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________________ ४९४ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे वर्त्तते यः स धरणिकीलक स्तस्मिन् धरणिकीलके - तन्नामके पर्वते खलु सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता भवति - प्रतिरुद्धा भवतीति स्वशिष्येभ्य उपदिशे दित्युपसंहरति - एके एवमाहुरिति ||१७|| 'एगे पुण एवमाहंसु-ता- धरणिसिंगंसि णं पव्वयंसि सूरियस लेस्सा पहिया आहियति वज्जा, एगे एवमाहंसु ९८ ' एके पुनरेवमाहु स्तावद् धरणिश्रृङ्गे खल पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता आख्याता इति वदेत्, एके एवमाहुः ||१८|| - एके पुनरष्टादशस्थानीय एवं कथयन्ति - वक्ष्यमाणप्रकारं वदन्ति तावदिति सर्वत्र प्राग्वत् भावनीयम् । धरणिशृङ्गे - धरण्या - पृथिव्याः श्रृङ्गमिव वर्त्तते यः धरणिशृङ्ग स्तस्मिन् धरणिशृङ्गे खलु पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता भवतीत्याख्यातेति वदेत् - स्वशिष्येभ्यः कथयेदित्युपसंहरति - एके Sanga || १८ || 'गे पुण एवमाहंसु - ता पव्वइंदंसि णं पव्वयंसि सूरियस लेस्सा कहता है की धरणीकील माने धरणी माने पृथिवी उसका कीलक रूप माने मध्यवर्ति माप दंडके समान जो हो सो धरणीकीलक उस धरणीकीलक नाम के पर्वत में सूर्य की लेश्या प्रतिहत होती है माने प्रतिरुद्ध होती है ऐसा स्वशिष्यों को समझावें कोइ एक इस प्रकार से अपना मत दिखलाता है ||१७|| 'एगे पुण एवमाहंसु ता धरणिसिंगंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पहिया आहियत्ति वएजा, एगे एवमाहंस) १८ कोई एक इस प्रकार करता है कि धरणि शृङ्ग नाम के पर्वत के ऊपर सूर्य की लेश्या प्रतिहत कही है ऐसा अपने शिष्यों को कहे कोई एक इस प्रकार अपने मत को कहता है । अर्थात् अठारहवां मतलबी वक्ष्यमाण प्रकार से कहता है कि धरणीशृङ्ग माने धरणी माने पृथिवी उसके सींग के समान जो हो वह धरणीशृङ्ग उस धरणीशृङ्ग पर्वत में सूर्य की लेइया प्रतिहत होती है ऐसा स्व शिष्यों को कहे इस प्रकार कोई एक अठारहवें मतावलम्बी अपना मत प्रगट करता है || १८ || (एगे पुण एव કહે છે કે ધરણીકિલ એટલે કે—ધરણી એટલે પૃથ્વી તેના કલક રૂપ એટલે કે મધ્યમાં આવેલ માપ દંડના જેવા જે હોય તે ધરણી કિલક કહેવાય છે, એ ધરકિલક નામના પતમાં સૂર્યની લેશ્યા પ્રતિહત થાય છે. એટલે કે રાકાણવાળી થાય છે તેમ પેાતાના शिष्याने समन्नववु प्रभा पोतानो भत मतावे छे. १७ (एगे पुण एवमाहंसु ता धरणिसिंगंसि णं पव्वयंसि सूरियस लेस्सा पहिया आहियत्ति वएज्जा एगे एवमाहंस) १८ मे आ प्रमाणे उडे छेडे धरणीचं नाभना पर्वतनी उपर सूर्यनी લેશ્યા પ્રતિહત થતી કહેલ છે, એ પ્રમાણે પોતાના મત દર્શાવે છે, અર્થાત્ અઢારમે મતાવલંબી આ આગળ કહેવામાં આવનાર પ્રકારથી પોતાના મત વિષે કહે છે કે-ધરણી શ્રૃંગ એટલે કે ધરણી એટલે પૃથ્વી તેના શિખરના સરખુ જે હાય તે ધરણીશ્રૃંગ એ ધરણીશું ગપ તમાં સૂર્યની લેફ્યા પ્રતિહત થાય છે. એ પ્રમાણે પેાતાના શિષ્યાને કહેવુ. या प्रमाणे अर्ध ४ मढारमा भतावसजी पोतानो भत हर्शाचे छे, 1१८1 ( एगे पुण શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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