________________
सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे समुत्पद्यते, यतः सर्वत्र प्रकाशः प्रसरति, सः-इत्थं भूतो मरीचिसमुदायः समुपजातः सन् खलु-इतिनिश्चितरूपेण इम-प्रत्यक्षत उपलभ्यमानं लोकं-भूलोकं-तियग्लोकं तिर्यकरोतितिर्यकच कृत्वा परिभ्रमन्नेव पश्चिमे लोकान्ते-पश्चिमदिग्विभागे सायं-सान्ध्ये समये-सायं काले, रात्रौ-रात्रिप्रारम्भसमये आकाशे विध्वंसते-अदृश्यो भवति, इत्थं प्रथमस्य मते आकाशतत्त्वे सूर्यमरीचिसङ्घातस्य विध्वंसनमुक्तम्, 'एगे एवमाहंसु' एके एवमाहु:-कथयन्ति । तनगतं श्रुत्वा 'एगे पुण एवमाहंसु २' एके पुनरेवमाहुः २ ॥ एके-द्वितीया स्तीर्थान्तरीया स्तन्मतं श्रुत्वा पुनः-भूयः एवं-वक्ष्यमाणप्रकारकं स्वमन्तव्यमाहुः-कथयन्ति । तद्यथा-'ता पुरत्थिमाओ लोअंताओ पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिइ, से णं इमं तिरिय लोयं तिरियं करेइ करित्ता पचत्थिमंसि लोयंसि सरिए आगासंसि विद्धंसिस्संति' तावत् पौरस्त्याल्लोकान्तात् संघात उत्पन्न होकर इस प्रत्यक्ष दृश्यमान भूलोक को माने तिर्यक्लोक में तिर्यक्परिभ्रमण करके इस तिर्यक्लोक को प्रकाशित करता है इस प्रकार तिर्यपरिभ्रमण करके पश्चिम लोकान्त में माने पश्चिम दिग्विभाग में सायंकाल के समय में रात्रि के प्रारंभकाल में आकाश में विलीन हो जाता है माने अदृश्य होता है इस प्रकार प्रथम मतवादी के मतसे आकाशतत्व में सूर्य के किरण संघात का विध्वंसन माना गया है (एगे एव माहंसु) प्रथम मतवादी इस पूर्वोक्त प्रकार से स्वमत का समर्थन करता है ॥१॥
इस प्रकार प्रथम मतवादी के मतको सुन करके-(एगे पुण एव माहंसु) कोइ दूसरा इस प्रकार कहता है २
अर्थात् कोइ दूसरा एक तीर्थान्तरीय प्रथम तीर्थान्तरीय का अभिप्राय को सुन करके इस वक्ष्माण प्रकार से अपने मतको प्रगट करता हुवा कहता है जो इस प्रकार से है-'ता पुरथिमाओ लोअंताओ पाओ मूरिए आगासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करित्ता पच्चत्थिमंसि लोयंसि સમુદાય ઉત્પન્ન થઈને આ ભૂલેકને એટલે કે તિર્યકનું તિર્યગતિથી પરિભ્રમણ કરીને પશ્ચિમ દિશાને લેકન્ડમાં એટલે કે પશ્ચિમ દિશામાં સાંજના સમયે રાત્રિના પ્રારંભકાળમાં વિલીન થઈ જાય છે. એટલે કે અદશ્ય થઈ જાય છે. આ રીતે પ્રથમ મતવાદીને મતથી
शतपमा सूर्यन रिना समुहायर्नु विश्वसन मानवामा माद छ, (एगे एबमहंस) परसे। मतवाही २ पूरित प्राथी पोताना भतनु समय न ४२ छे.
___ 20 3५२ ४ावेद प्राथी पडसा मतवाहीना मतने सालजीने (एगे पुण एवमाहंसु) मी सन्यमतवादी २मा प्रमाणे वा साये मर्थात मी 5 तीर्थान्तरीय પહેલા તીથરીયના મતને સાંભળીને આ નીચે કહેવામાં આવનાર પ્રકારથી પિતાના भतने ते! ॥ ४॥ वाय. ते २॥ प्रमाणे छ.-(ता पुरथिमाओ लोगंताओ पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिद्वइ, से णं इमं तिरिय लोयं तिरियं करेइ करित्ता पच्चस्थिमंसि
શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧