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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ सू० २ अतीतवेदनादि समुद्घातनिरूपणम् ९२५ सन्ति. यस्य सन्ति तस्य जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येया वा असंख्येया वा अनन्ता वा, एवम् अमुरकुमारस्यापि निरन्तरं यावद् वैमानिकस्य, एवं यावत् तेजससमुद्घातः, एवमेते पञ्चचतुर्विशतिदण्डकाः, एकैकस्य खलु भदन्त ! नैरयिकस्य कियन्त आहारसमुद्घाता अतीताः ? कस्यचित् सन्ति कस्यचिन्न सन्ति यस्य सन्ति तस्य जघन्येन एको वा द्वौ वा, उत्कृष्टेन त्रयः, कियन्तः पुरस्कृताः ? कस्यचित् सन्ति कस्यहे भगवन् ! एक-एक नारक के कितने वेदनासमुद्धात अतीत-व्यतीत हुए हैं ? (गोयमा ! अर्णता) हे गौतम ! अनन्त (केवइया पुरेक्खडा) कितने भावीभविष्य में होने वाले हैं ? (गोयमा ! कस्सइ अत्थि, करसाइ, नत्थि) हे गौतम! किसी के हैं, किसी के नहीं हैं। (जस्तथि लस्स जाहण्जेणं एकको वा दो या तिणि वा) जिस के हैं उसके जघन्य एक, दो या तीन हैं (उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेजा वा अणंता वा) उत्कृष्ट संख्थात. असंख्यात अथवा अनन्त हैं (एवमसुरकुमारस्स वि निरंतरं जाव क्षेत्राणियस) इस प्रकार असुरकुमार से लेकर लगातार यावत् वैमानिकों पर्यन्त (एक जाव तेयगलमुग्घाए) इसी प्रकार यावत् तैजस समुद्घात (चउचीसा दडगा) चौबीसों दंडकों में जानना (एगमेमरस णं भंते ! नेरइयरस केवड्या आहारसमुग्धाया पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! एक-एक नारक के शितने आहारक)मुद्धात अतीत हैं ? (कस्साइ अस्थि, कस्सइ नत्थि) किसी के हैं, किसी के नहीं हैं (जस्स अत्थि तस्स जहपणेणं एक्को वा दो वा) जिप्तके होते हैं उसके एक अधवा दो होते हैं (उक्को અતીત વેદનાદિ મુદ્દઘાત A : (एगमेगस्स णं भंते ! नेरझ्यस्स केवइयावेटमासामुग्धाया अतीता) मा. पान ! २५ मे ना२४न टा वहना समुद्यात तीc-4तियां ? (गोयमा ! अणंता) हे गौतम! मनत (केवइया पुरेक्खडा टस हाव-भविष्यमा थाना छ ? (गोयमा ! कस्सइ अस्थि, क सइ नत्थि) गौतम ! Ai, अनधी (जरसत्थि तस्स जहणेण एकको वा दो वा तिणि वा) मनामना oraru 8, मेन छ (उकोसेण संखेज्जा वा असंखेरजा वा अणंता पा) यी यात मसण्यात अथवा मन त छ (एवं असुरकुमारस्त वि निरंतर जाव पेमाणि वस्स) आ४ ते असुमारना ५५ अविरत यावत् पैमानिनi (एवं जाव तेयगससुधाए) या शते यावत् तेस समुद्धात (एवमेते पंच) २५॥२४ ते २t iय समुहबात (चवीसा दंडगा) यावीसे य मा . (एगमेग्गरस गं भंते ! नेरइयरस केवइया आहारसमुग्पाया पण्णत्ता ) 3 पान ! मे४-४ ना२४i zan मा २४ समुद्धात मतीत छ ? (कस्ताइ अस्थि, करसइ नत्थि) Beaitri , teaitri नथी (जस्स अस्थि तस्स जहणणेण एक्को वा दोवा) नाय શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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