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________________ सूर्यज्ञमिप्रकाशिका टीका सू० २६ पञ्चमं प्राभृतम् ४२५ पडिया आहियति वज्जा, एगे, एवमाहंसु १९' एके पुनरेवमाहुस्तावत् पर्वतेन्द्रे खल पर्वते - सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता आख्याता इति वदेत्, एके एवमाहुः ||१९|| - एके पुन रूनविंशति स्थानीया एवं वदन्ति तावत्पर्वतेन्द्रे खलु पर्वते - पर्वतानामिन्द्रः पर्वतेन्द्र स्तस्मिन् पर्वतेन्द्रे तन्नामके खलु पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता भवतीति आख्याता - कथितेति वदेत्स्वशिष्येभ्य उपदिशे दिन्युपसंहरति - एके एवमाहु रिति ॥ १९ ॥ ' एगे पुण एवमाहंसु तापव्ययंसि णं पव्वयंसि सूरियस लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु २०' एके पुनरेव माहु स्तावत् पर्वतराजे खल पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता आख्याता इति वदेत्, एके एवमाहुः || - एके पुन विंशतितमाः प्रतिवादिन एवं वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमन्तव्यं कथयन्ति, तावदिति प्राग्वत् पर्वतराजे - पर्वतानां राजा पर्वतराज स्तस्मिन् पर्वत मासु-ता पवईसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहिताति वजा, एगे एवमाहंसु || १९|| कोई एक इस प्रकार कहता है कि पर्वतेन्द्र नाम के पर्वत पर सूर्य की लेश्या प्रतिहत होती है ऐसा स्वशिष्यों को कहें, कोई एक इस प्रकार अपने मत का कथन करता है । अर्थात् उन्नीसवें मतावलम्बी कहता है की पर्वतेन्द्र नामके पर्वत में माने पर्वतों का जो इन्द्र पर्वतेन्द्र उस पर्वतेन्द्र नामके पर्वत में सूर्य की लेश्या प्रतिहत होती कही गई है इस प्रकार स्वशिष्यों को उपदेश करें ऐसा कोई एक कहता है ॥ १९ ॥ ( एगे पुण एवमाहंसु - ता पव्वयरायंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पहिया आहियत्ति वजा, एगे एवमाहंसु ||२०|| कोई एक इस प्रकार कहता है कि पर्वत राज नामके पर्वत में सूर्य की लेइया प्रतिहत होती कही है ऐसा स्वशिष्यों को कहे ऐसा कोई एक कहता है । अर्थात् वीसवें मतावलम्बी इस वक्ष्यमाण प्रकार से स्वमतको कहता है पर्वतराज माने पर्वतों का जो राजा एवमाहंसु ता पव्वसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेम्सा पहिया आहिताति वज्जा एगे एव मासु ) १९ अ सेवी रीते हे छे -पर्वतेन्द्र नामना पर्वत पर सूर्यनी सेश्या प्रतिहत થાય છે, એ પ્રમાણે સ્વશિષ્યાને કહેવુ, કોઈ એક આ પ્રમાણે પેાતાના મત વિષે થન કહે છે. અર્થાત્ ઓગણીસમા મતાવલમ્બી કહે છે કે પતેન્દ્ર નામવાળા પર્વતમાં એટલે કે પ તામાં જે ઈંદ્ર સમાન હેાય તે પતેન્દ્ર એવા એ પતેન્દ્ર નામના પર્વતમાં સૂની લેશ્યા પ્રતિહત થતી કહેલ છે, આ પ્રમાણે પેાતાના શિષ્યાને ઉપદેશ આપવા એ शते अर्ध मे पोतानो भत हर्शावे छे. 1961 ( एगे पुण एवमाहंसु ता पव्वयरायसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा, एगे एवमाहंमु) अ मे४ मेवी રીતે કહે છે કે પૂતરાજ નામના પર્વતમાં સૂર્યની લેશ્યા પ્રતિહત થતી કહેલ છે, પ્રમાણે પેાતાના શિષ્યાને કહેવુ' એ પ્રમાણે કોઈ એક કહે છે, અર્થાત વીસમે મતવાદી આ કહેવામાં આવનાર પ્રકારથી પોતાના મતના સંબંધમાં કથન કરે છે કે પર્વતરાજ એટલે કે શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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