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प्रज्ञापनासूत्रे
वरणीयस्य पृच्छा, गौतम ! सर्वेऽपि तावद् भवेयुः सप्तविधबन्धकाः १, अथवा सप्तविधबन्धका अष्टविधबन्धक २, अथवा सप्तविधबन्धका अष्टविधबन्धका ३, अथवा सप्तविधबन्धका षडूविधबन्धकश्च ४, अथवा सप्तविधबन्धकाथ षड्विधबन्धकाश्च ५, अथवा सप्तविबन्धकाञ्च अष्टविधबन्धकश्च षड्विधबन्धक ६, अथवा सप्तविधबन्धकाच अष्टविध - बन्धकश्च षड्रविधबन्धकाश्च ७ अथवा सप्तविधबन्धकाश्च अष्टविधबन्धकाञ्च षड् विधबन्धक ८ अधिगे य) बहुत सात के बन्धक होते हैं और कोई एक आठ का बन्धक होता है ( अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठथिहबंधगा य) अथवा बहुत सात के बन्धक और बहुत आठ के बन्धक होते हैं।
( मणूसा णं ) मनुष्य (भंते) हे भगवन् ! ( णाणावर णिजस्स) ज्ञानावरणीय के (पुच्छा) प्रश्न ? (गोयमा ! सव्ये वि ताव होजा सत्तविहबंधगा ) हे गौतम ! सभी सात के बन्धक होते हैं १ (अहवा सत्तविधगा य अडविहबंधगे य) अथवा बहुत सात के बन्धक होते हैं और कोई एक आठ का बन्धक होता है २ ( अहवा सत्तविहबंधगाय अट्ठविहबंधगा य) अथवा बहुत सात के बन्धक और बहुत आठ के बन्धक ३ ( अहवा, सत्तविधगा य छव्हिबंधए य) अथवा बहुत सात के बन्धक और एक छह का बन्धक ४ ( अहवा सत्तविहबंधगा य छव्हिबंधगा य) अथवा बहुत सात के बन्धक और बहुत छह के बन्धक ५ ( अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठचिह्नबंधगे य, छव्विहबंधगे य) अथवा बहुत सात के बन्धक, एक आठ का बन्धक और एक छह का बन्धक ६ ( अहवा सत्तविह बंधगा य, अट्ठविहबंधगे य, छव्विहबंधगा य) अथवा बहुत सात के बन्धक, एक आठ का बन्धक और बहुत छह के बन्धक ७ ( अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठ बंधगे य) धणु। सातना अन्ध थाय छे भने अर्थ मे सानो संघ थाय छे ( अहवा सत्तविधगाय अट्टविहब धगा य) अथवा धा सातना मध भने घामानामधर थाय छे ( मणूसा णं) मनुष्य (भंते ) - हे भगवन् ( णाणावर णिज्जस्स) ज्ञानावरणीयम्र्मना विषयभां (पुच्छा) प्रश्न ? (गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा) - हे गौतम! मधा સાતના अध थाय छे ? ( अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहब धगे य) अथवा घासातना धड थाय छेने सानो अंध थाय छे२ ( अहवा सत्तविहब धगा य अट्ठविहब धगा य) अथवा धा सातना अन्ध अधा आना मध ३ ( अहवा सत्तविहबंधगा य छव्त्रिबधए य) अथवा धणा सातना धड भने छन। मन्व४ ४ ( अहवा सत्तविहबंधगा य छब्बिह बंधगाय) अथवा सातना अंधाने धाछना अंध ५ ( अहवा सत्तविधगाय अविधगे य छव्विहब धगे य) अथवा धा सातना अन्ध मे आनो जन्ध अने थोड छनो बन्धउ ६ ( अहवा सत्तविहबंधगा य, अट्ठविहबंधगे य, छव्विहबंधगा य) अथवा घणा सातना अन्धो सानो जन्धर भने धागा छना मन्६४७ ( अहवा सत्तविह
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫