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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २८ सू० ९ ज्ञानवतो जीवादीनामाहारकत्वादिनिरूपणम् १७३ पर्याप्तिः पञ्चन्द्रियाणाम्, अवशेषाणां नास्ति, आहारकपर्याप्त्यपर्याप्तको नो आहारकः, अनाहारकः, एकत्वेनापि पृथक्त्वेनापि शरीरपर्याप्त्यपर्याप्तकः स्याद आहारकः स्याद् अनाहारकः, उपरितनीषु चतसृषु थपर्याप्तिषु नैरयिकदे मनुष्येषु पड्भङ्गाः, अवशेषाणां जीवैकेन्द्रियवर्ज खिकभङ्गः, भाषामनःपर्याप्तेषु जो वे षु पञ्चेन्द्रियतिबग्योनिकेषु च त्रिक भङ्गः, नैरयिकदेवमनु प्येषु पइभङ्गाः, सर्वपदेषु एकत्वपृथक्त्वेन जीवादिका दण्डकाः पृच्छया भणितव्याः, यस्य पर्याप्तियों में (जीवेसु मणूसेसु य) जीवों और मनुष्यों में (तियभंगो) तीन भंग (अबसेसा आहारगा) शेष आहारक होते हैं (नो अणाहारगा) अनाहारक नहीं (भामामणपजत्ती पंचिंदियाणं) भाषामन:पर्याप्ति पंचेन्द्रियों में होती है (अचसे सागं नत्थि) शेष में नहीं होतो (आहार पजत्ती अपजत्ते णो आहारए, अणाहारए) आहार पर्याप्ति से अपर्याप्त आहारक नहीं होता, अनाहारक होता है (एग सेण वि पुहुत्तेण वि) एकत्व की और बहुत्व की अपेक्षा से भी (सरीरपजत्ती अपजत्तए सिय आहारए सिय अणाहारए) शरीरपर्याप्ति से अपर्याप्त कदाचित आहारक, कदाचित् अनाहारक होता है (उचरिल्लियास च उसु अपज्जत्तीसु) ऊपर की चार अपर्याप्तयों में (नेर इयदेवपणूसेसु) नारकों, देवों और मनुष्यों में (छब्भंगा) छह भंग (अवसेसाणं जीवेगिदियचजो तियभगो) शेष में जीवों और एकेन्द्रियों को छोड कर तीन भंग (भासामणपजत्तएसु जीवेसु) भाषामन:पर्याप्ति से पर्याप्त जीवों में (पंचिंदियतिरिक्वजोणिएस य) और पंचेन्द्रिय तिर्यचों में (तियभंगो) तीन भंग (नेरइयदेवमणुएसु) नारकों देवों और मनु. ज्यों में (छट मंगा) छह भंग (मध्यपएस्सु) सब पदो में (एगत्तपोहत्तणं) एकत्व और बहुत्य की विवक्षा से (जीवादिया दंडगा) जीव से लेकर दंडक (पुच्छाए) भने भनुध्योमा (तियभ गो) aut समनपा (अवसेसा आहारगा) शेष २मा २४ हाय छ (नो अणाहारगो) मनाहा२४ नडी (भासामणपज्जत्ती पचि दियाणं) भाषामन: ५यात ५'शन्द्रियोमा थाय छे (अवसेसाणं न त्थि) माहीनामा नथी होती, (आहारपज्जत्ती अपज्जत्ते णो आहारए अणाहार ए) २५। (२५यातिथी पर्याप्त २।७२४ नथी होता, मनाइ२ डाय छ (एगत्तेण वि पुहुत्तेण वि) सत्वनी भने मत्पनी अपेक्षाथी ५५ डेस छ. (सरीरपज्जत्ती अपज्जत्तए सिय आहारए, सिय अणाहारए) शरीर पर्यानिथी पर्याप्त पाय आई।२४ हाय 24ना३१२६ हाय छ (उपरिल्लियासु चउसु अपज्जत्तीसु) 3५२नी या२ ५५तियोमा (नेरइयदे रमणूसेस) नारी, वो भने मनुष्योमा (छभंगा) छ । (अबसेसाणं जीवेगिंदिय वज्जो तियभंगो) माजीनामां वो भने भेन्द्रियो सियाय १९ मा (भासामणपज्जत्तएसु जीवेसु) भाषामन:पतिथी ५यति मां (पचि दियतिरिक्ख जोणिएसु यो मन ५'येन्द्रिय तिय योमा (तियभगो) नए म (नेरइयदेवमणुएसु) ना२। हेवे! मने भनु. व्योमi (छब्भगा) ७ म (सव्यपएसु) १५॥ ५होमi (एगत्तपोहत्तेण) 3.५ आने पर શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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