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________________ २६२ सूर्यप्रक्षप्तिसूत्रे पुनरेवमाहुः ॥ एके-तृतीयाः, पुन:-प्रथमद्वितीययोर्मतं श्रुत्वा स्वमतमेवं वक्ष्यमाणप्रकारकमाहुः-कथयन्ति । 'ता पुरत्यिमाओ लायंताओ पादो मूरिए आगासंसि उत्तिइ, से इभं तिरिय लोयं तिरियं करेइ, करित्ता पञ्चत्थिमंसि लोयंसि सायं अहे पडियागच्छति, अहेपडिया गच्छिता पुणरवि अवरभुपुरत्थिाओ लोयंताओ पातो सूरिए आगासंसि उत्तिइ' तावत् पौरस्त्याल्लोकान्तात् प्रातः सूर्य आकाशे उत्तिष्ठति, स इमं तिर्यग्लोकं तिर्यक् करोति, तिर्यक् कृत्वा पश्चिमे लोकान्ते सायम् अधः प्रत्यागच्छति, अधः प्रत्यागत्य पुनरपि अपरभुवः पौरस्त्याल्लोकान्तात प्रातः सूर्य आकाशे उत्तिष्ठति, ॥ तावत् श्रयतां तावत् तृतीयस्य मतंतद्यथा-प्रातः-प्रातःकाले-प्रभातसमये सूर्यः पौरस्त्याल्लोकान्तात्-पूर्वदिग्विभागान्तात् उद्गमन अस्तमन माने उदयास्त के विषयमें अपना मत प्रदर्शित करता है ।२। (एगे पुण एव भासु) कोई एक इस प्रकार से अपना मत कहता है अर्थात् कोई तीसरा मतवाला इस प्रकार से प्रथम एवं दूसरा मतवादी के मत को सुन करके अपने मत के विषय में इस निम्नोक्त प्रकार से वक्ष्यमाण अपने मतके संबंध में कहता है-'ता पुरथिमाओ लायंताओ पादो मूरिए आगासंसि उत्तिइ से इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करित्ता पञ्चत्थिमंसि लोयंसि सायं अहे पडिआगच्छति अहे पडियागच्छित्ता पुणरवि अवरभूरपुरस्थिमाओ लोयंताओ पातो सूरिए आगासंसि उत्तिट्टइ' मूर्य पूर्वदिशा के लोकान्त से प्रभातकाल में आकाश में ऊपर की और जाकर वह इस तिर्यक्लोक को तिर्यक करता है एवं तिर्यक् करके पश्चिम लोकान्तमें सायंकाल के समय नीचे परावर्तित होता है तथा नीचे की ओर आकर के फिरसे पृथ्वी के अपरभाग में पूर्व के लोकान्त से प्रभात कालमें आकाश में उदित होता है। कहने का भाव यह है की भगवान् कहते है-तीसरे परमतवादी के मतको सुनो वह कहता है प्रातः कालमें यानी प्रभात के समय सूर्य पौरस्त्य लोकान्त (एगे पुण एवमाहंसु) * ॥ प्रमाणे ४ छ अर्थात् त्रीले भतपाही ॥ પ્રકારથી પહેલા અને બીજા મતવાદીના મતને સાંભળીને પોતાના મતના સંબંધમાં આ नाये दा २थी पातानु मतव्य शिवि छ.-(ता पुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिटुइ से इमं तिरिय लोय तिरियं करे इ करित्ता पर वत्थिमंसि लोयसि सायं अहे पडिआगच्छति अहे पडिआगच्छित्ता पुणरवि अवरभूपुरस्थिमाओ लोयंताओ पातो सूरिए आगासंसि उत्तिइ) २५॥ सूर्य पूर्व ६शान all-तथी प्रमात समयमा शमां अपनी તરફ જઈને તે આ તિર્યક લેકને તિર્ય કરે છે, અને તિર્થક કરીને પશ્ચિમ કાન્તમાં સાંજના સમયે નીચે પરાવર્તિત થાય છે. અને નીચેની તરફ આવીને પાછા પૃથ્વીના બીજા ભાગમાં પૂર્વ દિશાના લેકાન્તથી પ્રાતઃકાળ થતાં આકાશમાં ઉદય પામે છે. કહેવાને ભાવ એ છે કેભગવાન કહે છે કે--ત્રીજા અન્યતીર્થિકના અભિપ્રાયને શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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