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________________ सूर्यशतिप्रकाशिका टोका सू० २ तृतीयं प्राभृतम् ३९९ द्वयर्द्ध पञ्चचक्रवालभागम् अवभासयति उद्योतयति तापयति प्रकाशयति ॥ - सूर्यद्वयमध्ये raise सूर्यो जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्यैकं पञ्चचक्रवालभागम् - पञ्चमं चक्रवालभागं द्वयर्द्धमिति द्वितीयमर्द्ध यस्य स दयः, पूरणार्थी यथा वृत्तान्तभूत स्तृतीयो भाग त्रिभागपदवाच्यो भवति, तथैवेत्यत्रापि 'तं' इत्यनेन अयंचेति भावार्थ: । तेन एकं पञ्चमं चक्रवालभागं द्वितीयस्य पञ्चमस्य चक्रवालभागस्य अर्द्धेन सहितं चक्रवालभागम् अवभासयति उद्योतयति तापयति प्रकाशयति चेति ।। ' एगेवि एवं दिवङ्कं पंचचकभागं ओभासेंति उज्जोर्वेति तवेंति भात' एकोsपि एवं द्वयर्द्ध पञ्चचक्रवालभागं अवभासयति उद्योतयति तापयति पकाशयति ॥-एकोऽपि-अपरोऽपि - द्वितीयोऽपि सूर्यः एवं प्रथमसूर्यवदेव - यथा प्रथमस्य सूर्यस्य प्रकाशनादिक्रमः प्रतिपादित स्तथैव द्वितीयोऽपि सूर्यः एकं पञ्चमं चक्रवालभागं चक्रवालभागों को अवभासित करता है उद्योतित करता है तापित करता है एवं प्रकाशित करता है । भगवान् के कहने का भाव यह है कि दो सूर्यो में एक सूर्य जम्बूद्वीप नामके द्वीप का एक पांच चक्रवालभाग को हार्द्ध माने डेढपूर्णअंक का अंतर्भूत तीसराभाग विभाग पद से कहा जाता है उसी प्रकार यहां पर भी 'तं' इस पद से यह इस प्रकार भावार्थ कहा है- 'इस से पांच चक्रवाल का एकभाग तथा पांच चक्रवाल भाग का अर्धाभाग माने देढ चक्रवाल भाग को अवभासित करता है उद्योतित करता है, तापित करता है एवं प्रकाशित करता है । (एगे वि एगं दीवडूं पंच चक्कवालभागं ओभासेंति, उज्जोवेति तर्वेति भासेति) एक सूर्य पांच चक्रवाल भाग का एक द्वयई भाग को अवभासित करता है, उद्योतित करता है, तापित करता है एवं प्रकाशित करता है । माने दूसरा एक सूर्य पहला सूर्य के जैसा ही माने जिस प्रकार पहला सूर्य का प्रकाशनादि क्रम का प्रतिपादन किया है उसीप्रकार दूसरा भी सूर्य एक पंचमांश चक्रवाल ओमासेंति उज्जोर्वेति तवेंति पगासेंति) ये सूर्य द्वयधे यांय यवाद लगने अवलासित रे છે. ઉઘાતિત કરે છે, તાપિત કરે છે, અને પ્રકાશિત કરે છે. ભગવાનશ્રીના કહેવાના ભાવ એ છે કે—એ સૂર્યાં પૈકી એક સૂર્ય જંબૂદ્વીપ નામના દ્વીપના એક પાંચ ચક્રવાલ ભાગને દ્રશ્ય એટલે કે ડાઢ પૂણુ એકના અંતર્ભૂત ત્રીજો ભાગ ત્રિભાગપદથી કહેવામાં આવેલ છે. એજ પ્રમાણે અહીયાં પણ ‘ä' આ પદથી આ એ રીતે ભાવાથ કહેલ છે. તેથી પાંચ ચક્રવાલના તથા એક ભાગ પાંચ ચક્રવાલના અર્ધો ભાગ એટલે દોઢ ચક્રવાલ ભાગને અવભાસિત १रे छे उद्योतित रे छे, तापित रे छे भने प्राशित Tesroभाग ओभासेंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति) હ્રય ભાગને અવભાસિત કરે છે. દ્યાતિત કરે છે. છે. અર્થાત્ ખીજો એક સૂર્ય પહેલા સૂની જેમ જ પ્રકાશનાદિ ક્રમનું પ્રતિપાદન કરેલ છે, એજ પ્રમાણે શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧ पुरे छे, (एगे वि एगं दीवडूढं पंच 5 सूर्य पांथ वास लागना भेड તાપિત કરે છે, અને પ્રકાશિત કરે અર્થાત્ જેવી રીતે પહેલા સૂના ખીજે સૂર્ય પણ એક પંચમાંશ
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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