________________
प्रज्ञापनासूत्रे तिर्यग्योनिका आहारका नो अनाहारकाः, अवशेषेषु जीवादिकत्रिकभङ्गो येषामस्ति अवधि ज्ञानम्, मनःपर्यवज्ञानिनो जीवा मनुष्याश्च एकत्वेनापि पृथक्त्वेनापि आहार का नो अना. हारकाः, केवलज्ञानी यथा नो संज्ञो नो असंज्ञी, द्वारम् ८, अज्ञानी मत्यज्ञानी श्रुताज्ञानी जोपैकेन्द्रियवर्जनिक भङ्गा, विभङ्गज्ञानिनः पञ्चेन्द्रि कतियंग्योनिका मनुष्याश्च आहारका नो अनाहारकाः, अवशेषेषु जीवादिकस्त्रिकभङ्गः, द्वारम् ९, सयोगिषु जीवैकेन्द्रियवर्जस्त्रिकभङ्गः, मनोयोगी वचोयोगी यथा सम्यग्मिथ्या दृष्टिः, नवरं वचोयोगो विकलेन्द्रियाणामपि काय धिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चौइन्द्रियों में छह भंग (अवसे सेसु जोवादिओ तियभंगो) शेषों में जीव से लगाकर तीन भंग (जेसिं अस्थि) जिनमें ज्ञान होता है (ओहिणाणी) अवधिज्ञानी (पचिंदियतिरिक्खजोणिया आहारगा, णो अणाहार गा) पंचेन्द्रिय तिर्यच आहारक होते हैं, अनाहारक नहीं (अवसेसेलु जोचादिओ तियभंगो) शेषों में जीव से लगाकर तीन भंग (जेसिं अस्थि ओहिनाणं) जिनमें अवधिज्ञान होता है (मणपजवाणी जोवा मणूसा य) मनःपर्यवज्ञानी जीव और मनुष्य (एगत्तेण वि पुहुत्तेण घि) एकत्व की
और बहुत्व की अपेक्षा से (आहारगा जो अणाहारगा) आहारक होते हैं, अना हारक नहीं होते (केवलणाणी जहा नो सपणी-नो असण्णी) केवलज्ञानी जैसे नो संज्ञी नो असंज्ञी (अण्णाणी मई अण्णाणी सुध अण्णाणी जीवेगिदियवजो तियभंगो) अज्ञानी, मति-अज्ञानी, श्रुताज्ञानी में जीव और एकेन्द्रिय को छोड कर तीन भंग (विभंगनाणी पंबिंदियतिरिक्ख जोणिया मणूसा य आहारगा, णो अणाहारगा) विभाज्ञानी पंचेन्द्रिगतियंच और मनुष्य आहारक होते हैं, अनाहारक नहीं (अवसे प्लेसु जोवादिओ तियभंगो) शेषों में जीव से लेकर तीन श्रीन्द्रिय, मन यतुरिद्रयोमा छ । (अवसेसेतु जीवादिओ तियभंगो) माहीनामा थी सपने AT (जेमि अधि) मा जान थाय छ (ओहिणाणी) धिज्ञानी (पंचदियतिरिक्खजोणिया आहारगा णो अणाहारगा) ययेन्द्रियतिय यमाहा हाय छ मनाइ।२४ नश्री है तi (अवसेसेसु जीवादिओ तियभंगो) माहीनामा ७१थी सन १ स (जेसिं अस्थि ओहिणाणं) रेभा भवधिज्ञान डाय छ (मणपज्जवनाणी जीवा मगूमा य) मन:५वज्ञानी १ मने मनुष्य (एगत्तेग वि पुहुत्तेण वि) अपनी मने पलनी अपेक्षाथी (आहारगा णो अगाहारगा) मा २९ ५ छ, मना.२४ तभी होता (केवलणाणी जहा नो सण्णी नो असण्णी) याज्ञानी वा ना सही नी मसजी (अण्णाणी मइ अण्णाणी सुय अण्णाणी जीवेगिदियवज्जो तिय भंगो) Pinानी मति २मज्ञानी, श्रुधाज्ञानीमा ७५ अने मेहेन्द्रिय सिवाय
An (विभानाणी पचि दियतिरिक्खकोणिया मणूसा य आहारगा णो अणाहारगा) विमान सानी थेन्द्रिय तिय भने मनुष्य ४ छ, मना२४ नया हाता (अवसेसेसु जीवादिओ तियभंगो) माजीनामा 4थी बने ! मग
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫