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प्रज्ञापनासूत्र प्रशस्तानि अप्रशस्तानि ? गीतम! प्रशस्तान्यपि प्रशस्वान्यपि, एवं यावद् वैमानिकानाम् नैरयिकाः खलु भदन्त ! कि सम्यक्त्वाधिगामिनः मिथ्यात्वाधिगामिनः सम्यग्मिथ्यात्वाधि धिगामिनः ? गौतम ! सम्यक्त्वाधिगामिनोऽपि, मिथ्यात्वाधिगामिनोऽपि, सम्यक्त्वमिथ्या त्वाधिगामिनोऽपि, एवं यावद् वैमानिका अधि, नवरम् एकेन्द्रियविकलेन्द्रिया नो सम्यक्वाधिगामिनः, मिथ्यात्वाधिगामिनः, नो सम्यक्त्वमिथ्यात्वाधिगामिनः ॥ सू०२॥
टीका-प्रथाहारविषयमाभोगमनाभोगादिकश्च प्ररूपयितुं द्वितीय द्वारमाह-नेरइयाणं असंख्यात अध्यवमान (तेणं भंते ! किं पसत्या, अपमत्था ?) हे भगवन् ! वे प्रशस्त हैं या अप्रशस्त ? (गोयमा ! पसत्था ति अपसत्था वि) हे गौतम ! प्रशस्त भी, अप्रशस्त भी (एवं जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के (नेरइया णें अंते ! कि सम्मत्ताभिगमी ?) हे भगवन् ! नारक का सम्यक्त्वाभिगामी-तमकित की पाप्ति वाले हैं ? (मिच्छत्ताभिगमी) मिथ्यात्व की प्राप्ति बाले हैं ? (सम्हामिच्छताभिगमी ?) सम्पगमिथ्यात्वाभिगमी है ? (गोयना ! सम्मत्ताभिगमी वि, मिच्छताभिगमी वि, सम्मामिच्छत्ताभिगमी थि) हे गौतम ! सम्यक्त्वानिगमी हैं, मिथात्वाभिगमी हैं, सम्पग्मियात्वाभिगमी भी हैं (एवं जाय वेमाणिया) इसी प्रकार वैमानिकों तक (नवरं एगिदिया शिलिंदिशा णो सम्मत्ताभिगमी) विशेष, एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय सम्यक्त्वाभिगमी नहीं (मिच्छत्ताभिगमी) मिथ्यात्याभिगमी हैं (नो सम्मामिछत्ताजगनी) सम्धरिमथ्यात्वाभिगमी नहीं।॥सू० २॥
टीकार्थ-अब आहार संबंधी आभोग-अनाभोग आदि की प्ररूपणा करते के लिए दूसरा द्वार कहते हैं। वसाय (तेण भंते ! किं पसत्था अपसत्था) भगवन् ! तः। प्रशस्त प्रशस्त छ ? (गोयमा ! पसत्था वि अपसत्था वि) 3 गौतम ! प्रशस्त पY मने प्रशस्त ५५ (एवं जाव वेमाणियाण) से प्रारे यावत पैमानिओना.
(नेरइयाण भंते ! किं सम्मत्ताभिगमी १) ड समवन् ! ना२४ शु सभ्यपालिभी सभ्यतिनी प्रापिछ ? (मिच्छत्ताभिगमी) मिथ्यात्वनी प्राप्तिपणा छ (सम्मामिच्छ ताभिगमी) सभ्य मिथ्यात्यामागभी छे ? (गोयमा! सम्मत्ताभिगमी वि, मिच्छत्ताभिगमी वि, सम्मामिच्छत्ताभिगमी वि) गौतम ! सभ्यतालिनी छ, मियापानिमामी ५y छ, स मिथ्यात्वामिग ५४ छ (एवं जाव वेमाणिया) से प्रारे वैमानि। सुधी.
(नवरं एगिदिय विगलिंदिया णो सम्मत्ताभिगमी) विशेष, सन्द्रिय भने विसन्द्रिय सभ्यत्वाभिाभी नयी (मच्छत्ताभिगमी) मिथ्यात्वामियामी छ (नो सम्मामिच्छत्ताभिगमी) સમ્યગ મિથ્યાત્વાભિગમી પણ નથી. એ સૂત્ર ૨
ટકાથ:-હવે આહાર સમ્બન્ધી આગ-અનાગ આદિની પ્રરૂપણ કરવાને માટે
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫