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प्रमेयबोधिनी टीका पद ३० सू० १ साकारानाकारपश्यन्तानिरूपणम्
__ ७२३ काणां भदन्त ! ऋतिविधा पश्यन्ता प्रज्ञप्ता ? गौतम ! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-साकार पश्यना, अनाकारपश्यन्ता. नैरयिकाणां भदन्त ! साकारपश्यन्ता कतिविधा प्रज्ञप्ता ! गौतम ! चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-श्रुतज्ञानपश्यन्ता, अधिज्ञानपश्यन्ता, श्रुताज्ञानपश्यन्ता, विभङ्गज्ञान पश्यन्ता, नायिकाणां भदन्त ! अनाकारपश्यन्ता कतिविधा प्रज्ञप्ता ? गौतम ! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-चक्षुदर्शनानाकारपश्यन्ता, अवधिदर्शनानाकारपश्यन्ना, एवं यावत् स्तनितकुमागः, जोशणं वि) इसी प्रकार जीवों की पश्यन्ता भी। _ (नेरइयाणं भंते ! कविहा पामणया पण्णत्ता) हे भगवन् ! नारकों की पश्यन्ता कितने प्रकार की कही ? (गोरमा! दुव्हिा पण्णत्ता) हे गौतम! दो प्रकार की कही है (तं जहा-सागार पामणया, अणागार पासणया) वह इस प्रकार साकार पश्यन्ता, अनाकार पश्यन्ता (नेरइयाणं भंते । सागार पासणया कइबिहा पण्णता ?) हे भगवन् ! नारकों की साकार पश्यन्ता कितने प्रकार की कही है ? (गोयमा ! च उब्विहा पण्णत्ता) गौतम! चार प्रकार की कही है (तं जहा स्तुधनाण पासणया) वह इस प्रकार श्रुतज्ञान पश्यन्ता(ओहिनाण पासणया) अवधिज्ञान पश्यन्ता (सुप अण्णाण पासणया) श्रुताज्ञान पश्यन्ता (विभंगणाण पासणया) विभंगज्ञान पश्यन्ता (नेरइयाण मते ! अणागारपासणया कइचिहा पण्णत्ता) हे भगवन् ! नारकों की अनाकार पश्यन्ता कितने प्रकार की कही हैं ? (गोयमा दुविहा पण्णता) हे गौतम ! दो प्रकार की कहो है (तं जहा) वह इस प्रकार (चवुदंमण अणागार पासणया)चक्षुदर्शन अनाकार पश्यन्ता(ओहिदंसण अणागार पासणया) अवधिदर्शन अनाकार पश्यन्ता (एवं जाव थणियकुमारा) इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार । मना४१२ १२५-ता (एवं जीवाणं वि) मे ॥ ५४॥२ सयोनी ५९५ पश्यन्ता समापी.
__(नेरइयाणं भंते ! कह विहा पासणया पण्णत्ता ?) भाप ! नारानी ५१५-ता ३६ ५४।२नी ४-डी छ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) डे, गौतम ! मे प्रा२नी ४ी छ (तं जहा सागारपासणया, अणागारपासणया) ते । ५४३ सा१ ५५यन्ता भने माना ७।२ ५२५-१ (नेरइ गणं भंते ! सागारपासणया कइ विहा पण्णत्ता) मापन् ! नानी सा २ ५५य-11 26॥ ४२नी ही ? (गोयमा ! चउबिह। पण्णत्ता) ई गौतम ! यार प्रा२नी 2ी छे (तं जहा-सुयनाणपासणया) ते मा २ श्रुतज्ञान ५श्यना (ओहिनाण पासणया) अवधिज्ञ न पश्यन्ता (सुय अण्णाणपासणया) श्रुताशात पश्यन्ता (विभंगनाणपास णया) विज्ञान ५२५-11 (नेरइयाणं भंते ! अणगारपासणया कइ विहा पण्णत्ता १) हे भगवन् ! न २नी मना४।२ ५५यन्ता ॥ ४२नी ही छ ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) है गौतम ! मे ५४.२नी ही छे (तं जहा। ते ॥ ४२ (चक्खुइसणअणागारपासणया) यक्षुःश न मना।२ पश्यन्ता (ओहिदसण अणागारपासणया) मशिन-मन४२ ५५यन्ता
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫