीते ४ छ । प्रत्ये અયનમાં સૂર્યનું ઓજસ અન્ય જ ઉત્પન્ન થાય છે અને અન્ય જ વિનષ્ટ થાય છે. અર્થાત્ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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