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प्रचापनासूत्रे मपि वेदनां वेदयन्ते, एवं यावद् वैमानिकाः, नवरम् एकेन्द्रियविकलेन्द्रियाः शारीरीं वेदना वेदयन्ते नो मानसीं वेदनां वेदयन्ते नो शारीरमानी वेदना वेदयन्ते, कतिविधा खल भदन्त ! वेदना प्रज्ञप्ता ? गौतम ! त्रिविधा वेदना प्रज्ञप्ता, तद्यथा-साता असाता सातासाता, नैरयिकाः खलु भदन्त ! कि साता वेदनां वेदयन्ते असाता वेदनां वेदयन्ते सातासात वेदनां वेदयन्ते ? गौतम ! त्रिविधामपि वेदनां वेदयन्ते, एवं सर्वजीवा यावद् वैमानिकाः, (माणसं वि वेदगं वेदें ति) मानसिक वेदना भी वेदते हैं (सारीरमाणसं पि वेषणं वेदेति) शारीरिक-मानसिक भी वेदना वेदते हैं (एवं जाव वेमाणिया) इसी प्रकार वैमानिकों तक (नवरं एगिदियविगलिंदिया मारीरं वेयणं वेदेति) विशेष-एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय शारीरिक वेदना वेदते हैं (नो माणसं वेयर्ण वेदें ति, नो सारीरमाणसं वेयणं वेदेति) मानसिक वेदना नहीं वेदते और शारीरिकमानसिक वेदना भी नहीं वेदते ।
(कतिविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! कितने प्रकार की वेदना कही है ? (गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता) हे गौतम ! तीन प्रकार की वेदना कही है (तं जहा-साता, असाता, सातासाता) वह इस प्रकार साता, असाता तथा साता-असाता (नेरड्या णं भंते ! किं सायं वेयणं वेदें ति?) हे भगवन् ! क्या नारक साता वेदना वेदते हैं ? (असायं वेयणं वेदेति ?) आसाता वेदना वेदते हैं ? (सायासायं वेयणं वेदेति ?) क्या साता-असाता वेदना वेदते हैं ? (गोयमा ! तिविहं पि वेयणं वेदें ति) हे गौतम ! तीनों तरह की वेदना वेदते हैं (एवं जाव सव्वजीवा जाव वेमाणिया) इसी प्रकार यावत् सर्वजीव यावत् वैमानिक (माणस वि वेयणं वेदेति) मानसि ना ५ ३४ छ (सारीर-माणसंपि वेयण वेदेति) શારીરિક-માનસિક વેદના પણ વેદે છે.
(एवं जाव माणिया) मा री वैभानि सुधा (नवर एगिदिय, विगलि दिया सारीर वेयण वेदेति) विशेष-सेन्द्रिय अने vिal-द्रय शारी२ि४ वहना बेहेछ (नो माणस वेयण वेदेति नो सारीरमाणसं वेयण वेदेति) मानसि ना अने शारी२ि४-मानसि વેદના નથી વેદતા.
(कइ विहाणं भंते ! वेयणा पण्णत्ता ?) समान् ४८ प्रारी वहना पाई छ ? (गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता) हे गौतम ! ] अनी वना ना (तं जहा-साता, असाता, सातासाता) ते भा प्रमाणे-साता, असाता भने सातासात.
(नेरइयाण भंते ! किं सायं वेयणं वेदेति ?) पान ! ना२३॥ शुसाता वहना हे १ (असायं वेयण वेदेति ?) मसात वहना व छ ? (साया-साया वेयण वेदेति ?) સાતાસાતા વેદના વેઢે છે?
(गोयमा ! तिविहांपि वेयण वेदेति) 3 गौतम! १२ प्रश्नी वन वे छ (एवं
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫