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________________ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० २५ चतुर्थ प्राभृतम् ४३९ इति निषधः-बलीवर्दस्तस्येव संस्थितं संस्थानं यस्याः सा एकतो निषधसंस्थिता-बलीवाकारा तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्तेत्यपरेषां मतेन वक्तव्येति ॥१३॥ 'एगे पुण एवमाहंसु-ता दुहतो णिसहसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता, एगे एवमाहंसु १४' एके पुनरेव माहु स्तावत् उभयतो निषधसंस्थिता तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्ता एके एव माहुः १४ । एकेचतुर्दश स्थानीया मतवादिनः पुनरेवं-चक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमतं भाषन्ते तावदिति प्राग्वत् चन्द्रसूर्ययोस्तापक्षेत्रसंस्थितिस्तु-उभयतो-रथस्योभयोः पार्श्वयोयौं निषधौ-बलीवौं तयो रिव संस्थितिर्वक्तव्येति चतुर्दशस्थानीयस्य अभिप्रायः १४ । 'एगे पुण एव माहंसु-ता सेणगसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु १५' एके पुनरेव माहु स्तावत् श्येनकसंस्थिता तापक्षेत्रसंस्थितिः प्रज्ञप्ता, एके एवमाहुः १५ एके-पञ्चदश स्थानीयाः हुवा भार को निषध कहते हैं अर्थात् निषधमाने बैल के समान जिसका संस्थान संस्थित हो वह एकतो निषध संस्थित अर्थात् बलिवर्द के आकार के समान तापक्षेत्र की संस्थिति कही है इस प्रकार तेरहवें मतवादी का कथन का भाव ।१३। ___'एगे पुण एवमाहंसु ता दुहओ णिसहसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु) १४ कोई एक मतवादी कहता है कि रथ के दोनों पार्श्व भाग में रहे हुवे निषध के जैसे संस्थान से तापक्षेत्र की संस्थिति कही है कोई एक इस प्रकार से स्वमत को कहता है । अर्थात् चौदहवां मतान्तरवादी यह अनन्तर कथ्यमान प्रकार से अपने मत का कथन करता हवा कहता है कि चन्द्र सूर्य की तापक्षेत्र संस्थिति रथ के दोनों पार्श्व भाग में जो दो निषध माने दो बैल होता है उसके जैसी तापक्षेत्र की संस्थिति होती है, यह चोंदहवें तीर्थातरीय का कथन है ।१४। (एगे पुण एवमाहंसु ता सेणगसंठिया तावक्खेत्त संठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु) १५ कोई एक कहता है कि जिस प्रकार નિષધ એટલે બળદ તેને સરખું જેનું સંસ્થાન સંસ્થિત હોય તે એકતો નિષધ સંસ્થિત એટલે કે બળદના આકારના સરખી તાપક્ષેત્રની સ્થિતિ કહી છે. આ પ્રમાણે તેરમા मतवाहीन ४थन छे. ।१३। एगे पुण एवमासु ता दुहओ णिसहसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु) १४ ६ मे मतवाही ४ 3-२थना भन्ने पाव भागमा રહેલ નિષધના જેવા સંસ્થાનથી તાપક્ષેત્રની સંસ્થિતિ કહેલ છે. કેઈ એક આ પ્રકારથી સ્વમતનું કથન કરે છે, અર્થાત્ ચૌદમા મતાન્તરવાદી આ હવે પછી કહેવામાં આવનાર પ્રકારથી પોતાના મતનું કથન કરતાં કહે છે કે–ચંદ્ર સૂર્યના તાપક્ષેત્રની સંસ્થિતિ રથના બેઉ બાજુના ભાગમાં જે બે નિષધ એટલે કે બે બળદ હોય છે તેના જેવી તાપક્ષેત્રની संस्थिति साय छे. २प्रमाणे यौहमा तान्तियन। मत छ, १४ (एगे पुण एवमाहंसु ता सेणगसंठिया तावक्खेत्तसंठिई पण्णत्ता एगे एवमाहंसु) मे ४ छ वा शते શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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