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________________ 9Apps २६६ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे भूधरशिरसि उनिष्ठति-उत्पद्यते तिर्यक् परिभ्रमन् तिर्यग्लोकं प्रकाशयन् सायंकाले पश्चिमस्यां दिशि अस्तमयभूधरशिरसि विध्वंसते-विध्वंसमुपयाति, पर्वतादीनां पृथिवीकायत्वात् पृथिवीकाये इत्युक्तमस्ति । एवं प्रतिदिवसं सकलकालं सकललोकं जगत् स्थितिः परिभावनीयेति चतुर्थस्य मतसारांशः ॥ तेनात्रोपसंहारः-'एगे एवमाहंसु ४' एके एवमाहुः । एके-चतुर्थास्तीथीन्तरीयाः एवं पूर्वोक्तप्रकारकं स्वमतमाहुः कथयन्ति ४ । 'एगे पुण एवमाहंसु ५' । एके-पञ्चमास्तीर्थान्तरीयाः पुन:-चतुणी मतं श्रुत्वा एवं-वक्ष्यमाणस्वरूपं स्त्रमतमाहुः कथयन्ति ५॥ यथा-'पुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविकार्यसि उत्तिहइ से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करिता पञ्चत्थिमंसि लोयंसि सायं सूरिए पुढविकायसि अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छइ २ पुणरवि अवरभूपुरस्थिमाओ लोगंताओ पाओ सूरिए पुढविकायसि उत्तिइ' पौरस्त्याल्लोकान्तात् प्रातः सूर्यः पृथिवीपर उदित होता है एवं वह तिपक परिभ्रमण करके तिर्यकलोक को प्रकाशित करके सायंकाल के समय में पश्चिमदिशा में अस्ताचल के शिखर पर विलीन हो जाता है। पर्वतादि पृथ्वीकाय होने से यहां पर पृथ्वीकाय ऐसा कहा है इस प्रकार प्रति दिवस सकलकाल सकललोक की स्थिति का विचार कर लेना ऐसा चतुर्थ मतवादी के कथन का सारांश है । इसका उपसंहार करते हुवे कहते हैं 'एगे एवमाहंसु'४ कोइ एक चतुर्थ मतवादी इस प्रोक्त प्रकार से कहते हैं ॥४॥ 'एगे पुण एवमाहंसु' ५ कोई एक इस प्रकार से कहते हैं अर्थात् पांचवें मतवाले जो तीर्थान्तरीय है चारों अन्यमतवादीयों के मत को सुनकर के इस वक्ष्यमाण प्रकार से अपना मत को प्रगट करता हुवा कहता है-'पुरस्थिमाओ लोयंताओ पाओ सरिए पुढविकायंसि उत्ति से णं इमं तिरिय लोयं तिरियं करेइ करित्ता पच्चत्थिमंसि लोयसि सायं सरिए पुढविकायंसि अणुपविसइ अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छइ पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभूતિય લોકને પ્રકાશિત કરીને સાંજના સમયે પશ્ચિમ દિશામાં અસ્તાચલના શિખર પર વિલીન થઈ જાય છે. પર્વતાદિ પૃથ્વીકાય હોવાથી અહીંયાં પૃથ્વીકાય એ પ્રમાણે કહેલ છે. આ પ્રમાણે પ્રત્યેક દિવસે સકલકાલ સકલાકની સ્થિતિને વિચાર કરી લે આ પ્રમાણે ચોથા भतवाहीना थनन! सारांश छ. मा ४थनन। उपसा२ ४२i ४९ छे. (एगे एवमाहंसु) કેઈ એક ચો મતવાદી આ પૂર્વોક્ત પ્રકારથી પોતાના મતનું કથન કરે છે. (૪) ___ (एवे पुण एवमाहंसु) मे 24 प्रमाणे ४१ छ अर्थात् पायमा भतारे તીર્થાન્તરીય છે તે ચારે મતાવલંબીયોના મતને સાંભળીને આ વયમાણ પ્રકારથી પિતાના भतने प्रकट ४२di ४३n aurयो-(पुरथिमाओ लोयताओ पाओ सूरिए पुढवीकार्यसि उत्तिदुइ से णं इां तिरिय लोयं तिरियं करेइ, करित्ता पच्चस्थिभंसि लोयंसि सायं सूरिए पुढवीकार्यसि अणुप विसइ अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छइ, पडियागच्छित्ता पुणरवि अवर શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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