________________
४६३
प्रमेयबोधिनी टीका पद २४ सू० १ कर्मप्रकृतिबन्धनिरूपमम् अथवा सप्तविधयन्धकाश्च अष्टविधवन्धकाच षइविधवन्धकाश्च ९ एवम् एते नवमङ्गाः, शेषा वानव्यन्तरादिका यावद् वैमानिका यथा नैरयिकाः सप्तविधादिबन्धका भणितास्तथा भणितव्याः, एवं यथा ज्ञानावरणं बघ्नन्तो यत्र भगिता दर्शनावरणमपि वनन्तस्तत्र जीवादिका एकत्वपृथकत्वाभ्यां भणितव्याः, वेदनीयं बध्नन जीवः कतिकर्मप्रकृती बंध्नाति ? गौतम ! सप्तविधवन्धको वा अष्टविधवन्धको वा षविधबन्धको वा एकविधवन्धको वा, एवं मनुष्यो. विहबंधगा य, छव्यिहवंधगे य) अथवा बहुत सात के बन्धक, बहुत आठ का बन्धक और एक छह का बन्धक८ (अहया सत्तविहबंधगा य, अट्टविहबंधगा य, छबिहबन्धगा य) अथवा बहत सात के बन्धक, बहुत आठ के बन्धक और बहुत छह के बन्धक९ (एवं) इस प्रकार (एए) ये (नयभंगा) नौ भंग हैं। ___(सेसा वाणमंतराइया) शेष वानव्यतर आदि (जाव येमाणिया) यावत् वैमानिकों तक (जहा नेरड्या सत्तविहाइ बंधगा भणिया तहा भाणियच्या) जैसे नारक सात आदि के बन्धक कहे हैं, उसी प्रकार कहने चाहिए (एवं जहा णाणावरणं बंधमाणा) इस प्रकार जैसे ज्ञानावरण को बांधते हुए (जहिं भणिया) जहां कहे हैं (दंसणावरणं बंधमाणा) दर्शनावरण को बांधते हुए (तहिं) वहां (जीयादिया) औधिक जीव आदि (एगत्तपोहुत्तिहिं) एकत्व और पृथक्त्य-बहुत्वसे (भाणियव्या) कहने चाहिए। __ (वेयणिज्जं बंधमाणे जीवे) वेदनीय कर्म को बांधता हुआ जीव (कइ कम्म पगडीओ) कितनी कर्मप्रकृतियां (बंधइ) बांधला है (गोयमा ! सत्तविहर धगे वा, अट्टविहबंधए या, छविहबंधए बा, एगविहबंधए वा) हे गौतम! सात का बन्धक, अथवा आठ का बन्धक अथवा छह का बन्धक अथवा एक का बन्धक (एवं मणूसे चि) इसी प्रकार मनुष्य भी (सेसा नारगादीया) शेष नारक आदि (सत्तबंधगा य, अढविहब धगा य, छव्विहब धो य) अथवा घर। सातना मन, ध। माना
५४ २मन में छना ५४८ (अहया सत्तविहब धगा य, अटविहब धगा य, छव्विहबंधगा य) 4241 ध। सातना घाणु। माना २मने । छन। म ९ (एव) से प्रारे (एए) से (नवभंगा) न छे. (सेसा वाणमंतराइया) शेष पानव्य-तर माल (जाव माणिया) वैमानि सुधी (जहा नेरइया सत्तविहाइ बधगा भणिया तहा भाणियव्वा) म सात ना२४ माहिना मन्य ह्या छ, मे ८ ॥ पा से.
(एवं जहा णाणावरणं बंधमाणा) मे ५४२ पा ज्ञानापाने माता (जहिं भणिया) ri छ (दसणावरणं बंधमाणा) ४ नापरणने मांधता (तहि) त्यi (जीवादिया) मौधिक ७५ मा (एगत्तपोहुत्तिएहिं) मे४.५ अने पृथ६५-मत्थी (भाणियव्या) या लेये.
(वेयणिज्ज बधमाणे जीवे) वहनीय भन मांधता 04 (कइकम्मपगडीओ) सी
प्रतियो (बंधइ) मधे छे (गोयमा ! सत्तविह्व धगे अट्टविहब धए वा, छव्विहबंधए वा, एगविहबंधए वा)-3 गौतम! सातना म.५४, ५थवा 2418ना ५ अथवा छन।
४ मथा सेना म°५४ (एवं मणूसे) से प्रारं मनुष्य ५७१ (सेसा नारकादीया)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫