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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २८ सू० ९ ज्ञानवतो जीवानामाहारकत्वादिनिरूपणम् ६७१ योगिषु जीवैकेन्द्रियवर्जस्त्रिकभङ्ग, अयोगिनो जीवमनुष्यसिद्धा अनाहारकाः, द्वारम् १०, साकारानाकारोपयुक्तेषु जीवैकेन्द्रियवर्जस्त्रिकभङ्गः, सिद्धा अनाहारकाः, द्वारम् ११, सवेदो. जीवैकेन्द्रियवर्जस्त्रिकभङ्गः स्त्री वेदपुरुषवेदेषु जीवादिकस्त्रिकाङ्गः, नपुंसकवेदकश्च जीवैकेन्द्रियवर्जस्त्रिकभङ्गः, अवेदको यथा केवलज्ञानी, द्वारम् १२, सशरीरी जीवेकेन्द्रियवर्जस्त्रिकभगः, औदारिकशरीरि जीवमनुष्येषु त्रिकभमः, अवशेषा आहारका नो अनाहारकाः, भंग (सजोगी जीवेगिदियचजो तियभंगो) सयोगियों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड कर तीन भंग (मण जोगी यह जोगी जहा सम्मामिच्छद्दिट्टी) मनोयोगी और वचनयोगी सम्यगमिथ्यादृष्टि के समान (नवरं वजोगी विगलिदियाण चि) विशेष, वचनयोगी विकलेन्द्रियों में भी होते हैं (कायजोगी जीवेगिंदियः चजो तियभंगो) काययोगियों में जीव और एकेन्द्रिय को छोडकर तीन भंग कहना (अजोगी जीवमणूससिद्धा अणाहारगा) अयोगी समुच्चय जीव, मनुष्य और सिद्ध होते हैं । ये अनाहारक हैं। (सागाराणागारोवउत्तेसु) साकार और अनाकार उपयोग वालों में (जीबे. गिदियवज्जो) जीव और एकेन्द्रिय को छोडकर (तिय भंगो) तीन भंग (सिद्धा अणाहारगा) सिद्ध अनाहारक होते हैं। ___ (सवेदे जीवेगिंदिययज्जो तियभंगो) मवेद में जीव और एकेन्द्रिय को छोड कर तीन भंग (इत्थिवेदपुरिसवेदेसु जीवादिओ तियभंगो) स्त्री वेद और पुरुष वेद में जीव से लेकर तीन भंग (नपुंसगवेदए य जोवेदिययज्जो) नपुंसक वेद में जीव और एकेन्द्रिय को छोड कर (तियभंगो) तीन मंग (अवेदए जहा केवल नाणी) अवेदी जैसे केवलज्ञानी होते हैं। (सजोगीसु जोवेगि दियवज्जो तियभंगो) सोगियोमा ०१ भने मेन्द्रिय सिपाय at (मणजोगी वइजोगी जहा सम्मामिच्छद्दिदि) मानयोगी मने पयनयोगी सभ्यभिथ्य टि समान aimi (नवरं वइजोणी विगलि दियाण वि) विशेष, ५यमयी 4saन्द्रियोमा ५५ डाय छ (कायजोगी जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो) ययोगियोमा ७५ भने मेन्द्रिय सय १९ 1 (अजोगी जीव मणूस सिद्धा अणाहारगा) भयो। सभु२५य ७५, मनुष्य मने सिद्धाय छ, तमे। मनाई२४ छ (सागाराणागारोवउत्तेसु) सा॥२ मने मना।२ उपयोग पाणायाम (जीवेगिदियवज्जो) ७१ मने मेन्द्रिय सिवाय (तियभंगो) १ मा (सिद्धाअणाहारगा) सिद्ध मना२४ छोय छ । ___ (सवेदे जीवेगि दियवज्जो तियभगो) सवमा ५ भने भेन्द्रिय सिपाय ! माय , (इत्यिवेदयुरिसवेदेसु जीवादिओ तियभगो) स्त्रीय मने ५३५वेहमा यी नत्र An५६ (नपुंसगवेदर य जीवेगिदियवज्जो) नपुस४ मा ०५ मने गेन्द्रिय सिपाय (तिय भंगो) (अयेदए जहा केवलनाणी) गटी वा ५८ ज्ञानी શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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