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प्रमेयबोधिनी टीका पद २२ सू. ५ क्रियाविशेषनिरूपणम्
७३ यत्प्रदेशेन' चत्वारो दण्डका भवन्ति, कति खलु भदन्त आयोजिताः क्रियाः प्रज्ञप्ता? गौतम ! पञ्च आयोजिताः क्रियाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-कायिकी यावत् प्राणातिपातक्रिया, एवं नैरयिकाणां यावद् वैमानिकानाम्, यस्य खलु भदन्त ! जीवस्य कायिकी आयोजिता क्रिया अस्ति तस्य आधिकरणकी क्रिया आयोजिता अस्ति, यस्य अधिकरणिकी आयोजिता क्रिया अस्ति तस्थ कायिकी आयोजिता क्रिया अस्ति? एवम् एतेन अभिलापेन ते चैव चत्वारो दण्डका भणितव्याः , यस्य यं समयं, ये ऐसा ही है यावत् वैमानिकको । (एव) इस प्रकार (एए) ये (जस्स) जिसको (जं समय') जिस समय में (ज देस) जिस देशमें (जं पएसेण) जिस प्रदेश में (चत्तारि दंडगा होति) चार दंडक होते हैं।
(कइण भंते ! आओजियाओ किरियाओ षण्णताओ ?) हे भगवन् ! कितनी क्रियाएँ आयोजिका-संसारमें भ्रमण करानेवाली कही गई हैं ? (गोयमा ! पंच आओजियाओ किरियाओ पण्णत्ताओ) हे गौतम ! पांच क्रियाएँ आयोजिका कही गई हैं (तं जहा-काइया जाव पाणाइवायकिरिया) वे इस प्रकार हैं-कायिकी यावत् प्राणातिपात क्रिया ( एव नेरइयाण जाव वेगाणियाण) इसी प्रकार नारकोंकी यावत् वैमानिकों की
(जस्स ण भंते! जीवस्स काइया आओजिया किरिया अस्थि ) हे भगवन् ! जिस जीब को कायिकी आयोजिका क्रिया होती है ! (तस्स अहिंगरणिया किरिया ओओजिया अत्थि?) क्या उसको आधिकरणिकी क्रिया आयोजिका होती है? (जस्सअहि गरणिया आओजिया किरिया अस्थि तस्स काइया आओजिया किरिया अस्थि?) जिसको आधिकरणिकी आयोजिका क्रिया होती हैं, उसको कायिकी आयोजिकाथाय छ ? (एवं तहेव जाव वेमाणियस्स) मेमन छ यावत् वैमानिने (एव) से प्रा३ (एए) । (जस्स) ने (जं समय) । समयमा (जं देस) ने देशमा (जं पएसण) १ प्रदेशमा (चत्तारि दौंडगा होति) या२ ४४थाय छ
(कइण भंते! आओजियाओ किरियाओ पण्णत्ताओ ?) हे भगवन् ! zeeी लियामा आयोजित संसारमा श्रम॥ ४पना सा छे ? ( गोयमा ! पंच आओजिआओ किरियाओ पण्णत्ताओ) है गौतम! पाय डियामा मायोनि। ४डसी छ (त जहा-काइया जाव पाणाइवायकिरिया) ते मा रेछ अथिती यात प्रातिपात या ( एवं नेरइयाण जाव वेमाणियाण) मे પ્રકારે નારકોની યાવત વિનામિકેની
(जस्स ण भंते ! जीवस्स काइया आओजिया किरिया अस्थि) हे भगवन् ! 7 पने यि सायानिडिया याय छ (तस्स अहिगरणिया किरिया आओजिया अत्थि ?) शुतेने माधि४२शिकी जिया मायोनि डाय छ ? (जस्स अहिगरणिया आमोजिया किरिया अस्थि ?) ने माधि४२६४ी मायोलिया थाय छ, तेने थि:ो मायोनि डिया याय छ ? (एवं एएण अभिलावण) से प्रारे मा मनिसाथी (ते चेव चत्तारि दंडगा भाणियव्वा) मार १०
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫