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________________ ४८७ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० २६ पञ्चमं प्राभृतम् भवतीति आख्यातेति स्वशिष्येभ्य उपदिशे दित्युपसंहरति-एके एवमाहुरित्यष्टमस्य मतमिति ॥८॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता लोयमझंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु ९' एके पुनरेवमाहु स्तावल्लोकमध्ये खलु पर्वते सूर्यस्य लेश्या प्रतिहता आख्याता इति वदेत्, एके एवमाहुः ॥९॥-एके पुनर्नवमाः, एवं प्रजल्पन्ति-यद् भवतां सर्वेषां मत मनाषेम्, आष च मम मतं तावत् श्रयतां-सूर्यस्य लेश्या तु लोकमध्ये खलु पर्वते-लोकस्य-तियग्लोकस्य-समस्तस्य भूलोकस्य मध्ये तिष्ठति यः स लोकमध्यस्तस्मिन् लोकमध्ये खलु पर्वते प्रतिहता-प्रतिरुद्धगतिका भवतीति प्रामाणिक मम मतं स्व शिष्येभ्य उपदिशे दित्युपसंहरति-एके एवमाहुरिति ॥९॥ 'एगे पुण एवमाहंसु -ता लोगनाभिंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएजा, एगे एवइस प्रकार आठवें मतावलम्बी का अभिप्राय है ।८। (एगे पुण एवमाहंसु-ता लोयमज्झसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा एगे एवमासु) ९। कोइ एक इस प्रकार से कहता है कि लोकमध्य नाम के पर्वत में सूर्य की लेश्या प्रतिहत होती कही है ऐसा स्वशिष्यों को कहेंए कोई एक इस प्रकार से अपना मत कहता है अर्थात् कोई एक नववां तीर्थान्तरोय इस प्रकार कहता है आप सभी का मत अनार्ष है माने असमीचीन है मेरा मत ही आर्ष माने सम्यक् प्रकार का है मेरा मत इस प्रकार का है कि-सूर्य की लेश्या लोकमध्य नाम के पर्वत में लोक माने तिर्यक्लोक अर्थात् समस्त भूलोक के मध्य में जो रहे वह लोकमध्य उस लोक मध्य पर्वत में सूर्य की लेश्या प्रतिरुद्ध गतिवाली होती है इस प्रकार का मेरा मत प्रामाणिक है वैसा स्वशिष्यों को उपदेश करे इसका उपसंहार करते हुए कहते हैं कि कोई एक इस कथित प्रकार से अपना मत प्रदर्शित करता है ।।९। (एगे पुण एवप्रमाणे ४ छ, रीते 18 भतासीन अभिप्राय छे. ८ (एगे पुण एव मासु ता लोयमझसि गं पव्वयंसि सूरियस लेस्सा पडिहया आहियत्ति वएज्जा एगे एवमाहंमु) ८ मे से प्रभाए। ४ छ सोमध्य नामना पतमा सूर्यनी લેશ્યા પ્રતિહત થતી કડી છે એમ શિષ્યોને કહેવું. કોઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે. અર્થાત કોઈ એક નવમો તીર્થાન્તરીય આ પ્રમાણે કહે છે. તમે બધાને મત અનાર્ષ એટલે કે અસમીચીન છે. મારે મત જ આર્ષ એટલે કે સમ્યફ પ્રકારનું છે. મારે મત આ પ્રમાણે છે કે–સૂર્યની વેશ્યા લેકમધ્ય નામના પર્વતમાં લેક એટલે તિર્યલેક અર્થાત સઘળા ભૂલેકમાં જે રહે તે લેકમધ્ય એ લમધ્ય નામના પર્વતમાં સૂર્યની લેશ્યા પ્રતિરુદ્ધ ગતિવાળી થાય છે, આ પ્રમાણે મારે મત પ્રામાણિક છે. આ રીતે પિતાના શિષ્યોને ઉપદેશ કરે. આને ઉપસંહાર કરતાં કહે છે કે—કોઈ એક આ કહેલ પ્રકારથી પિતાને મત प्रशित :रे छ. ।। (एगे पुण एवमाहंसु ता लोगनाभिंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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