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________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० १९ प्रथममाभृते सप्तमं प्राभृतप्राभृतम १८७ मिथ्याभावदर्शनार्थ प्रथमतः परतीथिकानां ता एव परमतरूपा प्रतिपत्ती दर्शयति-भगवान् सर्वज्ञो वीतरागो गुरु:-'तत्थ खलु इमाओ अट्ठ परिवत्तिओ पन्नत्ताओ' तत्र खलु इमा अष्टौ प्रतिपत्तयः प्रज्ञप्ताः ॥ तत्र मण्डलसंस्थितौ परमतविषयेषु खलु-इति निश्चितम् इमाः-वक्ष्यमाणस्वरूपाः अष्टो-अष्टप्रकारकाः प्रतिपत्तयः परमतस्वरूपाः वस्तुतत्त्वावगमे मार्गान्तर निर्विशेषाः प्रज्ञप्ताः ग्रन्थान्तरेषु मतान्तराणि कथितानि-प्रकारान्तररूपेण ज्ञानविशेषाः प्रज्ञता:-कथिताः ॥ 'तत्थ एगे एवमासु १' तत्र एके एवमाहुः १, तत्र-मतान्तरविषयेषु एके-प्रथमास्तीर्थान्तरीयाः, एवम्-अनन्तरोच्यमानस्वरूपं स्वमतमाहुः कथयन्ति 'ता सव्वा वि मंडलवया समचउरंससंठाणसंठिया पन्नत्ता' ताः सर्वा अपि मण्डलवत्ता समचतुरस्त्रसंस्थानसंस्थिताः ॥ तेषां तीर्थान्तरीयाणा मनेकवक्तव्यतोपक्रमे क्रमोपदर्शनार्थं यथा मण्डलं इस विषय में अन्यतीर्थिकों के प्रश्नरूप प्रतिपत्तियों के मिथ्याभाव प्रगट करने के हेतु से प्रथम परतीर्थिकों के वही परमतरूप प्रतिपत्तियां दिखलाते हैं 'तत्थ खलु इमाओ अट्ट पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ' उन परमत वादियों की मिथ्याभाव दर्शक प्रतिपत्तियों में ये आठ प्रतिपत्तियां उल्लेखनीय कही गई है । अर्थात् मंडल संस्थिति के विषय में ये वक्ष्यमाण स्वरूपवाली परमत वादियों की आठ प्रकार की प्रतिपत्ती माने अन्य मत वालों के मत का बोध करानेवाली तथा वस्तु के तत्व को जानने में अन्य मार्ग को निर्दिष्ट करनेवाली मतान्तर रूप प्रतिपत्तियां कही गई है जो इस प्रकार से हैं__'तत्थ एगे एवमासु' उनमें कोई एक इस प्रकार से कहते हैं अर्थात् उन मतान्तर वादीयों में कोई एक माने प्रथम तीर्थान्तरीय इस प्रकार अनन्तर कथ्यमान स्वरूप वाले स्वमत को प्रगट करते हैं जैसे कि 'ता सव्वा वि मंडल. वया समचउरंससंठाणसंठिया पण्णत्ता' ये सभी मंडलवत्ता समचतुरस्त्र संस्थान संस्थित कहा है । अर्थात् उन तीर्थान्तरीयों के अनेक प्रकार की वक्त રીતે ગૌતમસ્વામીએ પ્રશ્ન ઉપસ્થિત કરવાથી શિષ્યવત્સલ ભગવાન આ વિષયમાં અન્યતીથિકની १ ५२मत ३पी प्रतिपत्तियो मताव छ. (तत्थ खलु इमाओ अट्ठ पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ) એ પરમતવાદીની મિથ્યાભાવપ્રદર્શક પ્રતિપત્તિમાં આ આઠ પ્રતિપત્તિ ઉલ્લેખનીય કહેલ છે. અર્થાત્ મંડળ સંસ્થિતિના વિષયમાં આ વક્ષ્યમાણુ સ્વરૂપવાલી પરમતવાદીની આઠ પ્રકારની પ્રતિપત્તિ અર્થાત્ અન્યમતાવલંબીયાના મતને બંધ કરાવવાવાળી તથા વસ્તુના તત્વને જાણવામાં માર્ગનું નિદર્શન કરવાવાળી મતાન્તર રૂપ પ્રતિપત્તિો કહેલ છે જે આ પ્રમાણે છે (तत्थ एगे एवमास) सभा मे मा प्रमाणे पाताना मतना विषयमा छ. અર્થાત એ મતાન્તરવાદીમાં કોઈ એક એટલે કે પ્રથમ તીર્થાન્તરીય આ હવે પછી કહે पामा भावना२ २१३५वाणा पाताना मतनु थन ४२ छ म -(ता मन्बा वि मंडलवया समचउरंससंठाणसंठिया पण्णत्ता) से या भत्ता समयतुरख संस्थान स्थित हेस શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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