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________________ ३९२ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे 'ता बाबत्तरि दीवसयं बावत्तरिं समुद्दसयं चंदिमसूरिया ओभासेंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति, एगे एवमाहंसु १०' तावत् द्वासप्ततं द्वीपशतं द्वासप्ततं समुद्रशतं चन्द्रसूयौँ अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयतः-एके एवमाहुः १० ॥-तावदिति पूर्ववत् द्वासप्ततं-द्वासप्तत्यधिकं द्वीपशतं द्वासप्तत्यधिकं समुद्रशतं चन्द्रसूयौँ चारं चरन्तौ अवभासयत उद्योतयत स्तापयतः प्रकाशयत इत्येवं प्रकारकं स्वजल्पनं दशमाः जल्पन्ति ।। ‘एगे पुण एवमासु ११' एके पुनरेवमाहुः ११॥-एके-एकादशा मतान्तरवादिनः-दशमपर्यन्तानां कथनं श्रुत्वा एवं-वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमतमाहुः-भाषन्ते, यथा-'ता वायालीसं दीवसहस्सं बायालीसं समुदसहस्सं चंदिमसरिया ओभासेंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति, एगे एवमाहंसु ११' द्विचत्वारिंशं द्वीप अपना मत घोषित करता है ।९। (एगे पुण एवमाहंसु १०) कोई एक दशम तीर्थान्तरीय इस प्रकार अपना मत प्रगट करता है-(ता बावत्तरि दीवसयं बावत्तरि समुद्दसयं चंदिमसूरिया ओभासेंति उज्जोवेति तवेंति पगासेंति एगे एवमासु) १० बहत्तर अधिक एक सो द्वीपों को एवं बहत्तर अधिक एक सो समुद्रों को चन्द्र सूर्य अवभासित करते है, उद्योतित करते हैं, तापित करते है, एवं प्रकाशित करते हैं कोई एक इस प्रकार कहता है । बहत्तर अधिक एक सो माने एक सो बहत्तर द्वीपों को एवं एक सो बहत्तर समुद्रों को चन्द्र सूर्य गमन करते हुवे अवभासित करता है, उद्योतित करता है, तापित करता है, एवं प्रकाशित करता है इस प्रकार से दसवां तीर्थान्तरीय अपने मत के बारे में कथन करता है ।१०। (एगे पुण एवमाहंसु) ११ ग्यारहवां मतान्तरवादी दसों मतान्तरीयों के कथन को सुनकर अपनामत प्रगट करता हुवा कहता है कि-(ता बायालीसं दीवसहस्सं बायालीसं समुद्दसहस्सं चंदिमसूरिया ओभासेंति उज्जोवेति तवेंति, पगासेंति) बयालीस अधिक एक हजार द्वीपों घोष! ४२ छ. ८। (एगे पुण एवमाहंसु) इसम मतवासी मन्यता पाताना भत शवितi 20 प्रमाणे ४थन ४२ छे.-(ता बावत्तरं दीवसयं बावत्तरि समुदसयं चंदिम सूरिया ओभासेंति, उज्जोति तवेंति पगासेंति एगे एवमासु) १० मांत२ मधिल मेसो द्वापाने अने તેર અધિક એ સમુદ્રોને ચંદ્ર સૂર્ય અવભાસિત કરે છે, ઉદ્યતિત કરે છે, તાપિત કરે છે અને પ્રકાશિત કરે છે. કેઈ એક આ પ્રમાણે કહે છે. અર્થાત્ તેર અધિક એકસો એટલે કે એકસો તેર દ્વીપ અને એક બોતેર સમુદ્રોને ચંદ્ર સૂર્ય ગમન કરતાં કરતાં અવભાસિત કરે છે, ઉદ્યોતીત કરે છે, તાપિત કરે છે અને પ્રકાશિત કરે છે. આ પ્રમાણે ४सभी तीर्थान्तरीय पाताना मत विष ४थन ४२ छ.।१०। (एगे पुण एवमासु) २सयारभ। મતવાદી દસે અન્યતીથિં કેના કથનને સાંભળીને પોતાનો મત પ્રગટ કરતાં કહેવા લાગે -(ता बायालीसं दीवसहस्सं बायालीसं समुदसहस्सं चंदिमसूरिया ओभासेंति, उज्जोवेति तवेंति पगासेंति) ११ मे तालीस अधि४ १२ दीपाने मने मे तालीस मधि४ मे १२ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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