________________
सूर्य प्रज्ञप्तिसूत्रे
क्षेत्रमवभासयति - प्रकाशयति इत्येतद् विषयकं प्रश्नसूत्रमाह - 'ता केवइयं खेत्तं ' इत्यादि ।
'ता केवइयं खेत्तं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासंति आहिताति वएज्जा' तावत् कियत् क्षेत्रं चन्द्रसूर्या अवभासयन्ति उद्योतयन्ति तापयन्ति प्रकाशयन्ति आख्याता इति वदेत् ॥ तावत् श्रूयतां तावत् प्रभूतं प्रष्टव्यमस्ति तत्र तावत् अवभासन क्षेत्र - विषयकः प्रश्नः श्रूयतां तावदिति बुद्धिमान् विनम्रः शिष्यः केवलज्ञानवन्तं गुरुं पृच्छति - तीसरा प्राभृत का प्रारम्भ
३८२
टीकार्थ - तीन प्राभृतप्राभृत सहित अर्थाधिकार प्रतिपादक दूसरा प्राभृत का कथन करके अब तीसरा प्राभृत का आरम्भ किया जाता है । इस तीसरे प्राभृत का इस प्रकार का अधिकार है- ( ओभासह केवइयं ) चंद्र अथवा सूर्य कितना क्षेत्र को प्रकाशित करता है इस विषय विषयक प्रश्नसूत्र इस प्रकार सूत्रकार कहते हैं (ता केवइयं खेत्तं ) इत्यादि ।
(ता केवइयं खेत्तं चंदिमसूरिया ओभासंति, उज्जोवेंति तवेंति पगासंति आहिताति वजा ) चन्द्र सूर्य कितने क्षेत्र को अवभावित करता है, उद्योतित करता है, तापित करता है एवं प्रकाशित करता है सो हे भगवन् कहिये ?
श्री गौतमस्वामी का प्रभुको प्रश्न करने का भाव यह है कि - हे भगवन् प्रष्टव्य विषय अनेक है परंतु इस समय सूर्यचन्द्र के अवभासनक्षेत्र के विषय में प्रश्न पूछता हूं सो आप सुनिये, इस प्रकार बुद्धिमान विनम्र शिष्य गौतमस्वामी केवलज्ञानवान् प्रभु को पूछते हैं कि हे भगवन् कितने प्रमाणवाले क्षेत्र को चन्द्रसूर्य ( यहां मूल में चन्द्रसूर्य शब्द में (चंदिमसूरिया) इस ત્રીજા પ્રાભૂતના પ્રારંભ
ત્રણ પ્રાકૃતપ્રામૃત સાથે અર્થાધિકાર પ્રતિપાદક બીજા પ્રાભૂતનું થન કરીને હવે આ ત્રીજા પ્રાકૃતને આરભ કરવામાં આવે છે. આ ત્રીજા પ્રાભૂતના આ પ્રમાણે અર્થાधिकार छे, (ता ओभासइ केवइयं ) चंद्र मने सूर्य डेंटला क्षेत्रने अाशित रे छे ? मा विषय संबंधी प्रश्न सूत्र या प्रमाणे छे, - (केवइयं खेत्तं ) इत्यादि.
(ता केवइयं खेत्तं चंदिमसूरिया ओभासंति उज्जोवेंति तवेंति पगासेंति आहिताति एज्जा) चंद्र सूर्य डेंटला क्षेत्रने अवलासित उरे छे ? उद्योतित पुरे छे, तापित रे छे ? અને પ્રકાશિત કરે છે ? હે ભગવન્ તે આપ કહેા.
શ્રી ગૌતમસ્વામીને પ્રભુને પ્રશ્ન કરવાનેા ભાવ એ છે કે-હે ભગવન્ ! પૂછવાના વિષયા ઘણા છે પરંતુ આ સમયે સૂર્ય ચંદ્રના અવભાસ ક્ષેત્રના સંબંધમાં પ્રશ્ન પૂછું છુ તે આપ કૃપાળુ સાંભળેા આ પ્રમાણે સુબુદ્ધિમાન વિનમ્ર શિષ્ય શ્રી ગૌતમસ્વામી કેવળજ્ઞાનથી યુક્ત એવા પ્રભુને પૂછે છે કે-હે ભગવન્ કેટલા પ્રમાણવાળા ક્ષેત્રને ચન્દ્ર સૂર્ય माडींयां भूणभां यन्द्र सूर्य शम्भां (चंदिमसूरिया) या प्रमाणे मडुक्यननो प्रयोग
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧