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________________ ७६५ प्रमैयबोधिनी टीका पद ३२ सू० १ संयताऽसंयतत्वनिरूपणम् अपि ३ नो संयत नो असंयत नो संयतासंयता अपि ४, नैरपिकाः खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! नै(यिकाः नो संयताः, असंयताः, नो संयतासंयताः, नो नो संयत नो असंयत नो संयतासंयताः, एवं यावच्चतुरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका नो संयताः, असंयता अपि, संयतासंयता अपि, नो नो संयत नो बत्तीसवां संयत पद शब्दार्थ-(जीवा णं भंते कि संजया, असंजया, संजयासंजया, नोसंजया, नोभसंजया, नोसंजयासंजया ?) हे भगवन् ! जीव क्या संयत होते हैं ? असंयत होते है ? संयतासंयत होते हैं ? नो संयत-नो असंयत नोसंयतासंयत होते हैं ? (गोयमा ! जीवा संजया वि) हे गौतम ! जीव संयत भी (असंजया वि) असंयत भी (संजयासंजया वि) संयतासंयत भी (नो संजया-नोअसंजया नो संजया. संजया वि) नो संयत नोअसंयत नोसंयतासयत भी होते हैं। __(नेरझ्याणं पुच्छा ?) नारको सम्बन्धी पृच्छा ? (गोयमा। नेरइया) हे गौतम ! नारक (नो संजया) संयत नहीं होते (असंजया) असंयत होते हैं (नो संजया संजया) संयतासंयत नहीं होते (नो नोसंजय-नोअसंजय-नोसंजयासंजया) नोसंयत-नोअसंयत नोसंयतासंयत भी नहीं होते (एवं जाय चरिंदिया) इसी प्रकार चौइन्द्रियों तक। (पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) पंचेन्द्रिय तिर्यचों संबंधी प्रश्न ?) (गोयमा ! पंचिंदियतिरिकग्वजोगिया) हे गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक (नो બત્રીસમું સંયત પદ शा-(जीवाणं भंते कि संजया, असंजया, संजयासंजया, नो संजया, नो असजाया, नो संजयासंजया ?) है पन्, ७५ शुसयत डाय छ, मसयत होय छे ? सयतासयता छ ? ना सयत ने मयत, नौ सयता यत डाय छ ? (गोयमा ! जीवा संजया वि) में गौतम ७१ सय ५५] छ. (असंजया वि) मसयत ५९ (संजया संजया वि) संयतासयत ५९ (नो संजया, नो असंजया नो संजयासंजया वि) नौ सयत, ને અસંયત, ને સંયતા સયત પણ હોય છે. (नेरइया णं भंते ! पुच्छा) ना समन्धी २छ। ? (गोयमा ! नेरइया), गौतम ना२४. (नो संजया) सयत नयी ता. (असंजया) असयत य छे. (नो संजयासंजया) सयतासयत नथी होता. (नो नो संजया-नो असंजया नो संजयासंजया) ने संयत-न असयत-नेस यतासयत ५५ नथी मानत. (एवं जाव चरिंदिया) 0 पारे ચતુરિંદ્રિય સુધી. ___ (पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा) पथेन्द्रिय तिय यो सन्धी प्रश्न ? (गोयमा ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया) ५येन्द्रिय तिय योनि. (नो संजया) सयत नथी यता (असंजया શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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