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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३६ विषयसंग्रहणीगाथा निरूपणम् ९०९ अव एतेनार्थेन एवम् उक्तरीत्या उच्चते-यत्-ज्योतिषका द्विविधामपि वेदनां वेदयन्ते, ' एवं माया वि' एवम् - ज्योतिष्का इव वैमानिका अपि द्विविधामपि वेदनां वेदयन्तेनिदाञ्चानिदाश्चेति तेषामपि मिध्यादृष्टि सम्यग्दृष्टि भेदेन द्वैविध्यादितिभावः |||०२|| 'पण्णवणार वेपणापयं समतं' इति प्रज्ञापनायां पञ्चत्रिंशत्तमं वेदनापदं समाप्तम् || ३६ || पट्टत्रिंशत्तमं समुद्यातपदम् संग्रहणी गाथा मूलम् - बेयणकसायमरणे वेउब्वियतेयए य आहारे । के लिए चेत्र भवें जीवमणुस्साण सत्ते व ॥ ९॥ - वेदनकपायमरणे वैक्रिस्तै नसथ आहारः । here भवेत् जीवमनुष्याणां सप्तैव ॥ १ ॥ छाया टीका - पञ्चत्रिंशत्तमे पदे गतिपरिणाम विशेषलक्षणा वेदना प्ररूपिता सम्प्रति पत्रिंशसे, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि ज्योतिष्क देव दोनों प्रकार की बेदना वेदते हैं | ज्योतिष्कों की तरह वैमानिक भी दोनों प्रकार की वेदना- का अनुभव करते हैं, क्योंकि वें भी सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि- दोनों प्रकार के होते हैं । ॥ सू० २ ॥ वेदनापद समाप्त छत्तीसवां समुद्घातपद संग्रहणी नाथा शब्दार्थ - ( वेगण कसायमरणे) वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात (asfब्वद्यतेयए य) वैक्रियक समुद्घात, तैजस समुद्घात ( आहारे) आहरक समुद्घात (केवलिए चेव) और केवलि समुद्घात ( भवे) होते हैं (जीव मणुस्साण) जीवों और मनुष्यों के (सत्ते व सात ही ॥ १ ॥ टीका पैंतीसवें पद में गतिपरिणाम विशेष वेदना का निरूपण किया નિદા વેદના વઢે છે. આ હેતુથી હું ગૌતમ એવુ કહેવાયુ છે કે જ્યાતિષ્ઠ દેવ અને વેદનાના અનુભવ કરે છે, કેમ કે તેએ પણ સમ્યગ્દષ્ટિ અને મિથ્યાદૃષ્ટિ અને પ્રકારનાં હાય છે. વેદના પદ સમાપ્ત છત્રીસમું સમુદ્દાત પદ સંગ્રહણી ગાથા शब्दार्थ :- (वेण कसाय मरणे) बेहना समुद्रघात, उषाय समुद्रघात, भारशान्तिः समुद्रात (वेव्विय तेयए य) वैयि समुद्रघात, तेन्स सभुद्धात (आहारे) महार४ समुद्रघात ( के लिए चेव) गने ठेवली समुद्दधात ( भवे) होय हे ( जीव मणुस्साणं) लवे अने मनुष्योने (सत्तेव) सात समुद्द्धात होय छे. ॥ गाथा. ટીકા :-પાંત્રીસમા પમાં ગતિપરિણામ વિશેષ વેદનાનુ નિરૂપણુ કરાયું છે, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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