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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३३ सू० ३ नैरयिकादीनामवधेः संस्थानादिनिरूपणम् ८०५ नो वर्द्धमानकः, नो हीयमानकः, नो प्रतिपाती, अपतिपाती, अवस्थितः, नो अनवस्थितः, एवं यावत् स्तनितकुमाराणाम् , पश्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! आनुगामिकोऽपि यावद् अनवस्थितोऽपि, एवं मनुष्याणामपि, वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकानां यथा नैरयिकाणाम् । प्रज्ञापनायाम् अवधिपदं समाप्तम् ॥ ३३ ॥ सू० ३ ॥ ___टीका-अथावधेस्तृतीयं स्थानद्वारमधिकृत्य प्ररूपयितुमाह-'नेरइयाणं भंते । ओही किं संठिए पण्णते ?' हे भदन्त ! नैरयिकाणाम् अवधिः-अवधिज्ञानं किं संस्थित:-किमाकारः अथवा अप्रीतपाती अवस्थित अथवा अनवस्थित होता हैं ? (गोयमा ! आणु गामिए, णो अणाणुगामिए) हे गौतम ! आनुगामिक होता है, अनानुगामिक नहीं (नो वद्धमाणए, नो हीयमाणए) न वर्द्धमान, न हीयमान होता है (नो पडिवाई, अप्पडिवाई) प्रतिपाती नहीं, अप्रतिपाती होता है (अवट्रिए, नो अणवहिए) अवस्थित होता है, अनवास्थित नहीं होता (एवं जाव थणियकुमाराण) इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक (पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) पंचेन्द्रिय तिर्यंचों संबंधी प्रश्न ? (गोयमा! आणुगामिए वि जाव अणवहिए वि) हे गौतम ! आनुगामिक भी यावत् अवस्थित भी होता है (एवं मणूसाण वि) इसी प्रकार मनुष्यों का भी (वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरइयोणं) वानव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों का नारकों के समान |सू०३॥ अवधिपद समाप्त टीकार्थ-अब अवधि संबंधी तीसरे द्वार को लेकर प्ररूपणा की जाती है गौतरस्वामी-हे भगवन् ! नारकों का अवधि किस आकार का कहा है ? ગામિક, વર્ધમાન, હીયમાન, પ્રતિપાતી અથવા અપ્રતિપાતી અવસ્થિત કે અનવસ્થિત હોય छ ? (गोयमा ! आणुगामिए, नो अणाणुगामिए) 3 गौतम ! मानुगामि हाय छ, मनानु. मिनी नो वद्धमाणए, नो हीयमाणए) न १ भान, नडीयमान हाय छे (नो पडिवाई, अपडिवाई) प्रतिपाती नही, २५प्रतिपाती हाय छे (अवट्टिए, नो अणवट्टिए) मपस्थित હોય છે, અનવસ્થિત નથી હોતું. (एवं जाव थणियकुमाराण) से प्रारे यावत् स्तनितमा। सुधी (पंचि दियतिरिक्ख जोणियाण पुच्छ) ५२न्द्रिय तिर्थ यो सम्बन्धी प्रश्न (गोयमा ! आणुगामिए वि जाव अणवट्रिए वि) मानुगामि४ ५९ यावत् अवस्थित पार हाय छ ।एवं मणूसाण वि) थे ४ प्रदरे मनुष्योना ५y (वाणमंतरजोइसियवेमाणियाण जहा नेरइयाण) पानव्यन्त, યે તિષ્ક, અને વૈમાનિકના નારકની સમાન સૂવડા वधि ५६ समारत ટીકાW :--હવે અવધિ સમ્બન્યો ત્રીજા દ્વારને લઈને પ્રરૂપણ કરાય છે. શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન ! નારકોના અવધિ કેવા આકારના કહ્યા છે? શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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