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प्रज्ञापनासूत्रे
णमन्ते, चतुरिन्द्रियाणां चक्षुरिन्द्रियविमात्रतया घ्राणेन्द्रियविमात्रतया जिवेन्द्रियविमात्रतया स्पर्शनेन्द्रविमात्रतया तेषां भूयो भूयः परिणमन्ते, शेषं यथा त्रीन्द्रियाणां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका यथा त्रीन्द्रियाणाम्, नवरम्-तत्र खलु योऽसौ आभोगनिर्वर्त्तितः स जघन्येन अन्तमुहूर्तस्य, उत्कृष्टेन षष्ठभक्तस्य आहारार्थः समुत्पद्यते, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां मदन्त ! यान् पुद्गलान् आहारार्थतया पृच्छा, गौतम ! श्रोत्रेन्द्रियविमात्रतया चक्षुरिन्द्रियविमात्रतया
वेप्रायत्ताए) प्राणेन्द्रिय की विषम मात्रा के रूप से (जिभिदिय वेमायत्ताए) जिह्येन्द्रिय की विषम मात्रा के रूप से (कासिंदिपवेमायत्ताए) स्पर्शनेन्द्रिय की विषम मात्रा के रूप से (तेसिं) उनके लिए (भुज्जो भुज्जो परिणमंति) पुनः पुनः परिणत होते हैं ।
(चरिंदगाणं चक्खिदिघवेमाघरसाए घाणिदियवेमायत्ताए जिभिदियमाता फासिंदियवेमायत्ताए) चतुरिन्द्रियों के चक्षुरिन्द्रिय की विषम मात्रा के रूप से, घ्राणेन्द्रिय की विषम मात्रा के रूप से, जिहूवेन्द्रिय की विषम मात्रा के रूप से (तेसिं) उनके लिए (भुज्जो भुज्जो) चार- बार (परिणमंति) परिणत होते हैं (सेसं जहा इंदियागं) शेष बीन्द्रियों की तरह ।
(पंचिदियतिरिक्ख जोणिया जहा तेइंदियाणं ) पंचेन्द्रिय तिर्येच त्रीन्द्रियों की तरह (रं) विशेष (तस्थ णं जेसे आभोगनिव्यत्तिए) उनमें जो आभोगनिर्वर्त्तिन आहार है ( से जहण्णेणं अंतोनुहुत्तस्स) वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त से ( उक्को सेणं छट्टभत्तस्स) उत्कृष्ट षष्ठ भक्त से (आहारट्ठे समुपज्जइ) आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है (पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! जे पोग्गला आहारत्ताए पुच्छा ?) हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यचों के न्द्रियनी विषभभात्रा३पथी (जिब्भिंदियवेमायत्ताए ) निह्वेन्द्रियनी विषमभात्राना ३५थी ( फासिंदियवेमायत्ताए) स्पर्शेन्द्रियनी विषभ भात्राना ३५थी (तेसि) तेभने भाटे (भुज्जो भुज्जो परिणमंति) पुन: पुन: परिशत थाय छे.
(चरिं दियाणं चक्खिदियवेमायत्ताए घाणिदियवेमयत्ताए जिब्भिंदियवेमायत्ताए ) तु રિન્દ્રિયોના ચક્ષુરિન્દ્રિયની વિષમ માત્રાના રૂપથી ઘ્રાણેન્દ્રિયની વિષમમાત્રાનારૂપથી, જિન્હેન્દ્રિ यनी विषमभात्राना३पथी तथा स्पर्शेन्द्रियनी विषमभात्राना ३५थी (तेसि) तेभने भाटे (yeat gent) uleʼale (ako÷fa) ukgaau à (đ÷ mgr àgfguroi) Ãa allegra Ÿh. (पंचिदियतिरिक्खजोणिया जहा तेइंदियाणं) पथेन्द्रिय तिर्यय त्रीन्द्रियांनी नेम (णवरं) विशेष (तत्थ णं जे से आभोगनिव्यत्तिर) ते मां के सालोगनिर्वर्तित आहार छे. (से जहणेणं अतो मुहुत्तस्स ) ते धन्य अन्तर्मुहूर्त थी (उकोसेणं छट्टभत्तस्स) उष्ट षण्ड लस्तथी (आहारट्ठे समुपज्जइ) आहारती अलिसाषा उत्पन्न थाय छे. (पंचि दियतिरिक्खजोणियाणं भंते! जे पोग्गला आहारत्ताए पुच्छा ?) - हे लगवन् ! यथेन्द्रिय तिर्यथाना
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫