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________________ ______४१९ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० २५ चतुर्थ प्राभृतम् नानां संस्थानरूपा संस्थितिरभिहितैव, तेनेह चन्द्रसूर्ययोः संस्थितिः, तयोविमानानमपि चतुर्णामपि अवस्थानरूपा संस्थितिः प्रष्टव्येति भगवता गौतमेनोक्ते सति भगवानेतद्विषये परतीथिकानां यावत्यः प्रतिपत्तय स्तावती रुपदर्शयति-तत्थ खलु इमाओ सोलसपडिवत्तीओ पण्णत्ताओ' तत्र खलु इमाः षोडशप्रतिपत्तयः प्रज्ञप्ताः ॥ तत्र-चन्द्रसूये-तद् विमानानां संस्थितौ विचार्यमाणायां खलु-इति निश्चितम् इमा:-वक्ष्यमाणप्रकाराः षोडशसंख्यकाः प्रतिपत्तयः प्रज्ञप्ताः सन्ति 'तत्थ एगे एवमाहंमु-ता समचउरंससंठिया चंदिमसरिया संठिई, एगे एवमासु १' तत्र एके एवमाहुः-तावत् समचतुरस्रसंस्थिता चन्द्रसूर्यसंस्थितिः प्रज्ञप्ता । तत्र-तस्यां चन्द्रसूर्यसंस्थितौ तद्विमानसंस्थितौ च एके-प्रथमास्तीर्थान्तरीया एवम्-अनन्तरोच्यमानस्वरूपं स्वमतमाहुः-कथयन्ति-तद्यथा-तावदिति प्राग्वत् चन्द्रसूर्यतद्विमानानां अर्थात् हे भगवन् आपने चन्द्र सूर्य की संस्थिति किस प्रकार की कथित की है सो स्पष्टता से समझाइये। जिस प्रकार से चन्द्र सूर्य के विमानों के संस्थानरूप संस्थिति आपने कही है उसी प्रकार यहां चन्द्र सूर्य की संस्थिति उनके विमानों की संस्थिति इस प्रकार चारों के अवस्थानरूप संस्थिति पृष्टव्य है माने इन चारों के विषय में पूछता हूं इस प्रकार गौतमस्वामी के कहने पर भगवान् इस विषय में अन्यतीर्थिकों की जितनी प्रतिपत्तियां है उसको दिखलाते हुवे कहते हैं (तत्थ खलु इमाओ सोलस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) भगवान् कहते हैं कि हे गौतम ! चन्द्र सूर्य एवं उनके विमानों की संस्थिति के विषय में विचार करने पर ये वक्ष्यमाण प्रकारवाली सोलह संख्यावाली अन्यमतरूप प्रतिपत्तियां कही गई है (तत्थ एगे एवमासु ता समचउरंससंठिया चंदिमसूरिया संठिई एगे एवमासु) १ उन मतवादियों में कोई एक प्रथम मतवादी कहता है की समचतुरस्र संस्थित चन्द्र सूर्य की संस्थिति कही है अर्थात् चन्द्र હે ભગવન આપે ચંદ્ર સૂર્યની સંસ્થિતિ કેવા પ્રકારની કહેલ છે? એ સ્પષ્ટતાથી સમજાવે. જે પ્રમાણે ચંદ્ર સૂર્યના વિમાનના સંસ્થાન રૂપ સંસ્થિતિ આપે કહી છે, એ જ પ્રમાણે અહીંયા ચંદ્ર સૂર્યની સંસ્થિતિ તેમના વિમાનોની સંસ્થિતિ એ રીતે ચારેના અવસ્થાન રૂપ સંરિથતિ પૃષ્ટવ્ય છે. અર્થાત્ એ ચારેના સંબંધમાં પૂછું છું આ પ્રમાણે શ્રી ગૌતમસ્વામીના કહેવાથી ભગવાન એ વિષયમાં અન્ય તીથિકની જેટલી પ્રતિપત્તિ કહી છે ते मतावता ४९ -(तत्थ खलु इमाओ सोलस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) भगवान् ४ छे - હે ગૌતમ ! ચંદ્ર સૂર્ય અને તેમના વિમાની સંસ્થિતિના સંબંધમાં વિચાર કરતાં આ १क्ष्यमा २नी सो सभ्य अन्य मत ३५ प्रतिपत्तियो ४ामा मास छ. (तत्थ एगे एवमाहंसु ता समचउरंससंठिया चंदिमसूरियासंठिई एगे एवमाहंसु) १ ये मतवासीयामा કોઈ એક પ્રથમ મતવાદી કહે છે કે સમચતુરસ સંસ્થિત ચંદ્ર સૂર્યની સંસ્થિતિ કહી છે. શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્રઃ ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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