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________________ ५३४ प्रज्ञापनासूत्रे ख्येयगुणकालकानि आहारयन्ति यावत्-अनन्तगुणकालकानि आहारयन्ति ? गौतम ! एकगुणकालकान्यपि आहारयन्ति यावद् अनन्त गुणकालकान्यपि आहारयन्ति, एवं यावत् शुक्लवर्णान्यपि, एवं गन्धतोऽपि, रसतोऽपि, यानि भावतः स्पर्शयन्ति तानि नो एकस्पर्शानि आहारयन्ति, नो द्विस्पर्शानि आहारयन्ति, नो त्रिस्पर्शानि आहारयन्ति, चतुःस्पर्शानि आहारयन्ति, यावद अष्टस्पर्शान्यपि आहारयन्ति, विधानमार्गणं प्रतीत्य कर्कशान्यपि आहारयन्ति, गुणकालाई आहारेंति) क्या उन एकगुण कालों का आहार करते हैं यावत् दश. गुण कालों का आहार करते हैं (संखेजगुणकालाई आहारेंति असंखेजगुणकालई आहारेंति, अणंतगुणकालाई आहारेंति ?) संख्यातगुण काले पुद्गलों का आहार करते हैं, असंख्घातगुण कालों का आहार करते हैं या अनन्त गुण वालों का आहार करते हैं ? (गोयमा ! एगगुणकालाई पि आहारेंति जाय अणंतगुण कालाई पि आहारैति) हे गौतम ! एक गुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं (एवं जाय सुकिल्लाई) इसी प्रकार यावत् शुक्ल पुद्गलों को (एवं गंधओ वि) इसी प्रकार गंध से भी (रसओ वि) रससे भी (जाई भावओ फासमंताई) भाव से जिन स्पर्शवाले पुदगलों को (ताई नो एगफासाई) उन्हें एकस्पर्श वालों को नहीं (आहारैति) आहार करते हैं (नो दुफासाई आहारेंति) दो स्पर्श वालों का आहार नहीं करते (नो तिफासाई आहारैति) तीन स्पर्श वालों का आहार नहीं करते (चउफासाइं आहारेंति) चार स्पर्श वालों का आहार करते हैं (जाय अg फासाई पि आहारेंति) यावत् आठ स्पर्श वालों का भी आहार करते हैं (विहाणमग्गणं पडुच्च) भेदमार्गणा यापत ६श गुर जाना मा२ ४२ छ (संखेन्जगुणकालाई आहारेति, असंखेज्जगुणकालाई आहारेति, अणंत गुणकलाई आहारे ति ) सध्यात गु १७५६सानो मा२ ४२ છે, અસંખ્યાત ગુણ કાળાઓને આહાર કરે છે અગર અનન્ત ગુણકાળાઓને આહાર કરે છે?) (गोयमा! एगगुणकालाई वि आहारति जाव अणंतगुणकालाई वि अहारे ति) गौतम! એક ગુણ કાળાં પુદ્ગલેને પણ આહાર કરે છે, યાવતું અનન્ત ગુણ કાળાં પુદ્ગલેને પણ भाडा२ ४२ छ (एवं जाव सुकिल्लाई- हारे यावत् शु४८ पुगसीना (एवं गंधओ वि) से प्रा३ गयी ५५ (रसओ वि) २सथी ५५, (जाई भावओ फासमताइ) माथी २२५ पा पुगसोना (ताइनो एगफासाई) ते मे २५शवाणानी नहा (आहारे ति) माहा२ ४२ छ (नो दुफासाई आहारे ति) मे २५शपाजानी आहार नथी ४२ता (नो तिफासाई आहारे ति) ! २५ पाजानेआहा२ नथी ४२॥ (चउरफासाई आहारेति) या२ २५ वाजानी भाडा२ ४३ छे (जाव अदृफासाइबि आहारेति) यावत् म २५ वाजाने५९ मा २ रे छ (विहाणमग्गणं पडुच्च) ले શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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