SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 716
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २९ सू० १ साकारानाकारोपयोगनिरूपणम् ७०३ पृथिवीकायिकानां पृच्छा, गौतम ! तथैव यावत्-ये खलु पृथिवीकायिका मत्यज्ञानश्रुताज्ञानोपयुक्तास्ते खलु पृथिवीकायिकाः साकारोपयुक्ताः, ये खलु पृथिवीकायिका अचक्षुर्दर्शनोपयुक्तास्ते खलु पृथिवीकायिका अनाकारोपयुक्ताः, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते. यावद् वनस्पतिकायिकाः, द्वीन्द्रियाः खलु भदन्त ! अर्थसहिता स्तथैव पृच्छा, गौतम ! यावद ये खलु द्वीन्द्रिया आभिनिबोधिवज्ञानश्रुतज्ञान मत्यज्ञान श्रुताज्ञानोपयुक्ता स्ते खलु द्वीन्द्रियाः साकारोपयुक्ताः, ये खलु द्वीद्रियाः अवक्षुर्दशनोपयुक्तास्ते खलु अनाकारोपयुक्ताः, तत् तेनाथणियकुमारा) इसी प्रकार यावत स्तनितकुमारो तक समझना। (पुढविकाइयाणं पुच्छा ?) पृथ्वीकायिकों संबंधी पृच्छा ? (गोयमा ! तहेव जाव जे णं पुढविकाइया मइअण्णाण सुयअण्णाणोवउत्ता, ते णं पुढचिकाइया सागारोवउत्ता) हे गौतम ! इसी प्रकार यावतू जो पृथ्वीकायिक मति-अज्ञान और श्रुताज्ञान में उपयोग वाले हैं, वे पृथ्वी कायिक साकारोपयुक्त हैं (जे णं पुढविकाइया अचखुदंसणोवउत्ता) जो पृथ्वीकाधिक अचक्षुदर्शन में उपयुक्त हैं (ते णं पुढविकाइया अणागारोवउत्ता) वे पृथ्वीकाधिक अनाकारोपयोग से उपयुक्त हैं (से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ) हे गौतम ! इस हेतु से ऐसा कहा जाता है (जाच वणप्फइकाइया) वनस्पतिकायिकों तक इस प्रकार । (बेइंदिया णं भंते ! अट्ठसहिया तहेव पुच्छा) हे भगवन् ! दोन्द्रिय के विषय में अर्थ सहित उसी प्रकार प्रश्न ? (गोयमा ! जाय जे णं बेइंदिया) हे गौतम ! यावत् जो द्वीन्द्रिय (आभिणिबोहियनाण सुयनाण-मइअण्णाण -सुय अण्णाणोयउत्ता) आभिनियोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, मत्यज्ञान और श्रुताज्ञान में उपयुक्त हैं (ते णं बेइंदिया सागारोवउत्तो) ये द्वीन्द्रिय सागारोपयुक्त हैं (जे णं बेइंदिया अचक्खु. दंसणोवउत्ता ते णं अणागारोवउत्ता) जो द्वीन्द्रिय अचक्षुदर्शनोपयुक्त है, ये (पुढविकाइयाणं पुच्छा) १४।यि समधी २-छ। (गोयमा ! तहेब जाव जे णं पुढविकाइया मइ अण्णाण सुय अण्णाणोबउत्ता ते णं पुढिविकाइया सागारोवउत्ता) है ગૌતમ ! એ પ્રકારે યાવત જે પૃથ્વીકાયિક મતિ-અજ્ઞાન, અને શ્રતાજ્ઞાનમાં ઉપગવાળા छ, ते पृथ्यायि सा४३।५युत छ (जे णं पुढविकाइया अचक्खुदसणोवउत्ता) २ पृथ्वी14 अन्यक्षु ६२ नम ५युत छ (तेणं पुढविकाइया अणागारोव उत्ता) ते यायि: मना५युरत छ (से तेणटेणं गोयमा एवं वुच्चइ) हे गौतम ! से उतुथी सेम डेयाय छ (जाव वणप्फइकाइया) वनस्पतिय सुधी से प्रारे समा. (बेइंदियाणं भंते ! अदुसहिया तहेव पुच्छा) हे मापन् ! दीन्द्रियोनाविषयमा म सहित से प्रा. प्रश्न ? (गोयमा ! जाव बेइंदिया) हे गौतम ! यापत दीन्द्रिय (आभिणिबोहिय नाण-सुयनाण-मइअण्णाण सुयअण्णाणाव उत्ता) मानिनिमाधिशान, श्रुतज्ञान, भत्यज्ञान भने श्रुताज्ञानमा उपयुत छे (तेणं बेइंदिया सागारोव उत्ता) ते दीन्द्रियो सा५युत શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy