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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्रे उपपात - उत्प raatuorat चन्द्रादीनां भवतो नवेति स्वमत परमतापेक्षया वक्तव्यौ इति सप्तदशः प्रश्नः १७ ॥ ‘उच्चत्ते ? १८’ उच्चत्वम् चन्द्रादीनां ग्रहाणां समतलात् भूभागात् उच्चत्वं - दूरत्वं कियदिति, अर्थात् यावति दूरे प्रदेशे चन्द्रादीनां व्यवस्थितत्वमस्ति तत् सर्वं स्वमत परमतापेक्षया कथनीयमित्यष्टादशः प्रश्नः १८ || 'सूरिया कइ आहिया ? १९ सूर्याः कति आख्याताः, जम्बूद्वीपा कति संख्यकाः सूर्या आख्याताः - कथिताः । इत्यपि आख्येयम् इत्येकोनविंशतितमः प्रश्नः ॥ १९ 'अणुभावे के व संवृत्ते ? २०' अनुभावः को वा समुक्तः, पृथिव्यां चन्द्रादीनां तेजसः प्रभावः कीदृशो भवति, पततिवेति विंशतितमः प्रश्नः ||२०|| 'एवमेयाई वीसई' एवमेतानि विंशतिः । एवं पूर्वोक्तप्रकारेण पूर्वोक्तार्थाधिकारोयेतानि एतानि विंशतिः प्राभृतानि । अर्थात् सूर्यप्रज्ञप्तौ एतानि वक्तव्यानि सन्तीति ग्रन्थारम्भे अर्धाधिकारः || सू० ३ || उत्पति अर्थात् चन्द्रादि का च्यवन एवं उपपात होता है ? या नहीं ? यह स्वमत एवं परमत का अवलम्बन करके कहें ऐसा यह सत्रहवां प्रश्न है १७ ( उचत्ते) उच्चत्व याने चन्द्रादि ग्रहों का समतल भूभाग से कितना उच्चत्व है ? अर्थात् जितने दूर प्रदेश में चन्द्रादि ग्रहों की स्थिति है वह सब स्वमत एवं परमत को अवलम्बनकर के कहें यह अठारहवां प्रश्न का आशय है १८ (सूरिया as आहिया) सूर्य कितने कहे हैं ? माने जम्बूदीपादि में सूर्य कितने हैं ? वह भी कहे यह उन्नीसवां प्रश्न का आशय है १९ (अणुभावे के व संबुत्ते) अनुभाव किस प्रकार का है अर्थात् पृथिवी में चन्द्रादि के तेज का प्रभाव कैसा होता है ? यह बीसवां प्रश्न का भाव है २० ( एवमेयाई वीसई) इस प्रकार यह वीस प्रश्न हैं अर्थात् पूर्वोक्तप्रकार से पूर्वोक्त अर्थाधिकार युक्त ये वीस प्रश्न रूप वीस प्राभृत होते हैं अर्थात् सूर्य प्रज्ञप्ति में इस प्रकार की वक्तव्यता कही है यह ग्रन्थारम्भ में अर्थाधिकार कहा है ॥ ३ ॥ १६ ? ચ્યવન અને ઉત્પત્તિ થાય છે ? કે નથી થતી આ સર્વ વિષય સ્વમત અને પરમતનુ व्यवसजन उरीने भने उही आ रीतने। आ सत्तरभो प्रश्न छे. १७. ( उच्चत्ते) अस्यत्व એટલે કે ચંદ્રાદિ ગ્રહેાની સમતલ ભૂભાગથી કેટલી ઉંચાઈ છે ? એટલે કે જેટલા દૂરના પ્રદેશમાં ચંદ્રાદિ ગ્રહેાની સ્થિતિ છે, તે બધું જ સ્વમત અને પરમતને અનુસરીને કહેા या अढारमो प्रश्न छे. १८ ( सूरिया कइ आहिया ) सूर्यो डेंटला छे ? भेटले में यूदीय વિગેરેમાં સૂર્યાં કેટલા છે ? એ પણુ આપ અમને કહી જણાવે. એ રીતને આ આગ सभी प्रश्न छे. १८. ( अणुभावे के व संवृत्त) अनुभाव : रीतनो छे ? भेटले } पृथ्वीमां चंद्राहिना ते नो પ્રભાવ કેવી રીતે થાય છે? આ વીસમા પ્રશ્ન છે. ૨૦. ( एवमेयाई बीसई) मा रीतना या वीस अश्रोछे, भेटले यूर्वोस्त प्रारथी પૂર્વોક્ત અર્થાધિકાર યુક્ત આ વીસ પ્રશ્ન રૂપ વીસ પ્રાકૃતા થાય છે. અર્થાત્ સૂર્ય પ્રજ્ઞપ્તિમાં આ રીતનું કથન કરેલ છે, આ ગ્રન્થારભમાં અર્થાધિકાર કહેલ છે. !! સૂ॰ ૩૫ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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