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प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ सू० ४ वेदनासमुद्घातविशेषनिरूपणम् ___ ९४९ वेदना समुद्घाता अतीताः ? गौतम ! अनन्ताः, कियन्तः पुरस्कृताः ? गौतम ! कस्यापि सन्ति कस्यापि न सन्ति, यस्य सन्ति जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येया वा असंख्येया वा अनन्ता वा, एवं नागकुमारत्वेऽपि यावद् वैमानिकत्वे, एवं यथा वेदनासमुद्घातेन अमरकुमारो नैरयिकादि वैमानिकपर्यवसानेषु भणितस्तथा नागकुमारादिका अवशेषेषु स्वस्थानेषु परस्थानेषु भणितव्याः, यावद् वैमानिकस्य वैमानिकत्वे, एवमेते चतुर्विंशतिश्चतुर्विशका दण्डका भवन्ति ॥ सू० ४ ॥ ____टोका-सम्प्रति नैरयिकत्वादि भवेषु वर्तमानस्य एकैकस्य जीवस्य कियन्तो वेदनाकितने वेदनासमुदघात अतीत है ? (गोयमा ! अणंता) हे गौतम ! अनन्त (केवइया पुरेक्खडा ?) आगामी कितने ? (गोयमा ! कस्सइ अस्थि, कस्सइ नत्थि) हे गौतम ! किसी के हैं, किसी के नहीं (जस्सस्थि जहण्णेणं एको वा, दोवा, तिणि वा) जिस के हैं, उस के जघन्य एक, दो या तीन हैं (उकोसेणं संखेजा वा, असंखेज्जा वा अणंता वा) उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं (एवं नागकुमारत्ते वि) इसी प्रकार नागकुमार अवस्था में भी (जाव वेमाणियत्त) यावत् वैमानिक अवस्था में (एवं जहा वेयणासमुग्घाए ) इसी प्रकार जैसे वेदना समुद्घात (असुरकुमारे) असुरकुमार में (नेरइयादि वेमाणियपज्जवसाणेसु भणिओ) नारकों से लेकर वैमानिकों पर्यन्त कहा (तहा नागकुमारा. दिया) उसी प्रकार नागकुमारों से लेकर (अवसेसे तु सहाणेसु परहाणेलु भाणियव्या) शेष सब स्वस्थानों में और परस्थानों में कहना चाहिए (जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते) यावत् वैमानिक के वैमानिक अवस्था में (एवमेते चउव्वीसा) इस प्रकार ये चौवीस (चउच्चीसं दंडगा भवंति) चौवीस दंडक होते हैं। सू.४॥ धात मतीत छ ! (गोयमा ! अणता) गौतम ! मनत) (केवइया पुरेक्खडा) मामी ४८ ? (गोयमा ! कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि) हे गौतम ! धन डाय छ, धन नहीं (जस्सस्थि जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा) रेन हाय छ, तर धन्य ४ मे मगर त्रय डाय छ (उक्कोसेगं सखेज्जा वा, असंखेज्जा वा अगंता वा) उलट सभ्यात, अस. ખ્યાત અથવા અનન્ત છે.
(एवं नागकुमारत्ते वि) मे १ २ नागभार अवस्थामा पEY (जाव वेमाणियत्ते) यापत् वैमानि अवस्थामा (एवं जहा वेयणासमुग्घाए णं) मे सारे व वहनासमुद्धात (असुरकुमारे) असुरशुभारमा (नेरइयदि वेमाणियपज्जवसाणेसु भणिओ) नाथी छन पैमानि। पर्यन्त an (तहा नागकुमारादिया) से प्रारे नागमारोथी सन (अवसेसेसु सदाणेसु परट्टाणेसु भाणियव्वा) शेष मयां स्थानमा भने ५२स्थानमा । नये (जाव वेमाणियत्ते) यावत् वैमानिस्थामा (एव मेते चउव्वीसा) में मारे मा योवीस (चउव्वीसदंडगा भवंति) योवीस ४ थाय छ, ॥ सू० ४॥
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫