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________________ २४ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे "उदयंमि अट्ठ भणिया भेदग्धाए दुवेय पडिवत्ती । चत्तारि मुहुत्तगईए हुंति तयमि पडिवती " ॥ उद अष्टौ भणिताः, भेदघाते द्वे च प्रतिपत्ती । चतस्रो मुहूर्त्तगतौ भवन्ति, तृतीये प्रतिपत्तयः, इतिच्छाया ॥ अर्थात् द्वितीये प्राभृते त्रिष्वपि प्राभृतप्राभृतेषु यथाक्रमेण तत्संख्यकाः प्रतिपत्तयो भवन्ति, यथा-प्रथमे प्राभृतप्राभृते उदये सूर्योदयवक्तव्यतोपलक्षिते काले तीर्थकरणणधरैरष्टौ प्रतिपत्तयो भणिताः - कथिताः, द्वितीये प्रामृतप्रामृते भेदद्याते भेदयातरूपे परमतवक्तव्यतोपलक्षिते द्वे एव प्रतिपत्ती भवतः । तथा तृतीये प्रामृतप्रामृते मुहूर्त्तगतिवक्तव्यतोपलक्षिते चतस्रः प्रतिपत्तयो भवन्ति । इत्थं प्रतिपत्तीनां भेदाः सन्ति । अत्र सूत्रे - ' चत्तारि ' इति, नपुंसकत्वनिर्देश: प्राकृतत्वात् ॥ सू०६ || मूलम् - आवलिय१, मुहुत्तग्गो२, एवं भागा य३, जोगस्स ४, कुलाइं५, पुन्नमासी ६, सन्निवाए य७, संईि८ ॥१२॥ तार [य]ग्गं च ९, नेता य१०, चंदमग्गत्ति ११, यावरे । देवताण य अज्झयणे १२, मुहत्ताणं नामयाइय१३ ॥ १३ ॥ दिवसाराइवुत्ता य १४, तिहि १५, गोत्ता१६, भोयणाणि १७ । आइच्चचार १८, मासा य १९, पंच संवछराइय २० ॥ १४ । जोइसस्स य दाराई २१, नक्खत्ता विजयेवि य२२ ॥ दसमे पाहुडे एए बावीसं पाहुडपाडा ||१५|| सू० ७ ॥ " अब कौनसे प्राभृत प्राभृत में कितनी प्रतिपत्तियां हैं ? यह समझाने के आशय से कहते हैं - ( उदयम्मि) इत्यादि दूसरे प्राभृत के तीनों प्राभृत प्राभृत में क्रमानुसार पूर्व के कथनानुसार प्रतिपत्तियां होती है-जैसे कि पहले प्राभृत प्राभृत में (उदयम्म) सूर्योदय के समय में तीर्थकर गणधरों ने आठ प्रतिपत्तियां कही है। दूसरे प्राभृत प्राभृत में भेदद्यात भेदघात के संबन्ध में परमत वक्तव्यतारूप दोही प्रतिपत्तियां होती है तथा तीसरे प्राभृतप्राभृत में मुहूर्त गति के विषय में चार प्रतिपत्तियां होती हैं । इस प्रकार प्रतिपत्तियों के भेद होते हैं इस सूत्र में ( चत्तारि ) पदमें नपुंसकत्व प्राकृत होने से कहा है । ॥ सू० ६ ॥ હવે કયા પ્રાભૃત પ્રાકૃતમાં કેટલી પ્રતિપત્તીયેા છે ? તે સમજાવવાના આશયથી કહે छे - ( उदयम्मि) त्याहि जीन आवृतना आगे आत आवृतां उभानुसार साना उथनानुसार प्रतिपत्तीयो थाय छे, म डे-पडेला प्राकृत आवृतमां (उदयम्मि) सूर्योदयना समये તીર અને ગણધરાએ આઠ પ્રતિપત્તીયેા કહેલ છે. ખીજા પ્રાકૃત પ્રાકૃતમાં ભેદઘાતના સબધમાં પરમતની વક્તવ્યતા રૂપ એ જ પ્રતિપત્તીયા થાય છે. તથા ત્રીજા પ્રાકૃતપ્રાકૃતમાં મુહૂત ગતિના સંબંધમાં ચાર પ્રતિપત્તીયા થાય છે. આ રીતે પ્રતિપત્નીયાના लेह थाय छे. या सूत्रभां ( चत्तारि ) पां नपुंसकत्व प्राकृत होवाथी थयेस छे. सू०॥ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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