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________________ १०५८ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे शेषाण्यपि नक्षत्राणि भावनीयानि । सम्प्रति आदित्यचारविषयं प्रश्नसूत्रमाह-'ता कहं ते आइच्चचारा आहिएति वएज्जा ?' तावत् कथं ते आदित्यचारा आख्याता इति वदेत् । तावदिति पूर्ववत् , कथं-केन प्रकारेण कया युक्त्या केनाधारेण किं प्रमाणया संख्यया ते-त्वया भगवन् ! आदित्यचाराः-सूर्यसंचरण भेदा-आदित्यगतिप्रकाराः आख्याता:प्रतिपादिता इति वदेत्-कथयेत् । ततो भगवानुत्तरयति-'ता पंचसंवच्छरिएणं जुगे अभीई णक्खत्ते पंचचारे सूरेण सद्धिं जोयं जोएइ' तावत पञ्चसांवत्सरिके युगे खलु अभिजिन्नक्षत्र पञ्चचारान् सूर्येण सार्द्ध योगं युनक्ति । तावत्-सूर्यचारविषयविचारे वैशिष्टयं श्रूयतां तावत् पञ्चसांवत्सरिके-चन्द्रादि पश्चसंवत्सरप्रमाणे खल्विति वाक्यालंकारे युगे-युगमध्ये अभिजिन्नक्षत्रं पञ्च-पञ्चसंख्यकान् यावत् चारान् सूर्येण सह योगं युनक्ति । अर्थात् अभिजिता नक्षत्रेण युक्तः सूर्यो युगमध्ये पञ्चसंख्यान् चारान चरतीति तात्पर्यार्थः । कथमेतदवसीयत इति चेदुच्यते-इह योगमधिकृत्य सूर्यस्य सकलनक्षत्रमण्डली परिसमाप्तिरेकेन सूर्यसम्बत्सरेण शिष्ट नक्षत्रों के विषय में भी इसी प्रकार से भावित कर कह लेवें। ____अब सूर्य के चार विषय में श्रीगौतमस्वामी पूछते हैं-(ता कहं ते आइरुचचारा आहिएति वएजा) हे भगवन् किस युक्ति से या किस आधार से वा किस प्रमाण से आपने आदित्यचार अर्थात् सूर्य की गति का प्रकार प्रतिपादित किया है ? सो आप कहिए । इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के पूछने पर इसके उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता पंचसंवच्चरिए णं जुगे अभिई णक्खत्ते पंचचारे सूरेण सद्धिं जोयं जोएइ) हे गौतम ! सूर्य के संचरण विषय के विचारणा में जो विशिष्टता है उसको सूनो चंद्रादि पांच संवत्सर प्रमाणवाले युग में अभिजित् नक्षत्र पांच प्रकार से सूर्य के साथ योग करता है। अर्थात् अभिजित् नक्षत्र से युक्त सूर्य युग में पांच प्रकार से योग करता है। यह किस प्रकार से होता है ? सो कहते हैं-यहां पर योग को लेकर सूर्य का समग्र नक्षत्रमंडलभ्रमण की समाप्ती एक सूर्यसंवत्सर से होती है, सूर्य का भगण આજ પ્રમાણે ભાવિત કરી લેવું. वे सूर्यना या२ समयमा श्री गौतभाभी पूछे छे-(ता कहं ते आइच्चचारा आहिएति वएज्जा) भगवान् ४० युतिथी मथा या माधारथी के ४या प्रमाथा આપે આદિત્ય ચાર એટલે કે સૂર્યની ગતિને પ્રકાર પ્રતિપાદિત કરેલ છે? તે આપ કહો. मा प्रभारी श्री गौतभस्वामीना पूछपाथी तेना उत्तरमा श्री भगवान् ४ छ (ता पंच संवच्छरिए णं जुगे अभिई णक्खत्ते णं पंचचारे सूरेण सद्धिं जोयं जोएइ) हे गौतम ! सूर्यना સંચરણ વિષયની વિચારણામાં જે વિશેષતા છે, તે સાંભળો ચંદ્રાદિ પાંચ સંવત્સર પ્રમા ગુવાળા યુગમાં અભિજીતુ નક્ષત્ર પાંચ પ્રકારથી સૂર્યની સાથે એગ કરે છે, અર્થાત્ અભિ જીત નક્ષત્રથી યુક્ત સૂર્ય યુગમાં પાંચ પ્રકારથી યોગ કરે છે, આ કઈ રીતે થાય છે? શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧
SR No.006351
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1981
Total Pages1076
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size74 MB
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