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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २८ सू० ४ द्वीन्द्रियादीनां सचित्ताहारादिनिरूपणम् ५७१ एष्यत्काले कति मागम् आहारयन्ति ? कति भागम् आस्वादयन्ति ? एवं यथा नैरयिकाणाम्, द्वीन्द्रियाः खलु भदन्त ! यान् पुदलान् आहारतया गृहन्ति तान् किं सर्वान् आहारयन्ति, नो सर्वान् आहारयन्ति ? गौतम ! द्वोन्द्रियाणां द्विविध आहारः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-लोमाहारश्च प्रक्षेपाहारश्च, यान् पुद्गलान् लोमाहारतया गृह्णन्ति तान् सर्वान् अपरिशेषान् आहारयन्ति, यान पुद्गलान् प्रक्षेपाहारतया गृह्णन्ति तेषामसंख्येयभागमाहारयन्ति, अनेकानि च खलु (बेइंदियाणं भंते ! पुच्छा) हे भगवन् ! दीन्द्रियों संबंधी प्रश्न (जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हंति) जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं (ते णं तेसिं पुग्गलाणं सियालंसि कइभार्ग आहारेति ?) भविष्यत् काल में ये उन पुद्गलों के कितने भाग का आहार करते हैं ? (कइ मार्ग आसाएंति ?) कितने भाग का आस्वादन करते हैं ? (एवं जहा नेरइयाण) इस प्रकार नारकों के समान (बेइंदियाणं भंते ! जे पोग्गला आहारत्ताए गिण्हति) हे भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं (ते किं सव्ये आहारे ति, णो सव्ये आहारे ति) क्या उन सबका आहार करते हैं या सब के एक भाग का आहार करते हैं ? (गोयमा ! वेइंदियाणं दुविहे आहारे पण्णत्ते) हे गौतम! दीन्द्रियों का आहार दो प्रकार का कहा है (तं जहा-लोमाहारे य पक्खेयाहारे य) रोमाहार और प्रक्षेपाहार (जे पोरगले लोमाहारत्ताए गिण्हंति ते सव्ये अपरि सेसे आहारेति) जिन पुद्गलों को रोमाहार के रूप में ग्रहण करते हैं, उन सब का सम्पूर्ण रूप में आहार करते हैं (जे पोग्गले पक्खेयाहारत्ताए गेण्हंति ) जिन पुद्गलों को प्रक्षेपाहार रूप से ग्रहण करते हैं (तेसिमसंखेजइभागमाहारे ति) (बेइंदियाणं भंते ! पुच्छा ?)-3 ममपन् ! दीन्द्रियो सन्धी प्रश्न ? (जे पोग्गले आहा. रत्ताए गिण्हंति) २ पुगतान साहाना ३५मा ९५ ४२ छ (तेणं तेसिं पुग्गलाणं सियालंसि कहभाग आहारेति !) भविष्य मा तम्मा ते सोना ॥ भागना माहा२ ७२ छ ? (कइ भाग आसाएंति) ८ लानु मान ४२ छ ? (एवं जहा नेरयाणं) २. अरे नानी म (बेइंदियाणं भंते ! जे पोग्गला आहारत्ताए गिण्हंति)- भगवन ! दीन्द्रिय पुगताने माहारन। ३५मां अप रे छ (ते किं सव्ये आहारे ति, णो सव्वे आहारैति) शुते मधान। माइ॥२ ७२ छ २०१२ मधाना से भागना महार रे छे ? (गोयमा ! बेइंदियाणं दुविहे आहारे पण्णते)- गौतम ! दीन्द्रियाना माह२ मे प्रा२नो यो छ (तं जहा लोमाहारे य पक्खेवाहारे य) सीमाहा२ मा प्रक्षेपाडा२ (जे पोग्गले लोमाहारत्ताए गिण्हंति ते सव्वे अपरिसेसे आहारे ति) रे पुदगले ने सोमाइरन ३५मा अड ४२ छ, ते मधाना सम्पू३५मा माहा२ ३२ छ, (जे पोग्गले पक्खेवाहारत्ताए गेण्हति) से सोने प्रक्षेपा १२३५थी अY ४२ छ (तेसिमसंखेज्जइभागमाहारे ति) तेमनामांथी मध्यातमा लागन શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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