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________________ प्रज्ञापनासूत्रे ॥ अनन्तरागताहारवक्तव्या ॥ मूलम्-नेइयाणं भंते ! अणंतराहारा तओ निव्वत्तणा तओ परियाइणया तओ परिणामया तओ परियारणया तओ पच्छा विउठवणया ? हंता, गोयमा ! नेरइयाणं अणंतराहारा तओ निव्वत्तणया तो परियाइणया तओ शरिणामया तओ परियारणया तो पच्छा विउठवणया, असुरकुमाराणं भंते ! अणंतराहारा, तओ निव्वत्तणया तओ परिया इणया तो परिणामया तो विउवणया तओ पच्छा परियारणया ? हंता, गोयमा ! असुरकुमारा अणंतराहारा तो निव्वत्तणया जाव तओ पच्छा परियारणया, एवं जाव थणियकुमारा, पुढविकाइयाणं भंते ! अगंतराहारा, तओ निव्वत्तणया तओ परियाइणया तओ परिणामया तओ परियारणया तओ विउवणया ? हंता, गोयमा! तं चेव जाव परियारणया नो चेव णं विउठवणया, एवं जाव चउरिदिया, नवरं वाउ. काइया पंबिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा य जहा नेरइया, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा |सू० १॥ छाया-नैरयिकाः खलु भदन्त ! अनन्तराहाराः, ततो निवर्तना, ततः पर्यादानम्, ततः परिणामनम्, ततः परिचारणा, ततः पश्चाद् विकुर्वणा ? हन्त ! गौतम ! नैरयिकाणाम् का कथन किया जाएगा ।।गा. १-२॥ अनन्तरागताहार वक्तव्यता शब्दार्थ-(नेरहया णं भंते ! अणंतराहारा) हे भगवन् । नारक क्या अनतराहारक होते हैं-उत्पत्ति क्षेत्र में आते ही आहार करते हैं ? (तओ निव्व तणा) फिर शरीर की निष्पत्ति होती है ? (तओपरियाइणया) फिर पर्यादान होता है ? (तभो परिणामया) फिर परिणमाना होता है ? (सओ परियारणया) (૮) અન્તમાં કાય આદિથી પરિચરણ કરનારાઓનાં અ૬૫ બહુવનું કથન ४२राशे. ॥सू० ॥. १-२॥ અનન્તરાગતાહાર વક્તવ્યતા :-(नेरइयाण मंते ! अणंतराहारा) मावन् ! ना२४ शुमन-तराडा२४ उत्य छ उत्पत्ति क्षेत्रमा मातi 1 माहा२ रे छ ? (तओ निव्वत्तणा) पछी शरीरनी निस्पति थाय छ ? (तओ परियाइणया) पछी पर्याहान थाय छ ? (नओ परिणामया) पछी ५२५भवानुयाय छे ? (तओ परियारणया) ५७ परिया। थाय छ ? (तओ पच्छो विउव्वणया) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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